हैदराबाद : फिल्मे तो कई आती हैं, लेकिन कुछ फिल्मे ऐसी होती है, जो लोगो के दिलो में घर बनाती है, जो समाज जीवन की सच्चाई को दर्शाती है. ऐसी ही 'सैराट' और 'फंड्री' इन फिल्मों के माध्यम से समाज जीवन की रचना को दिखाने वाले फिल्म निर्देशक नागराज मंजुले ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत की.
नागराज की फिल्म 'झुंड' 4 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. इस फिल्म के जरिए नागराज ने पहली बार सदी के महानायक जिनको कहां जाता है वह अमिताभ बच्चन जी के साथ काम किया. इसी मौके पर ईटीवी भारत ने फिल्म निर्देशक नागराज मंजुले से विशेष बातचीत की.
प्रश्न - झुंड इस फिल्म की कल्पना कैसे आई और ये पूरी प्रक्रिया कैसे रही?
उत्तर - झुंड मेरे पास एक कन्सेप्ट आया था. मुझे बताया गया था की, एक रिअल लाईफ कन्सेप्ट है. लोगो पर प्रेरित ये कहानी हो सकती है, जिसमें हम बच्चन जी के साथ काम कर सकते हैं. इसके बाद मैंने इसपर रिसर्च की. नागपूर के जो विजय बारसे है, उनके स्टूडेंट हैं अखिलेश और बाकी भी जो 100-200 स्टूडेंट हैं, जो उनके साथ खेलते है, उनकी कहानी मैंने जानी-समझी और एक स्क्रीनप्ले लिखा. इसके बाद बच्चन जी को सुनाया, उनको पसंद आया फिर इस फिल्म का काम शुरू हुआ.
प्रश्न - बच्चन जी के साथ आपका काम करने का अनुभव कैसा था?
उत्तर - बहुत अच्छा रहा. मै पिछले आठ दिन से यही बात कर रहा हूं. मगर थक नही रहा हू. बल्कि मैं इसका आनंद ले रहा हूं. ये सवाल जो पूछा जा रहा है इसकी भी एक खुशी है... मेरा सपना नहीं था मैं फिल्ममेकर बनूंगा ये भी मेरा सपना नहीं था...बच्चन सर के साथ काम करने का मौका मिले तो दुनिया कोई भी डायरेक्टर नहीं होगा जो करना नहीं चाहेगा. मेरे राह में ये मौका आ गया. ये मेरे लिए ख्वाब से भी बड़ा है... मेरे लिए ये अमूल्य है.
प्रश्न - कोविड की वजह से ये जो फिल्म रही वह देरी से प्रदर्शित हो रही है, क्या इस दौरान आपने इसमें कुछ बदलाव किए?
उत्तर - ऐसा नहीं है. कोविड आ गया तो बदलाव करो. थोडा एडिटिंग में काम हो सकता है. वक्त ज्यादा मिला तो, बार बार देखा जाता है, लेकिन अंत में फिल्म वैसी ही बनती है जैसी आप बनाते है.
प्रश्न - आपके फिल्मों मे पिछड़ा वर्ग पर भाष्य किया जाता है, मराठी में इस पर कम का हो रहा है, ऐसा आपको लगता है?