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ऑस्कर गई 'Writing With Fire' फिल्म 'Jai Bhim' पर क्यों पड़ी भारी, जानिए

27 मार्च 2022 को ऑस्कर विजेताओं के नाम का एलान होगा. फिल्म कैटेगरी में 'जय भीम' को नॉमिनेशन नहीं मिला. 'राइटिंग विद फायर' एकमात्र भारतीय फिल्म है, जिसे इस साल के ऑस्कर पुरस्कारों में नामिनेशन मिला है. जानिए क्या है 'राइटिंग विद फायर' की कहानी और फिल्म 'जय भीम' पर कैसे पड़ी भारी.

Jai Bhim
जय भीम

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Published : Feb 9, 2022, 1:27 PM IST

Updated : Feb 9, 2022, 1:36 PM IST

हैदराबाद : 94वें अकेडमी अवॉर्ड्स (Oscar 2022 Nomination) के इस साल के नॉमिनेशन की घोषणा हो गई है. इस साल भारत को ऑस्कर अवॉर्ड्स से कई उम्मीदे हैं. भारत की तरफ से इस साल डॉक्यूमेंट्री कैटेगरी में 'राइटिंग विद फायर' (Writing With Fire) जगह बनाने में कामयाब हुई है. 'राइटिंग विद फायर' एकमात्र भारतीय फिल्म है, जिसे इस साल के ऑस्कर पुरस्कारों में नामिनेशन मिला है. फिल्म कैटेगरी में 'जय भीम' और 'मारक्कर' नॉमिनेट नहीं हो पाईं. जानते हैं, रातों-रात सुर्खियां बटोरने वाली सामाजिक-आपराधिक दृष्टिकोण पर बनी फिल्म 'जय भीम' पर डॉक्यूमेंट्री 'राइटिंग विद फायर' कैसे पड़ी भारी.

क्या है राइटिंग विद फायर की कहानी ?

राइटिंग विद फायर

ऑस्कर नॉमिनेश 2022 की रेस में 'राइटिंग विद फायर' के साथ इस मुकाबले में ऐसेन्शन (Ascension), अटिका (Attica), फ्ली (Flee) और समर ऑफ सोल (Summer of Soul) भी शामिल है. डॉयक्यूमेंट्री 'राइटिंग विद फायर' को रिंटू थॉमस और सुष्मित घोष ने डायरेक्ट किया है. 'राइटिंग विद फायर' की कहानी की बात करें, तो यह दलित महिलाओं द्वारा चलाए जाने वाले अखबार 'खबर लहरिया' की कहानी को बयां करती है. दिल्ली के एक एनजीओ 'निरंतर' ने साल 2002 में बुंदेलखंड क्षेत्र के चित्रकूट में इसकी शुरुआत की थी.

अखबार से उठाया इस मुद्दे पर सवाल

राइटिंग विद फायर

'राइटिंग विद फायर' (2021) में 'खबर लहरिया' के प्रिंट मीडिया से डिजिटल मीडिया में बदलने के सफर को दिखाया गया है. फिल्म में मीरा और उनकी साथी पत्रकारों की कहानी को बखूबी बताया गया है. अखबार के जरिए यह महिला पत्रकार समाज में प्रचलित पितृसत्ता प्रथा पर सवाल करती हैं. इस मामले में पुलिस बल क्यों कमजोर और अक्षम है, इसकी भी जांच करती हैं. साथ ही अखबार के जरिए जाति व लिंग हिंसा के पीड़ितों के दुख और तकलीफों को भी सामने लाती हैं.

कैसे तय किया सफर ?

राइटिंग विद फायर

डॉक्यूमेंट्री में यह भी देखने को मिलता है कि इस दौरान कैसे इन दलित महिलाओं ने एक अखबार को चलाने के लिए बार-बार चुनौतियों को सामना किया. इन चुनौतियों के बीच इन दलित महिलाओं के खुद को समाज में स्थापित करने और आगे बढ़ने की यह कहानी बेहद दिलचस्प और झकझोर देने वाली है.

फिल्म 'जय भीम' की कहानी

जय भीम

तमिल सिनेमा की सुपरहिट फिल्म 'जय भीम' (2021) ने रातों-रात खूब सुर्खियां बटोरी थी. टी डे गनानवल निर्देशित और एक्टर सूर्या स्टारर फिल्म 'जय भीम' ने पुलिस प्रशासन की आपराधिक प्रकृति की हककीत को सामने लाकर रख दिया था. यह फिल्म अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती है. जय भीम तमिलनाडू में साल 1993 में घटी एक सच्ची घटना पर आधारित है. इस घटना की सुनवाई साल 2006 में मद्रास हाईकोर्ट में हुई और एक सटीक फैसला सुनाया गया. आइए जानते हैं क्या है फिल्म की कहानी. तमिलनाडू के एक गांव मुदन्नी, जहां कुरवा आदिवासी समुदाय के कुल चार परिवार थे.

20 मार्च 1993 को क्या हुआ ?

जय भीम

बताया जाता है कि इस समुदाय को आजादी से पहले ही अपराधी जनजाति की कैटगरी में शामिल कर दिया गया था. इस गांव में राजकन्नू और उसकी पत्नी सेंगई इस समुदाय के थे. 20 मार्च 1993 को पुलिस सेंगई के घर पहुंच उसके पति राजकन्नू का पता पूछती है. सेंगई पुलिस को कहती है कि वह काम पर गए हैं. फिर सेंगई पुलिस के आने की वजह पूछती है, तो वे कहते हैं कि गांव में एक चोरी हुई है और उसका पति फरार है.

सेंगई को इंसाफ मिला या नहीं ?

जय भीम

इसके बाद राजकन्नू को ढूंढ पुलिस हिरासत में ले लेती है. पुलिस हिरासत में सेंगई के सामने ही राजकन्नू पर पुलिस इतनी बर्बरता करती हैं कि उसकी मौत हो जाती है. फिर सेंगई इंसाफ के लिए चेन्नई के एक वकील चंद्रू (सूर्या) को अपनी पूरी आपबीती बताती है. चंद्रू इस केस की तह तक जाकर उन दोषी पुलिसकर्मियों को सजा दिलाकर ही दम लेता है, जिन्होंने राजकन्नू को चोरी के झूठे आरोप में फंसाकर हिरासत में इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई और मामले को दबा दिया था. इस केस में सेंगई को 13 साल बाद इंसाफ मिला था. 2006 में मद्रास हाईकोर्ट ने इस केस में पांच पुलिसकर्मियो को सजा सुनाई थी.

बता दें, 27 मार्च 2022 को ऑस्कर विजेताओं के नाम का एलान होगा.

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Last Updated : Feb 9, 2022, 1:36 PM IST

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