हैदराबाद : 94वें अकेडमी अवॉर्ड्स (Oscar 2022 Nomination) के इस साल के नॉमिनेशन की घोषणा हो गई है. इस साल भारत को ऑस्कर अवॉर्ड्स से कई उम्मीदे हैं. भारत की तरफ से इस साल डॉक्यूमेंट्री कैटेगरी में 'राइटिंग विद फायर' (Writing With Fire) जगह बनाने में कामयाब हुई है. 'राइटिंग विद फायर' एकमात्र भारतीय फिल्म है, जिसे इस साल के ऑस्कर पुरस्कारों में नामिनेशन मिला है. फिल्म कैटेगरी में 'जय भीम' और 'मारक्कर' नॉमिनेट नहीं हो पाईं. जानते हैं, रातों-रात सुर्खियां बटोरने वाली सामाजिक-आपराधिक दृष्टिकोण पर बनी फिल्म 'जय भीम' पर डॉक्यूमेंट्री 'राइटिंग विद फायर' कैसे पड़ी भारी.
क्या है राइटिंग विद फायर की कहानी ?
ऑस्कर नॉमिनेश 2022 की रेस में 'राइटिंग विद फायर' के साथ इस मुकाबले में ऐसेन्शन (Ascension), अटिका (Attica), फ्ली (Flee) और समर ऑफ सोल (Summer of Soul) भी शामिल है. डॉयक्यूमेंट्री 'राइटिंग विद फायर' को रिंटू थॉमस और सुष्मित घोष ने डायरेक्ट किया है. 'राइटिंग विद फायर' की कहानी की बात करें, तो यह दलित महिलाओं द्वारा चलाए जाने वाले अखबार 'खबर लहरिया' की कहानी को बयां करती है. दिल्ली के एक एनजीओ 'निरंतर' ने साल 2002 में बुंदेलखंड क्षेत्र के चित्रकूट में इसकी शुरुआत की थी.
अखबार से उठाया इस मुद्दे पर सवाल
'राइटिंग विद फायर' (2021) में 'खबर लहरिया' के प्रिंट मीडिया से डिजिटल मीडिया में बदलने के सफर को दिखाया गया है. फिल्म में मीरा और उनकी साथी पत्रकारों की कहानी को बखूबी बताया गया है. अखबार के जरिए यह महिला पत्रकार समाज में प्रचलित पितृसत्ता प्रथा पर सवाल करती हैं. इस मामले में पुलिस बल क्यों कमजोर और अक्षम है, इसकी भी जांच करती हैं. साथ ही अखबार के जरिए जाति व लिंग हिंसा के पीड़ितों के दुख और तकलीफों को भी सामने लाती हैं.
कैसे तय किया सफर ?
डॉक्यूमेंट्री में यह भी देखने को मिलता है कि इस दौरान कैसे इन दलित महिलाओं ने एक अखबार को चलाने के लिए बार-बार चुनौतियों को सामना किया. इन चुनौतियों के बीच इन दलित महिलाओं के खुद को समाज में स्थापित करने और आगे बढ़ने की यह कहानी बेहद दिलचस्प और झकझोर देने वाली है.