मुंबई : जगदीप एक ऐसे युग के थे जब कॉमेडी का हिंदी फिल्मों में उतना ही महत्व होता था जितना की हीरो का. लगभग कोई भी फिल्म, खास तौर से एक फैमिली ड्रामा या यहां तक कि एक रोमांटिक फिल्म भी कॉमेडी की हैल्दी डोज के बिना पूरी नहीं होती थी.
29 मार्च, 1939 को अमृतसर में सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी के रूप में जन्में, जगदीप ने छह दशकों के अपने करियर में 400 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया. हालांकि, यह रमेश सिप्पी की ब्लॉकबस्टर शोले (1975) में उनकी भूमिका सूरमा भोपाली थी, जिसने उन्हें वास्तव में सबका चहेता बना दिया. जब शोले रिलीज़ हुई, तब जगदीप को फिल्म इंड्स्ट्री में आए लगभग बीस साल से अधिक का समय बीत चुका था.
सूरमा भोपाली ही नहीं कॉमेडियन जगदीप के और भी कई किरदार हैं यादगार दिलचस्प बात यह है कि एक मजाकिया लकड़ी व्यापारी सूरमा भोपाली का उनका किरदार, एक्टर के ही एक परिचित भोपाल के एक वन अधिकारी सूरमा से प्रेरित था.
सूरमा भोपाली ही नहीं कॉमेडियन जगदीप के और भी कई किरदार हैं यादगार एक दशक के बाद, इस किरदार के नाम पर फिल्म भी बनी, जिसमें मुख्य भूमिका जगदीप ने ही निभाई. उन्होंने ही इस फिल्म का निर्देशन भी किया.
जगदीप ने अपने करियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में बीआर चोपड़ा की 1951 में रिलीज़ अशोक कुमार, वीणा और प्राण जैसे कलाकारों से सजी फिल्म 'अफसाना' से की. उन्होंने राज कपूर द्वारा निर्मित अब दिल्ली दूर नहीं, केए अब्बास की मुन्ना, गुरुदत्त की आर पार, बिमल रॉय की दो बीघा ज़मीन और एवीएम द्वारा निर्मित हम पंछी एक डाल के में भी एक बाल कलाकार के तौर पर अभिनय किया.
सूरमा भोपाली ही नहीं कॉमेडियन जगदीप के और भी कई किरदार हैं यादगार 'हम पंछी एक डाल के' ने सर्वश्रेष्ठ बच्चों की फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता. इसी के साथ फिल्म में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने युवा जगदीप को नोटिस किया. कहा जाता है कि इसके बाद, अभिनेता के शानदार अभिनय से प्रभावित होकर, नेहरू ने जगदीप को उपहार भी दिया था.
सूरमा भोपाली ही नहीं कॉमेडियन जगदीप के और भी कई किरदार हैं यादगार कॉमेडी में आने से पहले, अभिनेता ने मुख्य किरदार के रूप में कुछ सफल फिल्में भी कीं. जगदीप को भाभी (1957), बरखा (1960) और बिंदया (1960) जैसी फिल्मों में एवीएम द्वारा एक लीडिंग मेन के रूप में लॉन्च किया गया था, इसी के साथ नायक के रूप में उन्होंने कुछ और फिल्में भी कीं.
एक कॉमेडियन के रूप में उनका शानदार काम, हालांकि, जीपी सिप्पी की फिल्म ब्रह्मचारी (1968) से शुरू होगा, जिसमें शम्मी कपूर ने अभिनय किया था. फिल्म में उनकी कॉमिक भूमिका को काफी सराहा गया था. सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक के दौरान, वह दर्शकों को गुदगुदाने वाले एक नासमझ किरदार के रूप में हिंदी फिल्मों का एक जाना-पहचाना चेहरा बन गए.
सूरमा भोपाली ही नहीं कॉमेडियन जगदीप के और भी कई किरदार हैं यादगार हालांकि उनकी सूरमा भोपाली की भूमिका हमेशा दर्शकों के दिमाग में रची-बसी रहेगी, लेकिन नई पीढ़ी के बॉलीवुड शौकीन उन्हें राजकुमार संतोषी की फिल्म अंदाज़ अपना अपना (1994) में सलमान खान के पिता के रूप में याद करेंगे.
सूरमा भोपाली ही नहीं कॉमेडियन जगदीप के और भी कई किरदार हैं यादगार उनकी आखिरी रिलीज़ की गई फिल्म अली अब्बास चौधरी द्वारा निर्देशित कॉमेडी 'मस्ती नहीं सस्ती' (2017) है, जिसमें कादर खान, शक्ति कपूर, जॉनी लीवर और प्रेम चोपड़ा भी अहम किरदारों में नजर आए थे.
एक बाल कलाकार के रूप में शुरुआत करने वाले जगदीप ने खलनायकी और कॉमेडी के बीच एक प्रमुख व्यक्ति की भूमिका निभाने से लेकर फिल्म का निर्देशन करने तक सब कुछ किया और अपने अभिनय का आनंद लिया.
सूरमा भोपाली ही नहीं कॉमेडियन जगदीप के और भी कई किरदार हैं यादगार दिवंगत अभिनेता के बेटों जावेद जाफ़री और नावेद जाफ़री ने भी मनोरंजन उद्योग में अपनी पहचान बनाई है. जावेद एक प्रसिद्ध अभिनेता और डांसर हैं, और नावेद के साथ उन्होंने लंबे समय तक चलने वाले और लोकप्रिय डांस शो, बूगी वूगी की मेजबानी की. शो का निर्माण और निर्देशन नावेद ने किया था.
जगदीप का बुधवार रात 8.30 बजे बांद्रा स्थित उनके आवास पर उम्र से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के कारण निधन हो गया.
उनके जाने के साथ, हिंदी सिनेमा ने एक ऐसे अभिनेता को खो दिया. जिसने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया. या कह सकते हैं कि जिससे दर्शकों का खास जुड़ाव रहा.