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राजौरी से मुंबई तक सफर करने वाली अर्जुम्मन बोलीं- बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद जैसा कुछ नहीं

'या रब' फिल्म से सुर्खियां बटोरने वाली अभिनेत्री अर्जुम्मन मुगल का कहना है कि बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद जैसा कुछ नहीं होता है. सब कुछ कठिन परिश्रम पर निर्भर करता है. ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में अर्जुम्मन ने विस्तार से इन विषयों पर चर्चा की.

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Published : Aug 10, 2020, 2:58 PM IST

arjumman mughal journey from rajouri to mumbai
राजौरी से मुंबई तक सफर करने वाली अर्जुम्मन बोलीं- बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद जैसा कुछ नहीं

श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर के राजौरी से मुंबई तक का सफर करने वाली एक्टर अर्जुम्मन मुगल ने कहा कि बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद जैसा कुछ नहीं होता है. सबकुछ आपकी प्रतिभा और कठिन परिश्रम पर निर्भर करता है.

'या रब' फिल्म से सुर्खियां बटोरने वाली अर्जुम्मन ने हिंदी के अलावा क्षेत्रीय फिल्मों में भी काम किया है. ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने विस्तार से इन विषयों पर चर्चा की.

2014 की फिल्म 'या रब' से ख्याति प्राप्त करने वाली अभिनेत्री अर्जुम्मन मुगल ने कहा कि वह तनाव से लड़ना जानती हैं. उन्होंने कहा कि डिप्रेशन सिर्फ दिमाग का खेल होता है और आपको उसे समझना पड़ता है.

ईटीवी भारत के साथ बातचीत में अर्जुम्मन ने विस्तार से बातचीत की. उन्होंने राजौरी से मुंबई तक के सफर की भी अपनी कहानी साझा की.

राजौरी के लंबेरी गांव के एक पारंपरिक सोच वाले परिवार में उनका जन्म हुआ. उनके पिता आर्मी में थे. अर्जुम्मन ने बताया कि जाहिर है सेना के परिवार में अनुशासन का बहुत अधिक पालन होता है. हालांकि, मुझे परिवार से पूरा सपोर्ट मिलता रहा.

कैसा रहा आपका सफर.

जब मैं 12 साल की थी, तब मेरा परिवार दिल्ली चला आया था. वहां से मैं मुंबई आ गई. गांव और मेट्रो शहर, दोनों के बीच सांस्कृतिक अंतर तो साफ तौर पर झलक रहा था. मुंबई में मैं नई थी. मुझे अपनी सुरक्षा और वित्तीय दोनों चुनौतियों से लड़ना था. सीनियर एक्टर और मॉडल के ताने सुनने पड़े. मैं मुंबई की जीवनशैली में बिल्कुल नई थी. धीरे-धीरे चीजें मेरे अनुकूल होने लगीं. मैंने मॉडलिंग से शुरुआत की. उसके बाद मुझे तमिल फिल्मों का ऑफर मिला. इसने मेरी जिंदगी बदल दी. लोगों की सोच मेरे प्रति बदलने लगी. सफलता के लिए कोई शॉर्टकट नहीं होता है.

आपका गांव निंयत्रण रेखा के नजदीक पड़ता है. वहां पर जीवन कैसा था.

जम्मू-कश्मीर में स्थिति हमेशा बदलती रहती है. सामान्य नहीं रहती है. हमें शाम में सात बजे के बाद बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी. घर में बैठकर भी हम फायरिंग और धमाके की आवाज सुनते रहते थे. मुंबई की तुलना में जम्मू-कश्मीर की जिंदगी ज्यादा कठिन है. हालांकि, जो भी है लेकिन अच्छा है. हमें कुछ कारणवश अपना गांव छोड़ना पड़ा था. यह मेरे लिए लकी साबित हुआ. ऊपरवाले ने मुझे इसी काम के लिए चुना था. वो अपने तरीके से काम को करवाना जानता है. मैं मुंबई में सुरक्षित और आराम से हूं, लेकिन हमेशा अपने घर को मिस करती हूं.

आपकी पहली फिल्म 'या रब' 2014 में आई थी. उसके बाद 'ओ पुष्पा आई आई हेट टियर्स' इस साल आई. बीच के सालों में क्या हुआ.

यह मेरे लिए बहुत खराब रहा. दो सालों में मैंने अपने दो भाइयों को खो दिया. दोनों की मौत सड़क हादसे में हुई. मैं टूट चुकी थी. डिप्रेशन में थी. मेरा किसी काम में मन नहीं लगता था. इस बीच मुझे ओ पुष्पा.. का ऑफर मिल गया. मुझे मेरे दोस्तों ने काम करने के लिए मनाया. उसके बाद मैंने डिप्रेशन को धीरे-धीरे खत्म किया. यह फिल्म मेरे लिए दवा जैसी रही.

बॉलीवुड में कई रहस्य भी होते हैं. सुशांत सिंह राजपूत, दिव्या सलानी इन्होंने डिप्रेशन में आत्महत्या कर ली.

यह कोई पहली बार नहीं है कि किसी एक्टर ने आत्महत्या की हो. सुशांत से पहले जिया खान और अन्य कई एक्टरों और मॉडलों ने भी खुदकुशी कर ली. मुझे लगता है कि काम की कमी एक वजह हो सकती है. खासकर छोटे एक्टरों के लिए. लेकिन सुशांत ने कई फिल्मों में काम किया था. ऐसे अभिनेता एक साथ कई फिल्मों में काम करते हैं. कई कैरक्टरों को एक साथ निभाना मुश्किल होता है. बार-बार उसके अनुरूप ढालने में भी दिक्कत होती है. ऐसी परिस्थितियों में आपको एडजस्ट करना होता है. मुझे लगता है कि किसी को भी आत्महत्या जैसे कदम नहीं उठाने चाहिए.

भाई-भतीजावाद के विषय पर आप क्या कहना चाहेंगी. सुशांत मामले में इसे जोर-शोर से उछाला जा रहा है.

वह एक सुपरस्टार था. उसने कई बड़ी फिल्में की थीं. भाई-भतीजावाद की थ्योरी बकवास है. ऐसा कुछ नहीं होता है. नवाजुद्दीन सिद्दीकी, इरफान खान, जॉनी लिवर जैसे बेहतरीन कलाकार कहां से आ गए. ये सभी बाहरी ही तो थे. सबकुछ आपके टैलेंट और कठिन परिश्रम पर निर्भर करता है. अगर आप नेपोटिज्म जैसे हौआ को खड़ा करते हैं, तो आपके अंदर कुछ न कुछ कमी अवश्य है. और आप विक्टिम के तौर पर पेश करना चाहते हैं.

बॉलीवुड से पहले आपने तेलुगु, तमिल, मराठी और अन्य रीजनल भाषाओं में आपने काम किया है. कैसा रहा है आपका अनुभव.

रीजनल फिल्मों में ही आप भारत की वास्तविक सांस्कृतिक झलक देख सकते हैं. तेलुगु और तमिल तो एडवांस हैं. मेरी पहली फिल्म तमिल में थी. मैंने तेलुगु में बहुत सारी फिल्में की हैं. 'मलाबार गोल्ड' की शूटिंग मैंने रामोजी फिल्म सिटी में की थी. यह तेलुगु फिल्म थी. मेरा वहां पर बहुत अच्छा अनुभव रहा. द. भारत के लोगों से मुझे बहुत प्यार मिला. डायलॉग याद करने के लिए मुझे बहुत कठिन मेहनत करनी पड़ी. मैं खूब रोती थी, लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ी. बॉलीवुड में स्थितियां अलग हैं. बॉलीवुड का ट्रेंड मुझे पसंद नहीं है. एक अच्छी फिल्म आई, और फिर सारे लोग उसको ही फॉलो करने लगते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए. पहचान का सम्मान होना चाहिए.

आपके पसंदीदा कलाकार कौन हैं शाहरूख, आमिर खान या सलमान खान.

ये तीनों ही एक्टर मेरे पसंदीदा कलाकार हैं. मैं इन सबके साथ काम करना चाहती हूं. हालांकि, अभिनय के हिसाब से आमिर खान सबसे अच्छे हैं. अगर मुझे कभी उनके साथ काम करने का मौका मिला, तो मैं अपने को बहुत ही सौभाग्यशाली मानूंगी. मुझे ऋत्विक और अक्षय भी काफी पसंद हैं.

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