मुंबई:हिन्दी सिनेमा के महान सिंगर किशोर कुमार का हर गाना लोगों की जुबां पर आज भी है. इस महान गायक के जन्मदिन पर हम उनके जिंदगी के अनजाने सफर को याद करते हैं. 4 अगस्त 1929 को जन्में किशोर कुमार का आज 90 वां जन्मदिन है. किशोर दा ने अपने फिल्मी करियर में 600 से भी अधिक हिन्दी फिल्मों के लिए अपनी आवाज दी. उन्होंने बंगला, मराठी, आसामी, गुजराती, कन्नड, भोजपुरी और उड़िया फिल्मों में अपनी दिलकश आवाज के जरिए लोगों के दिलों में जगह बनाई.
मध्यप्रदेश के खंडवा में मध्यवर्गीय बंगाली परिवार में किशोर दा का जन्म हुआ था. अपने माता-पिता के सबसे छोटे बच्चे नटखट आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार का रूझान बचपन से ही पिता के पेशे वकालत की तरफ न होकर संगीत की ओर था. किशोर कुमार हमेशा से महान अभिनेता एवं गायक केएल सहगल की ही तरह के गायक बनना चाहते थे. सहगल से मिलने की चाह लिए किशोर दा 18 वर्ष की उम्र मे मुंबई पहुंच गए थे.
उनके बड़े भाई अशोक कुमार वहां बतौर अभिनेता अपनी पहचान बना चुके थे और वह चाहते थे कि किशोर नायक के रूप मे अपनी पहचान बनाए लेकिन खुद किशोर कुमार को अदाकारी के बजाय पार्श्वगायक बनने की चाह थी. इच्छा ना होते हुए भी किशोर कुमार ने अभिनय करना शुरु किया, क्योंकि उन्हें उस फिल्म में गाने का भी मौका मिल जाया करता था. किशोर कुमार की आवाज सहगल से काफी हद तक मेल खाती थी.बतौर गायक सबसे पहले उन्हें साल 1948 में बॉम्बे टाकीज की फिल्म 'जिद्दी' में सहगल के अंदाज में ही अभिनेता देवानंद के लिए 'मरने की दुआएं क्यूं मांगू' गाने का मौका मिला.
किशोर दा ने साल 1951 मे बतौर मुख्य अभिनेता फिल्म 'आंदोलन' से अपने करिअर की शुरुआत की लेकिन यह फिल्म दर्शकों को रास नहीं आई. उसके बाद1953 में प्रदर्शित फिल्म 'लड़की' बतौर अभिनेता उनके करियर की पहली हिट फिल्म थी. इसके बाद बतौर अभिनेता किशोर कुमार ने अपनी फिल्मों के जरिये दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया.किशोर कुमार ने 'मेरे सपनों की रानी', 'पल पल दिल के पास', 'तेरे बिना जिंदगी से कोई' और 'गाता रहे मेरा दिल' समेत तमाम ऐसे गानें गाए हैं, जो लोगों की जुबां पर आज भी चढ़े हुए हैं.
उन्होंने 1964 मे फिल्म 'दूर गगन की छांव में' के जरिए निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा. इसके बाद कई फिल्मों का निर्देशन किया. निर्देशन के अलावा उन्होंने कई फिल्मों में संगीत भी दिया जिनमें 'झुमरू', 'दूर गगन की छांव में', 'दूर का राही', 'जमीन आसमान' और 'ममता की छांव में' जैसी फिल्में शामिल हैं. 1987 में किशोर कुमार ने निर्णय लिया कि वह फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गांव खंडवा लौट जाएंगे. वह अक्सर कहा करते थे कि दूध जलेबी खाएंगे, खंडवा में बस जाएंगे. लेकिन उनका यह सपना अधूरा ही रह गया. 13 अक्टूबर 1987 को किशोर कुमार को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को अलविदा कह गए.
लेकिन आज भी किशोर दा के चाहने वालों की दीवानगी उनके प्रति वैसे ही बरकरार है. हमारे दिलों में उनकी जगह हमेशा बनी रहेगी.