हैदराबाद: साइंस ऑफ इवोलुशन (क्रमिक विकास संबंधी विज्ञान) में अपना अहम योगदान देने वाले, प्रख्यात साइंटिस्ट चार्ल्स रोबर्ट डार्विन का जन्म 12 फरवरी 1909 में हुआ था. इनका यह भी कहना था की समान पूर्वजों से उत्पन्न हुई हैं कई जातियां. यह धारणा, आजकल साइंस का अहम हिस्सा मानी जाती है.
अल्फ्रेड रसेल वॉलिस के साथ मिलकर इन्होंने इस क्रमिक विकास को एक वैज्ञानिक सिद्धांत बताया और इसे नेचुरल सेलेक्शनका नाम दिया. 1859 में अपनी किताब 'ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज में अपने इस इवोलुशन (क्रमिक विकास) के सिद्धांत को प्रकाशित किया.
1870 तक कई लोगों ने इस सिद्धांत को अपना लिया था. इसमें कई साइंटिफिक कम्युनिटीज (वैज्ञानिक सम्प्रदाय) शामिल थीं. काफी पढ़े लिखे लोगों ने भी इसे अपना लिया था.
ऐसे भी कुछ लोग थे, जिन्होंने डार्विन के इस इवोलुशन के सिद्धांत को लेकर कई सवाल उठाये पर धीरे धीरे 1930 से 1950 के दौरान, सभी ने यह मान लिया था कि यह इवोलुशन यानि कि क्रमिक विकास, नेचुरल सेलेक्शन के तहत ही होता है.
शुरू से ही डार्विन की रूचि प्रकृति में इतनी थी की उनकी यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्घ में मेडिकल की पढाई भी सही से नहीं हो पाई. अपना ज्यादा से ज्यादा समय, डार्विन मरीन इन्वेर्टेब्रेटेस (एक किस्म के समुद्री जीव जंतु) की खोज में लगा देते थे. यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज (कैंब्रिज विश्वविद्यालय )में डार्विन ने अपनी नेचुरल साइंस (प्राकृतिक विज्ञान) की पढाई की. नेवी के जहाज, एचएमएस बीगल पे डार्विन ने वाइल्डलाइफ (वन्य जीव-जंतु) और फॉसिल्स (खनिज पदार्थोंं) को लेकर गहन अध्ययन किया. यह इनके बारे में विस्तार से खोज बीन करने लगे और समय के साथ एक प्रसिद्ध जियोलॉजिस्ट यानि की भूवैज्ञानिक के रूप में जाने गए. इतना ही नहीं, 1838 में नेचुरल सेलेक्शन के सिद्धांत को डार्विन ने इजात किया.
1871 में 'द डिसेंट ऑफ मैन, और सिलेक्शन इन रिलेशन टू सेक्स' नामक किताब में डार्विन ने इंसानों के ऐवोलुशन (क्रमिक विकास ) एंड सेक्सुअल सेलेक्शन (लैंगिक चयन) के बारे में लिखा। 1872 में इन्होंने दूसरी किताब लिखी, जिसका नाम था, 'द एक्सप्रेशन ऑफ़ द इमोशंस इन मैन एंड एनिमल्स'.