झील या प्राकृतिक जलस्रोतों में जलकुंभी बहुत तेजी से बढ़ती है. जलकुंभी दूसरे देशों में बायो एनर्जी के रूप में उपयोग की जाती है. कुछ ही दिनों में 100 गुना ज्यादा वृद्धि कर पूरे जलस्रोत को ढक लेता है. जिसके कारण सूरज की किरणें पानी के अंदर नहीं पहुंच पाती है. जल स्रोत के अंदर जो दूसरे पौधे और जीव होते हैं. वहां प्रकाश नहीं पहुंचने के कारण ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और वह मरने लगते हैं. कई ऐसे जलस्रोत देखने मिलेंगे,जो जलकुंभी के कारण जमीन में तब्दील हो गए हैं. भारतीय वैज्ञानिक प्रो अश्वनी कुमार ने जलकुंभी को माइक्रोबियल तरीके से विघटित कर शुगर बनाया. जिसे हम चीनी कहते हैं और शुगर में एक फंगस सेक्रोमाइसिस मिला दें तो वह शुगर को एथेनॉल में परिवर्तित कर देता है. जिसे हम बायोएथेनॉल बोलते हैं. क्योंकि इसे बायो मेथड से बनाया गया है.
प्रो अश्वनी कुमार (Research by Prof Ashwani Kumar) बताते हैं कि, सागर जिले की ऐतिहासिक लाखा बंजारा झील की बदहाली को देखकर उन्हें शोध की प्रेरणा मिली है. जब उन्होंने देखा कि, लाखा बंजारा झील को जलकुंभी निगलती जा रही है और शहर की पहचान कहा जाने वाला ये तालाब भविष्य में जमीन में तब्दील हो सकता है, (Research on Hyacinth) तब उन्होंने जलकुंभी से बायो फ्यूल बनाने पर शोध किया. (Biofuel can be made from hyacinth) इनके शोध को कई अंतरराष्ट्रीय साइंस जनरल में भी स्थान देने के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर उनकी रिसर्च को सराहा गया है.
विशाल जलस्रोत को भी निगल जाती है जलकुंभी:सागर मध्यप्रदेश के डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय (Dr Harisingh Gour University Sagar MP) के प्रो. अश्विनी कुमार की मानें तो वह झील या प्राकृतिक जलस्रोतों को देखते रहते हैं. इनमें जलकुंभी बहुत तेजी से बढ़ती है. शुरुआत में जलकुंभी ब्राजील से बंगाल लाई गई थी, जिसका उपयोग खूबसूरती के लिए किया जाता था. लोगों ने इसे खूब पसंद किया और पानी में लगाना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे यह फैलता चला गया.
ऐसे ढकता है जलस्रोत:जलकुंभी की खास बात ये है कि, इसका एक पौधा 4 से 5 हजार बीज उत्पन्न करता है और इसका बीज 20 से 28 साल तक खराब नहीं होता है. मिट्टी में भी रहता है तो दोबारा अंकुरित हो जाता है. ये कुछ ही दिनों में 100 गुना ज्यादा वृद्धि कर पूरे जलस्रोत को ढक लेता है. जिसके कारण सूरज की किरणें पानी के अंदर नहीं पहुंच पाती है. जल स्रोत के अंदर जो दूसरे पौधे और जीव होते हैं. वहां प्रकाश नहीं पहुंचने के कारण ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और वह मरने लगते हैं. जब हम इस तरह के जल स्रोत के पास से गुजरते हैं तो बदबू आती है. जो सड़ने की गंध होती है. एक प्राकृतिक क्रिया के जरिए जलकुंभी बहुत जल्दी वृद्धि करता है और पूरे जलस्रोत को निगल लेता है. कई ऐसे जलस्रोत देखने मिलेंगे,जो जलकुंभी के कारण जमीन में तब्दील हो गए हैं.
आइनिक लिक्विड ने बनाया शोध को आसान:प्रो. अश्विनी कुमार बताते हैं कि, इस रिसर्च के पीछे उद्देश्य स्थानीय समस्याओं पर काम करना था. हम सागर झील के आसपास से गुजरते थे, तो देखते थे कि, यहां बड़े पैमाने पर जलकुंभी नजर आती है. जलकुंभी का वैज्ञानिक नाम (eichhornia crassipes) है. हमने जलकुंभी पर काम शुरू किया, तो डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के केमिस्ट्री के वैज्ञानिक डॉ. उप्पल घोष ने आईनिक लिक्विड उपलब्ध कराया.