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Special Session Of Parliament : संसद के विशेष सत्र में क्या है खास?, जानिए कब-कब बुलाए जा चुके हैं ऐसे सत्र

केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा की है. ऐसे समय में जब विपक्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन की रणनीति बनाने में जुटा है, नि:संदेह विशेष सत्र की घोषणा ने उसके कार्यों में बाधा डाली. पढ़िए राज्यसभा के पूर्व महासचिव, रिटायर्ड आईएएस विवेक के. अग्निहोत्री का विश्लेषण.

Special Session Of Parliament
संसद के विशेष सत्र में क्या है खास

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 2, 2023, 10:51 PM IST

Updated : Sep 11, 2023, 6:57 PM IST

नई दिल्ली :31 अगस्त 2023 को जब विपक्ष, I.N.D.I.A. गठबंधन के बैनर तले अपनी भावी कार्ययोजना बनाने के लिए मुंबई में एकत्रित हो रहा था और कुछ अन्य लोग देर से रक्षा बंधन मना रहे थे, तब केंद्र सरकार ने नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के 10 सितंबर को समापन के तुरंत बाद 18 से 22 सितंबर तक संसद के विशेष सत्र की घोषणा की (Special Session Of Parliament ).

संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि विशेष सत्र में पांच बैठकें होंगी और अमृत काल (आजादी के 100 साल पूरे होने तक की चौथाई सदी) के बीच सरकार सार्थक चर्चा और बहस की उम्मीद कर रही है.

संसद को विशेष सत्र के लिए बुलाना कोई अनोखी बात नहीं है. यह असामान्य है, लेकिन असंवैधानिक नहीं. भारत के संविधान के अनुच्छेद 85 में कहा गया है कि राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर बैठक के लिए बुलाएगा, जैसा वह उचित समझे, लेकिन एक सत्र की अंतिम बैठक और अगले सत्र में इसकी पहली बैठक के लिए नियत तिथि के बीच छह महीने का अंतर नहीं होगा.

चूंकि अभी-अभी मानसून सत्र समाप्त हुआ है, इसलिए छह महीने से अधिक का अंतराल न रखने की आवश्यकता बिल्कुल भी चिंता का विषय नहीं है. इसके अलावा, संविधान में कहीं भी एक वर्ष के दौरान सिर्फ तीन अवसरों पर संसद बुलाने का प्रावधान नहीं है, अर्थात् बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र.

संविधान के अनुच्छेद 352 में आपातकाल की घोषणा के संदर्भ में लोकसभा की 'विशेष बैठक' का उल्लेख है, जो यहां प्रासंगिक नहीं है. अतीत में उचित बहस और चर्चा के साथ-साथ कुछ ऐतिहासिक घटनाओं का जश्न मनाने के लिए विशेष सत्र आयोजित किए गए हैं.

जानिए कब-कब बुलाए गए विशेष सत्र:1962 में भारत-चीन युद्ध की स्थिति पर चर्चा के लिए स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के सुझाव पर 8-9 नवंबर को एक विशेष सत्र बुलाया गया था.

डॉ. बी.आर. अंबेडकर को उनकी 125वीं जयंती पर श्रद्धांजलि देने के लिए 26-27 नवंबर, 2015 को एक विशेष सत्र आयोजित किया गया था. लोकसभा और राज्यसभा में दो दिवसीय विशेष बैठकें भारतीय संविधान के निर्माता के सम्मान में साल भर चलने वाले समारोहों का हिस्सा थीं. इस दौरान बहस का विषय था- संविधान के प्रति राजनीति की प्रतिबद्धता. उसी वर्ष, भारत सरकार ने डॉ. अंबेडकर के विचारों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए 26 नवंबर को 'संविधान दिवस' के रूप में घोषित किया था.

भारत की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए 26 अगस्त से 1 सितंबर 1997 तक छह दिवसीय विशेष सत्र आयोजित किया गया था. 1 जुलाई 2017 से प्रभावी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अधिनियम के कार्यान्वयन को चिह्नित करने के लिए 30 जून, 2017 को लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त संसदीय बैठक आयोजित की गई थी.

पहला उत्सव सत्र भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर 14-15 अगस्त, 1947 को आयोजित किया गया था. इसके अलावा भारत छोड़ो आंदोलन की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए 9 अगस्त 1992 को और भारत की स्वतंत्रता की रजत जयंती मनाने के लिए 14-15, 1972 की मध्यरात्रि को भी उत्सव सत्र आयोजित किए गए थे.

वर्तमान विशेष सत्र भारत की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए 1997 में आयोजित छह दिवसीय विशेष सत्र के सबसे करीब है. वर्तमान सत्र अन्य बातों के साथ-साथ शुभ गणेशोत्सव के दौरान और मोदी के जन्मदिन के करीब है. जो, जी 20 देशों के सांसदों की मौजूदगी में नए संसद भवन के कामकाज को चिह्नित कर सकता है.

विशेष सत्र के एजेंडे के संबंध में संसदीय कार्य मंत्री ने कहा है कि इसे शीघ्र ही साझा किया जाएगा. विशेष सत्र की घोषणा ने निस्संदेह विपक्ष के कार्यों में बाधा उत्पन्न की है. क्योंकि वह 2024 में होने वाले अगले लोकसभा चुनावों से पहले विभिन्न मुद्दों पर अपनी रणनीति को मजबूत करने के लिए बैठक कर रहा था. अटकलें लगाई जा रही हैं कि सरकार संसद में महिलाओं के लिए आरक्षण जैसे कुछ महत्वपूर्ण लेकिन विवादास्पद कानूनों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकती है.

लेकिन, 'एक देश एक चुनाव' की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक पैनल की घोषणा के साथ, इसे व्यवहार में लाने की विधायी प्रक्रिया सबसे आगे हो गई है. हालांकि, यह जितना कहना आसान है, कार्यान्वित करना उतना ही मुश्किल है. इस मामले पर 1983 से ही समय-समय पर विचार किया जाता रहा है. 2018 में विधि आयोग की एक मसौदा रिपोर्ट ने लोकसभा चुनाव 2019 से शुरुआत करते हुए देश में चुनावों को एक साथ कराने के लिए तीन विकल्पों की सिफारिश की थी.

अवधारणा के कई फायदे और नुकसान के अलावा, कानूनों, नियमों और विनियमों में बड़ी संख्या में संशोधन करने की आवश्यकता होगी, जिससे कार्य बहुत कठिन हो जाएगा. यदि यह असंभव नहीं भी है, कठिन तो जरूर है. और फिर कोई न कोई इसे अदालत में चुनौती भी देगा, संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर में संशोधन हो सकता है या नहीं, ऐसे सवाल जरूर उठेंगे.

संविधान संशोधन में अनुच्छेद 83 (सदनों की अवधि), 85 (लोकसभा का विघटन), 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि), 174 (राज्य विधानमंडलों का विघटन), 356 (संवैधानिक मशीनरी की विफलता) और दसवीं अनुसूची (यह सुनिश्चित करने के लिए कि दलबदल से उत्पन्न सभी अयोग्यता संबंधी मुद्दों पर पीठासीन अधिकारी द्वारा छह महीने के भीतर निर्णय लिया जाए) को शामिल करना होगा. राज्य विधानमंडलों के कम से कम आधे हिस्से द्वारा संशोधनों के अनुसमर्थन को भी बहुत सावधानी के तौर पर लेने की आवश्यकता हो सकती है.

कानूनों में संशोधन के लिए अन्य बातों के साथ-साथ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में बदलाव की आवश्यकता होगी, जैसे कि धारा 2 ('एक साथ चुनाव' की परिभाषा जोड़ना), और धारा 14 और 15 (आम और राज्य विधानसभा चुनावों की अधिसूचना). 'अविश्वास प्रस्ताव' को 'अविश्वास के रचनात्मक वोट के प्रस्ताव' से बदलने के लिए लोकसभा और राज्य विधान सभाओं की प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों में संशोधन करने की आवश्यकता होगी.

एक साथ चुनाव के लिए शायद सबसे बड़ी बाधा राजनीतिक सर्वसम्मति होगी, जिसके लिए कुछ राज्यों की सरकारों को अपनी विधानसभाओं की शर्तों को कम करने और अपनी क्षेत्रीय पहचान को त्यागने के लिए सहमत होना होगा. हालांकि संभावना के दायरे में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना आदि राज्य विधानसभाओं के आगामी विधानसभा चुनावों के साथ मेल खाने के लिए अगले संसदीय चुनावों की घोषणा करना है.

केंद्र सरकार महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों जहां 2024 में चुनाव होने हैं, उनको भी इसमें शामिल होने के लिए मनाने का प्रयास कर सकती है. यह 'एक राष्ट्र एक चुनाव' के भव्य दृष्टिकोण की ओर बढ़ने के लिए एक छोटा कदम हो सकता है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिन देशों में 'एक राष्ट्र एक चुनाव' प्रणाली है उनमें बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, इंडोनेशिया, पोलैंड, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं. हालांकि अमृत ​​काल के बीच 5 दिनों के छोटे से विशेष सत्र में वास्तव में क्या होने वाला है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

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Last Updated : Sep 11, 2023, 6:57 PM IST

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