कार्ल मार्क्स के राजनीतिक और दार्शनिक विचारों का खास तबके पर खास असर देखा जाता है. बौद्धिक, आर्थिक और राजनीतिक, सामाजिक तानेबाने पर इनके कई विचारों के प्रभाव को देखा और महसूस किया जा सकता है. समाज, अर्थशास्त्र और राजनीति के बारे में कार्ल मार्क्स के आलोचनात्मक सिद्धांत काफी चर्चित हुए हैं, जिनको विस्तार से मार्क्सवाद के रूप में जाना व समझा जाता है.
कार्ल मार्क्स मानते हैं कि मानव समाज वर्ग संघर्ष के माध्यम से विकसित होते हैं. उत्पादन की पूंजीवादी व्यवस्था में यह उत्पादन के साधनों को नियंत्रित करने वाले शासक वर्ग और मजदूरी के जरिए श्रम-शक्ति को बेचकर इन साधनों को सक्षम बनाने वाले मजदूरों के संघर्ष से प्रकट होता है. कार्ल मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद के रूप में दिए गए अपने सिद्धांत से मार्क्स ने भविष्यवाणी की थी कि जिस तरह से पूंजीवाद ने पिछली सामाजिक आर्थिक प्रणालियों की तरह आंतरिक तनाव को न सिर्फ पैदा किया है, बल्कि आगे भी बढ़ाया. ये तनाव इसके आत्म-विनाश और उत्पादन के समाजवादी व्यवस्था के रूप में जानी जाने वाली एक नई प्रणाली द्वारा बदल दी जाएगी.
कार्ल मार्क्स मानते हैं कि पूंजीवाद के खिलाफ जन्मे विरोध के कारण श्रमिक वर्ग में एक नयी चेतना का विकास होगा, जो उन्हें आगे बढ़ाएगा. इसी से उनकी राजनीतिक सत्ता पर जीत होगी और अंततः एक वर्गहीन उत्पादकों के मुक्त संघ, साम्यवादी समाज की स्थापना हो जाएगी.