वैसे तो पूरा विश्व कार्ल हेनरिक मार्क्स को समाजवादी क्रांतिकारी और वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता के रूप में जानता है, लेकिन उनको एक दार्शनिक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार, राजनीतिक सिद्धांतकार, समाजशास्त्री के साथ साथ पत्रकार व राजनीतिक अर्थव्यवस्था के आलोचक भी कहा जाता है, जिसने अपनी सोच व दूरदृष्टि से एक ऐसी अवधारणा दी, जिसका पूरे विश्व पर व्यापक असर पड़ा और कई जगहों पर आज भी उनकी विचारधारा पर अमल किया जाता है. उनकी 'द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो' और 'दास कैपिटल' का प्रभाव दुनिया भर के राजनीतिक और दार्शनिक विचारधाराओं पर गहरा प्रभाव छोड़ा, जिससे पूरा विश्व एक तरह से दो धड़ों में बंट गया. आज भी दुनिया भर में कार्ल मार्क्स के विचारों को माना जाता है और उसे प्रासंगिक बताया जाता है.
कार्ल मार्क्स को मानव इतिहास में सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में गिना जाता है. कुछ लोगों ने एक ओर जहां उनके काम की प्रशंसा की तो कुछ लोगों ने जमकर आलोचना भी की. कुछ लोगों ने तो उसे अपनाया भी और उसे अपनी विचारधारा में भी स्थान दिया. अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में उनके काम ने श्रम और पूंजी के संबंध के बारे में कुछ मौजूदा सिद्धांतों के लिए आधार तैयार करने का काम किया, जिसे दुनिया भर में कई बुद्धिजीवियों, श्रमिक संघों, कलाकारों और राजनीतिक दलों ने अपनाया. लेकिन समय समय पर उसमें संशोधन व परिमार्जन करने की भी बात कही जाती रही.
कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 को जर्मनी के राइन प्रांत में ट्रियर नगर में रहने वाले एक यहूदी परिवार में हुआ था. ऐसा कहा जाता है कि साल 1824 में इनके परिवार ने ईसाई धर्म को अपना लिया. इसके बाद केवल 17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स ने कानून की पढ़ाई करने के लिए जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय में अपना दाखिला लिया. इसके बाद वह बर्लिन और जेना विश्वविद्यालयों में जाकर साहित्य, इतिहास और दर्शन का पूरे मनोयोग से अध्ययन किया.
उनके विचारों को देखकर लगता है कि वह हीगेल के दर्शन से बहुत अधिक प्रभावित थे. 1839-41 के बीच उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर ली. इसके बाद कार्ल मार्क्स ने 1843 में जर्मन थिएटर समीक्षक और राजनीतिक कार्यकर्ता जेनी वॉन वेस्टफेलन से शादी कर ली थी. अपनी अलग तरह की विचारधारा व राजनीतिक मुद्दों पर लिखने पढ़ते रहने के कारण उनको देश निकाला दे दिया गया था. इसके कारण उनको दशकों तक लंदन में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ निर्वासित का जीवन जीना पड़ा. काफी दिनों तक कार्ल मार्क्स ने जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक एंगेल्स के साथ काम किया. दोनों मिलकर अपने विचारों को विस्तार दिया. साथ ही ब्रिटिश म्यूजियम रीडिंग रूम में शोध करके अपने विचार दुनिया के सामने लाते रहे.
आज कार्ल मार्क्स का जन्मदिन है. लोग उनके विचारों व सिद्धांतों को याद कर रहे हैं. अगर कार्ल मार्क्स के इन तीन विचारों को देखेंगे तो लगेगा कि ये पहले भी प्रासंगिक थे और आज भी प्रासंगिक हैं...
1. दुनियाभर के कर्मचारी, एकजुट हो जाओ.. आपके पास अपनी जंजीरों के अलावा खोने के लिए कुछ भी नहीं है..कार्ल मार्क्स का यह नारा उस समय खूब चर्चित हुआ था और इसने लोगों में एक जोश भर दिया. लोग इसे एक मूलमंत्र के रूप में स्वीकार किया और कार्ल मार्क्स के इस नारे को जुल्म व शोषण के विरुद्ध लोगों को एकजुट करने के लिए प्रेरित कर दिया. आज भी जब जुल्म व अन्याय के खिलाफ आंदोलनकारी एकजुट होना चाहते हैं तो वह पीड़ितों को इस नारे से प्रेरित करते हैं, ताकि वह अपने नुकसान के बारे में अधिक न सोचते हुए अन्याय के खिलाफ उठ रही आवाजों का साथ दे और भविष्य की संभावनाओं के बारे में सोचे.
2. समाज की प्रगति समाज में महिलाओं को मिले स्थान से जानो- कार्ल मार्क्स ने कहा था कि समाज की प्रगति समाज में महिलाओं को मिले स्थान से ही मापी जानी चाहिए. इतिहास भी इस बात का गवाह है कि बिना आधी आबादी को साथ लिए कोई बड़ा परिवर्तन नहीं किया जा सकता है. इसलिए महिला को किसी दायरे तक सीमित करना सामाजिक व्यवस्था की प्रगति के लिए अच्छी बात नहीं है. कार्ल मार्क्स कहते थे कि बड़ा सामाजिक बदलाव बिना महिलाओं के उत्थान के असंभव है. महिलाओं का स्तर नीचा रहेगा तो उच्चकोटि की सामाजिक प्रगति संभव ही नहीं है. महिलाओं की सामाजिक स्थिति को देखकर ही किसी देश व समाज की असली प्रगति मापी जा सकती है. आज भी इस अवधारणा को लोग मानते हैं और महिलाओं को पुरुष के बराबर का दर्जा देने के लिए अधिकांश देशों में काम किया जा रहा. ताकि प्रगति अधूरी व मैन-डॉमिनेटेड न हो.
3. लोग क्या कहेंगे.. ये सोचकर जीवन में अपने जूनून को मत छोड़ें- कार्ल हेनरिक मार्क्स ने जब समाज के हालात को देखकर कुछ अलग करने की सोचा तो उनके मन में भी ये विचार आया था कि लोग क्या कहेंगे..लेकिन उन्होंने उसकी परवाह नहीं की और अपनी सोच व उद्देश्य को लेकर आगे बढ़े और लोगों के सामने एक ऐसी विचारधारा लायी, जिससे पूरी दुनिया में क्रांति आ गयी. उनको इस तरह की बातें लिखने पढ़ने से रोकने के लिए तमाम तरह की यातनाएं देने की कोशिश की फिर भी वह नहीं माने. देश छोड़ने के लिए मजबूर किए जाने के बाद भी वह और प्रभावी तरीके से काम किया. ब्रिटेन जाकर न सिर्फ जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक एंगेल्स के साथ काम करके अपने आप को और मजबूत बनाया. बल्कि ऐसे सिद्धांतों की रचना कर दी कि रूस की क्रांति हो गयी. यह सामाजिक हालात को बदलने के लिए होने वाले संघर्षों का एक बड़ा उदाहरण है.
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