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Editorial on Freedom of Press in India : स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए स्वतंत्र मीडिया का होना जरूरी

किसी भी व्यक्ति या फिर सरकार की कमियों को सामने लाना है, तो मीडिया उचित माध्यम बन सकता है. लेकिन मीडिया स्वतंत्र होकर काम करे, तभी ऐसा संभव है. यदि वह लगातार भय के साए में रहेगी, तो प्रजातंत्र का मूल मकसद ध्वस्त हो जाएगा. पेश है इसी विषय पर ईनाडु संपादकीय.

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प्रेस फ्रीडम

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 8, 2023, 3:22 PM IST

हैदराबाद : मीडिया की मूल जिम्मेदारी तथ्यों को प्रस्तुत करना रहा है. किसी भी प्रजातंत्र के लिए स्वतंत्र मीडिया का होना, सरकार के लिए आईना दिखाने का काम करना होता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी अप्रैल महीने में मलयाली न्यूज चैनल मीडिया वन पर प्रतिबंध को गलत ठहराते हुए ऐसी ही टिप्पणी की थी. यह एक ऐतिहासिक निर्णय था, जिसने फिर से याद दिलाया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लोगों के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है, जब तक कि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत न हों.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बावजूद पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर लगातार हमले हो रहे हैं. अभी हाल ही में न्यूज क्लिक पोर्टल के खिलाफ कार्रवाई की गई. दिल्ली पुलिस ने इनसे जुड़े पत्रकारों के घरों पर छापे मारे और उन्हें हिरासत में भी लिया. कुछ की गिरफ्तारियां भी की गईं. 76 साल के प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी की गई. वह न्यूज क्लिक के फाउंडर एडिटर हैं. उनके साथ-साथ एचआर विभाग के हेड अमित चक्रवर्ती को भी गिरफ्तार किया गया. चक्रवर्ती दिव्यांग हैं.

2009 से ही न्यूज क्लिक पोर्टल क्रिटिकल जर्नलिज्म के लिए जाना जाता रहा है. लेकिन आज उसे बंद करने की नौबत आ गई. संबंधित व्यक्तियों के मोबाइल और अन्य गैजेट्स भी जब्त कर लिए गए. इनमें नियमों और प्रक्रियाओं की पूरी तरह से अनदेखी की गई.

न्यूज क्लिक शुरुआत से ही क्रिटिकल जर्नलिज्म के लिए जाना जाता रहा है. वह लगातार ऐसी खबरें कर रहा था जिससे स्थापित सरकारें असहज हो जाती थीं. खासकर किसान आंदोलन के दौरान जिस तरीके से इसने सरकार की पोल खोली, उससे इनका मापदंड और अधिक ऊपर हो गया था.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने भी अपने एक फैसले में कहा था कि पत्रकारिता किसी भी व्यक्ति और संस्था की कमियों को उजागर करने का सबसे सशक्त माध्यम है. वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि अगर मीडिया को सेंसर या फिर कंट्रोल किया गया, तो सच्चाई को सामने कौन लाएगा, और प्रजातंत्र का मूल मकसद पूरा नहीं हो पाएगा. हाल ही में दिल्ली पुलिस ने जिस आक्रामकता के साथ काम किया, उसने प्रेस की मूल आत्मा पर प्रहार किया है. उसने अनुचित हस्तक्षेप किया है.

न्यूज क्लिक पर की गई कार्रवाई कोई अकेला उदाहरण नहीं है. यह एक पैटर्न की अगली कड़ी भर है. दो साल से अलग-अलग जांच एजेंसियां ईडी, आईटी, दिल्ली पुलिस, फाइनेंशियल ऑफेंस विंग न्यूज क्लिक पर छापे मार रही थी. उन पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगा है. कंपनी के खिलाफ जांच चल रही है. इसके बावजूद न्यूज क्लिक ने अपनी मर्यादा बनाए रखी, जो यह साबित करता है कि एजेंसियां उनके खिलाफ ठोस सबूत सामने नहीं रख सकीं.

इससे भी खतरनाक ट्रेंड यह है कि सरकार किसी भी आलोचना को एंटी नेशनल प्रोपेगैंडा और देशद्रोह का हिस्सा मानती है. परस्पर विरोधी विचारधारा को टारगेट किया जा रहा है. 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा था और ईडी को कड़ी कार्रवाई करने के रोका गया. लेकिन जब से दिल्ली पुलिस ने यूएपीए के तहत कार्रवाई शुरू की, तब से परिस्थितियां बदल गईं. पोर्टल पर चीन से फंड लेने का आरोप लगाया गया. शुरुआत में तो एजेंसी ने एफआईआर की कॉपी भी रिलीज नहीं की, जो खुद दर्शाता है कि एजेंसी की कार्रवाई में पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव है.

इसके विरोध में कई पत्रकारों ने मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखकर चिंता जताई. इस चिट्ठी में उस ट्रेंड को खतरनाक बताया गया है कि जिसमें पत्रकारिता को आतंकवाद से जोड़ दिया जा रहा है. किसी भी एजेंसी के दुरुपयोग का यह खुल्लम-खुल्ला उदाहरण है. यह पत्रकारिता पर बड़ा हमला है. अब हरेक पत्रकार को यह डर सताता रहेगा कि कहीं उसके खिलाफ कार्रवाई न हो जाए.

प्रजातंत्र के लिए परस्पर विरोधी विचारधारा का सम्मान करना और आलोचनाओं को संयम के साथ स्वीकार करना उसकी मजबूती के उदाहरण हैं. यह बहुत ही दुखद है कि सत्ता में बैठी सरकार विरोधी विचारधारा वाले संस्थानों से बातचीत करने के बजाए उनके खिलाफ कार्रवाई करने का मन बनाया हुआ है. इस तरह से प्रेस की आजादी पर बड़े हमले कर रही है. और इस तरह से आम जनता और बोलने की आजादी पर हमला है. वे जांच एजेंसियों को हथियार बनाकर काम कर रहे हैं. इस तरह से लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है.

खुद महात्मा गांधी ने कहा था कि प्रेस की आजादी तभी बनी रहेगी, जब उसे किसी भी विषय पर खुलकर अपनी राय रखने की स्वतंत्रता हासिल होगी और वह भी कठोर भाषा में. भारत में गांधी जैसा कोई नेता तो नहीं हुआ, लेकिन हमारे यहां एक ट्रेंड डेवलप हो गया है कि जो कठिन सवालों से बचते रहते हैं, उन्हें हम बड़ा नेता बताने लग जाते हैं. अलग-अलग विचारों और आलोचनाओं को हम चुनौतियों के रूप में स्वीकार कर रहे हैं. और उसके बाद हम उन्हें दबाने का प्रयास करते रहते हैं.

आप आंध्र प्रदेश का ही उदाहरण ले लीजिए. यहां पर भी जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने दो बड़े मीडिया हाउस के खिलाफ ऐसा ही रवैया अपना रखा है. वैसे पत्रकार जो साहस के साथ सच्चाई का उजागर करते रहते हैं, उन्हें प्रताड़ित और परेशान किया जाता है. 2014-19 के बीच पूरे देश में 200 से अधिक पत्रकारों को निशाना बनाया गया है. इनमें से 40 पत्रकारों को तो अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ा.

प्रेस की आजादी के इंडेक्स में भारत का स्थान लगातार नीचे गिरता जा रहा है. सरकार आलोचनाओं को बर्दाश्त नहीं करती है. 2016 में इस इंडेक्स में भारत का स्थान 133 वां था, जबकि आज हमारा स्थान 161 वां हैं. कुल 180 देशों को इसमें शामिल किया गया है. इसके ठीक उलट नॉर्वे, आयरलैंड, डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड में प्रेस की आजादी की रक्षा की जाती है.

स्वच्छंद आवाज को दबाना और पत्रकारों पर लगातार हमले करना भारत के लिए उचित नहीं कहा जा सकता है. और बृहत्तर रूप में कहेंगे तो यह प्रजातंत्र के लिए भी ठीक नहीं है. ऐसे ट्रेंड प्रेस की आजादी पर सीधा हमला करते हैं और अंततः आप निरंकुश शासन की ओर लगातार बढ़ते रहते हैं. यह कहना बिल्कुल सही होगा कि इस तरह के कृत्यों से अंततः आम जनता का ही नुकसान होता है.

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