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विशेष : भारत को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बदलनी होगी रणनीति

भारत को चीन पर दबाव बनाना है, तो उसे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी रणनीति बदलनी होगी. हमारी पारंपरिक सोच और रणनीति काम नहीं आएगी. कारगिल समीक्षा समिति ने सीमा प्रबंधन को लेकर कई सुझाव दिए हैं. उस पर अविलंब कार्रवाई की जरूरत है. यह कहना है कि रि. ले. जन. डीएस हुड्डा का. उन्होंने इस विषय पर विशेष टिप्पणी की है. आइए इस पर एक नजर डालते हैं.

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लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीएस हुड्डा

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Published : Jun 9, 2020, 10:56 AM IST

Updated : Jun 16, 2020, 2:21 PM IST

2019 में चीन ने 663 बार घुसपैठ की. अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में हुई 404 घुसपैठ की घटनाएं हुईं. हम अक्सर इस बात पर संतोष जताते हैं कि 1975 से आजतक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर एक भी गोली नहीं चली है, लेकिन सीमाओं पर दोनों पक्षों द्वारा मुखरता बढ़ने से संयम टूट सकता है, जो अनपेक्षित संकट को जन्म दे सकता है. इस समय उचित होगा कि सीमा प्रबंधन के लिए प्रक्रियाओं और प्रोटोकॉल की व्यापक समीक्षा की जाए, ताकि वास्तविक नियंत्रण रेखा की शुचिता सुनिश्चित करने के साथ-साथ किसी भी संघर्ष से बचा जा सके.

मंत्रियों के समूह द्वारा गठित कारगिल समीक्षा समिति ने सीमा प्रबंधन सहित राष्ट्रीय सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं पर गौर करने के बाद एक रिपोर्ट सामने रखी थी. उनकी रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है.

'वर्तमान में एक ही सीमा पर एक से अधिक ताकतें काम कर रहीं हैं और कमांड और नियंत्रण पर चल रही खींचातानी पर सवाल अक्सर उठाए जाते रहे हैं. एक ही सीमा पर बलों की बहुलता के कारण भी बलों की ओर से जवाबदेही की कमी देखी गई है. जवाबदेही को लागू करने के लिए, सीमा पर बलों की तैनाती पर विचार करते हुए ‘एक सीमा एक बल’ के सिद्धांत को अपनाया जा सकता है.'

फिलहाल वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस दोनों तैनात हैं और गश्त करने, निगरानी रखने और घुसपैठ की कोशिशों का जवाब देने जैसी समान गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं. सीमा के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी भारत - तिब्बत सीमा पुलिस के पास है, लेकिन किसी भी संघर्ष की स्थिति में, जैसे कि पहले देपसांग, चुमार और डोकलाम में सामने आए, या जैसा कि वर्तमान में देखा जा रहा है, भारतीय सेना प्राथमिक प्रतिक्रिया का नेतृत्व करती है. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनीयों के साथ सभी बैठकें, वो चाहे औपचारिक हों या संकट से प्रेरित, सेना के अधिकारियों के नेतृत्व में होती हैं.

एक अनसुलझी सीमा, जिसपर दो अलग सैन्य-बल तैनात हैं, जो अलग-अलग मत्रालयों के प्रति जवाबदेह हैं, क्षमताओं के विकास की दोनों की अपनी अलग योजनाएं हैं. यह संसाधनों के कुशल उपयोग को बाधित करता है, और जवाबदेही भी व्यवस्थित तरीके से नहीं तय हो पाती है. विवादित सीमाओं को सेना के हाथों में सौंपा जाना चाहिए जिसके पास जटिल परिस्थितियों को कुशलतापूर्वक संभालने की क्षमता है और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस को उसके परिचालन के नियंत्रण के तहत रखा जाना चाहिए. ऐसी व्यवस्था पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर पहले से मौजूद है, जहां बीएसएफ सेना के नियंत्रण में काम कर रही है.

सीमा पर व्यापक निगरानी रखने की हमारी क्षमताओं पर बहुत ज्यादा जोर देना होगा. वहां का इलाका और मौसम ऐसा करने में अड़चनें पैदा करता है, सड़कों की कमी होना भी ज़रूरत के हिसाब से बार-बार जाकर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर खुद निगरानी रखने की क्षमता को भी बाधित करता है. जनवरी 2018 में जानकारी दी गई थी कि चीनियों ने अरुणाचल प्रदेश के टुटिंग क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार 1.25 किलोमीटर लम्बी सड़क का निर्माण कर लिया था, क्षेत्र की दूरी होने के कारण, इस निर्माण के विषय में हमारे संज्ञान में तब आया जब एक स्थानीय युवक द्वारा द्वारा इसकी सूचनी दी गई.

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रडार, लंबी दूरी के कैमरों और रेडियो निगरानी उपकरणों के उपयोग का इस्तेमाल करते हुए सीमा पर निगरानी रखने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक और विजुअल जाल-तंत्र की स्थापना की जानी चाहिए. मानवयुक्त और मानवरहित प्रणालियों और उपग्रह बिम्बविधान का उपयोग करके हवाई निगरानी द्वारा इसको सहारा देना चाहिए. वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार सेना की असामान्य आवाजाही का पता लगाना के साथ-साथ तेज और सुसंगत प्रतिक्रिया की योजना तैयार करना इसकी पहली शर्त होनी चाहिए. एक बार अगर चीनी सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार कर लेते हैं, हमारे लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी, जैसा कि हम पैंगोंग त्सो में देख रहे हैं.

साथ ही, समय आ गया है कि भारत और चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर होने वाली घटनाओं के प्रबंधन के लिए पहले हुए मसविदों पर फिर से नज़र डालें. कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं, वे सब आत्मसंयम रखने, बल का उपयोग न करने, और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर किसी भी उत्तेजक कार्रवाई से बचने पर जोर देते हैं. हालांकि यह पूरी तरह से विफल नहीं हुए हैं, असलियत में, स्थापित किए गए मसविदों की उपेक्षा करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. इसके चलते सैनिकों में आश्चर्यजनक ढंग से असैन्य तरीके के बर्ताव की घटनाएं बढ़ी है, उन्होंने गालियां देना और एक-दूसरे पर वार करना शुरू कर दिया है.

इसकी शुरुआत विवादित क्षेत्रों में गश्त करने के नियमों को सूचीबद्ध करने से किया जा सकता हैं. इसमें गश्त के स्थगन से लेकर संयुक्त गश्त की एक प्रणाली तक के बीच में कई बदलावों को शामिल कर सकते हैं. हर क्षेत्र में किसी निश्कर्ष पर आना मुश्किल होगा, लेकिन दोनों देशों की सेनाओं के बीच संघर्ष की स्थिति को कम करने से संपूर्ण वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बहाल करने में इससे सहयोग जरूर मिलेगा. साथ ही, सैनिकों के लिए एक सख्त व्यक्तिगत आचार संहिता होनी चाहिए. वर्दी में पुरुषों को लाठी डंडों चलाते देखना भयावह है.

उत्तरी सीमा पर संघर्ष, भारत और चीन, दोनों देशों के लिए नुकसानदेह है. हालांकि संघर्ष शुरू होने के खतरे के डर से सिर्फ चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हमारे प्रबंधन की कमियों का फायदा उठाने से नहीं चुकेगी. हमें जल्द से जल्द इन दरारों को मजबूती से भरना होगा.

लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीएस हुड्डा

(जनरल हुड्डा ने 2016 में उरी आतंकी हमलों के बाद की गई सर्जिकल स्ट्राइक का नेतृत्व किया था)

Last Updated : Jun 16, 2020, 2:21 PM IST

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