ईरान जैसा कट्टर मुस्लिम देश, जहां हिजाब अनिवार्य है, यहां 22 साल की महासा अमिनी को देश के महज हिजाब कानून का पालन नहीं करने पर मोरल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इतना ही नहीं पुलिस ने उसके साथ मारपीट की और जबरदस्ती गाड़ी में बैठाकर थाने ले गई. उसकी हालत बहुत ज्यादा बिगड़ गई तब उसे अस्पताल ले जाया गया. जहां कुछ समय तक कोमा में रहने के बाद उसकी मौत हो गई.
महसा अमिनी के साथ हुई इस घटना से ईरान में हिजाब के खिलाफ जहां महिलाओं का गुस्सा उबल पड़ा, वहीं दुनियाभर में घटना की कड़ी निंदा भी की गई. ईरान की मोरल पुलिस या गुश्ते ए इरशाद, जैसा कि वे स्थानीय रूप से जाने जाते हैं, हिजाब कानून की रखवाली करते हैं. दरअसल, साल 1979 में एक जनमत संग्रह के माध्यम से अयोतल्लाह खुमैनी के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन ने ईरान पर नियंत्रण किया, तब से देश में महिलाओं के लिए अपना सिर ढकना अनिवार्य हो गया.
उस वक्त से आज तक, देश में इस्लामी कानून लागू कराए गए हैं, जिसमें से एक कानून यह भी है कि महिलाएं अपने घरों से बाहर निकलें तो उनका सिर ढका होना चाहिए. हालांकि, ईरान की महिलाओं के लिए उन पर लगाए गए इस इस्लामी कानून को अपनाना मजबूरी बन गया, लेकिन कहीं न कहीं इस कानून को अपनाने के बीच उनमें विरोधाभास भी देखा गया है. ईरानी पत्रकार मसीह अलीनेजाद जो अब अमेरिका में बस गई हैं, साल 1994 में तेहरान में सरकार विरोधी पर्चे छापने के आरोप में गिरफ्तार कर ली गईं थीं. ईरानी महिलाओं के हिजाब नियमों और उनसे संबंधित अन्य अधिकारों के मुद्दों के खिलाफ आवाज बनती गई थी.
ईरानी महिलाओं का विरोध प्रदर्शन हालांकि, नियम केवल हिजाब तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि ईरानी महिलाओं को अकेले गाना गाने की भी अनुमति नहीं है. ईरानी महिलाओं पर सार्वजनिक रूप से गाना गाने पर प्रतिबंध होने के कारण देश की श्रेष्ठ महिला गायिका आज तक बाहरी दुनिया से अनजान रही हैं. गिलान प्रांत की राजधानी रश्त जैसे स्थान जो कैस्पियन सागर के किनारे स्थित है, यूरोपीय राष्ट्र की तुलना में किसी भी तरह से कम समकालीन नहीं हैं, लेकिन यहां सरकारी जुल्म के कारण महिलाएं अपने घरों की चारदीवारी में सिमट कर रह जाती हैं. जब वे अपने घरों से बाहर निकलती हैं, तो उन्हें सोच समझकर संयमित व्यवहार करना होता है.
ये महिलाएं अपनी जीवन शैली किसी के साथ शेयर करना पसंद नहीं करती हैं, जैसे कि वो क्या पहनना चाहतीं हैं और कैसे कपड़े पहनती हैं. लेकिन इन्हीं ढकोसलों ने महिलाओं में आक्रोश को भड़काया और ये सार्वजनिक अभिव्यक्ति के स्तर तक पहुंच गया.
ईरान में हालिया विरोध अमिनी की मौत को लेकर हुआ. इससे ईरानी महिलाओं में सरकार और मानवाधिकारों पर उसकी नीतियों के खिलाफ गुस्से की गहराई का पता चलता है. ईरानी महिलाओं का आक्रोश दुनिया के ध्यान में तब आया जब एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें महिला बिना हिजाब के देश के सख्त धार्मिक नियमों की अवहेलना कर विरोध प्रदर्शन करती नजर आईं. यहां तक कि कुछ महिलाओं ने अमिनी की मौत के विरोध में अपने बाल काटते हुए वीडियो भी सोशल मीडिया पर शेयर किए.
ईरानी महिलाओं ने जिस तरह सरकार के खिलाफ निडर होकर आवाज बुलंद करने का साहस जुटाया, उसने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया. लोग मानते हैं कि 2017 में हुई ईरानी महिला विदा मोवाहद की घटना से प्रेरित होकर आज उसी तरह से महिलाएं बिना हिजाब के विरोध प्रदर्शन कर रही हैं.
बता दें कि विदा मोवाहद, जो 'गर्ल ऑफ इनकिलाब स्ट्रीट' के रूप में जानी जाती हैं, ने भीड़ के सामने अपना हिजाब एक डंडे से लहराया था. उसके ऐसा करने पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया था. हालांकि उन्हें 2018 में जमानत पर रिहा कर दिया गया था. विदा की घटना को पश्चिमी मीडिया ने प्रमुखता से कवर किया था. अमिनी की घटना को लेकर देश में विरोध के बाद ऐसा प्रतीत होने लगा है कि सरकार अब समस्या का समाधान निकालने में जुट गई है, क्योंकि वह नहीं चाहती कि चीजें बद्तर होती जाएं. हालांकि, ईरान के राष्ट्रपति ने अमिनी की मौत की जांच के आदेश दे दिए हैं, लेकिन विरोध करने वाली महिलाएं अब भी अपनी बात पर डटी हुई हैं. महिलाओं ने अमिनी की मौत के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है.
ऐसा भी प्रतीत होता है कि कट्टरपंथियों और उदारवादियों के बीच की दूरियां दिन ब दिन कम होती जा रही हैं, लेकिन महिलाओं के लिए जमीनी हकीकत में बदलाव नहीं हुआ है. महासा अमिनी एक बड़ा उदाहरण हैं. ईरान के दो मुख्य शहरों, क्वोम और मशद, जहां धार्मिक नेताओं का शासन है, ने इस पर लचीला दृष्टिकोण दिखाया है. वास्तव में ईरान के आध्यात्मिक नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने महिलाओं पर थोपे जा रहे कानूनों के खिलाफ समाज के बढ़ते गुस्से की सीमा को महसूस करते हुए उदार रुख की मांग की है. क्वोम और मशद में प्रमुख मदरसे हैं, जहां से हर साल महिला विद्वानों सहित सैकड़ों इस्लामी विद्वान निकलते हैं. महिलाओं को दोनों शहरों में सिर से पैर तक खुद को कपड़े से ढकना पड़ता है, और शायद ही उनके शरीर का कोई अंग दिखाई देता है. सेमिनरी को Hows e Quom और Hows e Mashad के नाम से जाना जाता है.
ईरानी महिलाओं का विरोध प्रदर्शन इस बार महिलाओं के विरोध करने और खामेनेई की मांग के कारण ये दोनों शहर भी उनके आगे घुटने टेकते नजर आ रहे हैं. यह अविश्वसनीय रूप से विडंबनापूर्ण है, जब ईरान जैसे इस्लामी देश की मुस्लिम महिला की तुलना धर्मनिरपेक्ष भारत की मुस्लिम महिला से की जाती है, जो धारणा का विरोधाभास देती है. एक इस्लामी देश में महिलाएं उनके प्रति उदार दृष्टिकोण की उम्मीद कर रही हैं, जबकि धर्मनिरपेक्ष भारत में मुस्लिम महिलाएं दक्षिणी राज्य कर्नाटक में अपने हिजाब की वकालत कर रही हैं. क्योंकि कर्नाटक की छात्राओं को हिजाब पहनने से मना किया गया है, जिसके बाद विरोध करने वाली छात्राओं ने कक्षाएं छोड़ दीं और परीक्षा नहीं दे सकीं.
यहां तक कि लड़कियां धार्मिक स्वतंत्रता के लिए न्याय की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गईं. कर्नाटक के संदर्भ में भारत की महिलाएं भारतीय संविधान से मदद लेना चाहती हैं, जो उन्हें धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है. वहीं, ईरानी महिलाएं उन पर थोपे गए कानून का विरोध कर रही हैं, जो उन्हें बोलने की स्वतंत्रता से भी रोकता है. हालांकि, कर्नाटक सरकार का रुख कठोर लग सकता है, लेकिन महिलाओं के लिए ईरान का शासन स्पष्ट रूप से दमनकारी और हिंसात्मक है. जब कर्नाटक के शिवमोगा जैसे स्थान पर हिजाब पहनने से एक लड़की को रोका जाता है, वहीं, ईरान जैसे देश में रहने वाले किसी व्यक्ति को अपने समाज और शिवमोगा के बीच अंतर करना मुश्किल हो सकता है. ईरान की भारत से कोई तुलना नहीं है, लेकिन जिस तरह से कर्नाटक में हिजाब विवाद हुआ, उसने अन्य विरोध करने वाली महिलाओं की तुलना की.
महिलाओं को अपनी जीवनशैली पसंद करने की अनुमति दी जानी चाहिए. उसके बाद ही वे हमेशा उदार मार्ग अपनाएंगी, न कि रूढ़िवादी. रूढ़िवादी कपड़े हमेशा विरोध में पहने जाएंगे, इसलिए नहीं कि वे दर्शन का समर्थन करते हैं. इस्लामी राष्ट्रों से पश्चिम में प्रवास करने वाली अधिकांश महिलाओं ने ड्रेस कोड सहित मध्यम जीवन शैली को अपनी पसंद बना लिया है. यह वह तरीका है, जो उन महिलाओं को नाराज करता है जो हिजाब के लिए या उसके खिलाफ हथियार उठाती हैं, चाहे वह शिवमोगा हो या ईरान.