भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के गुजरात कैडर के अधिककारी मुर्मू को जटिल कानूनी मामलों से निपटना था. जम्मू-कश्मीर का रुतबा कम करके उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में फाड़ दिया गया. वह भी एक विधानसभा के साथ और दूसरा इसके बगैर विधानसभा के. एक ऐसा क्षेत्र जिसका दो राजधानियों के साथ मुख्यमंत्री सचिवालय और राजभवन मोबाइल था, उसकी स्थिति अब मात्र केंद्रशासित प्रदेश की है. वास्तव में, नए केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में जो नौकरशाह रहेंगे, उन्हें बहुत अधिक ठंड का सामना करना पड़ेगा और शून्य से भी नीचे तापमान में जनता की सेवा करनी पड़ेगी. इसके अलावा कोई बदलाव नहीं किया गया है. ऐसा पहले प्रचलन में नहीं था. सर्दियों में सचिवालय जम्मू चला चला जाता था और गर्मियों में श्रीनगर आ जाता था. ऐसा करने से नौकरशाहों और उनके परिवार के सदस्यों को कश्मीर और लद्दाख की कड़कड़ाती ठंड से बचाव हो जाता था.
असामाजिक (नन स्टेट) तत्वों से निबटने के लिए सशस्त्र बलों को और अधिकार दे दिए गए और यह सुनिश्चित किया गया कि सरकार विरोधी स्वरों को ताकत नहीं मिले. अलगाववादी आंदोलन को रोकने के लिए मुर्मू के प्रमुख एजेंडे में यह भी शामिल था कि उसकी जगह वहां के मूल निवासी पहले से भी अधिक संख्या में भारत के लिए आवाज उठाएं. अनुच्छेद- 370 को रद्द किए जाने के बाद नई पुनर्गठन नियमावली के तहत पात्र इच्छुक उम्मीदवारों को बगैर बहुत अधिक शोर शराबे के अधिवास (डोमिसाइल) प्रमाण-पत्र मुहैया कराने की प्रक्रिया नौकरशाही से किसी तकलीफ के बगैर शुरू कर दी गई. ये कुछ ऐसे काम थे जिसे केवल मुर्मू जैसे अधिकारी ही कर सकते थे.
कानून को लागू करने के लिए शासन को इस तरह का रास्ता अपनाना था जो सरकार के एजेंडे की पूरक हो. मुर्मू ने पूरे विश्वास के साथ कानूनों का लागू करते हुए असहमति की आवाज को बंद करने के तरीके को अपनाकर इस काम को किया. कुछ तो आपसी तालमेल से और कुछ अनिवार्य कूटनीति से. राजनीति की मुख्य धारा के अधिकतर सदस्यों को या तो जेल में डाल दिया गया या घरों में नजरबंद कर दिया गया.
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