नई दिल्ली :लोकसभा ने 8 दिसंबर 2023 को विपक्ष के वॉकआउट के बीच ध्वनि मत से पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को निष्कासित कर दिया. इससे पहले दिन में एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट पेश की गई.
जब सदन दोपहर 2 बजे दोबारा शुरू हुआ, तो विपक्ष के विरोध के बीच समिति की रिपोर्ट पर चर्चा शुरू की गई. विपक्ष इस बात पर हंगामा कर रहा था कि उन्हें चर्चा की तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया. मोइत्रा को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा रही थी. 2005 की मिसाल का हवाला देते हुए, संसदीय मामलों के मंत्री प्रल्हाद जोशी ने मोइत्रा के निष्कासन के लिए प्रस्ताव/संकल्प पेश करते हुए कहा कि एक सांसद के रूप में उनका बने रहना ठीक नहीं है, क्योंकि उनका आचरण एक सांसद के तौर पर अशोभनीय है.
अध्यक्ष ने लोकसभा सदस्य निशिकांत दुबे की एक शिकायत को आचार समिति के पास भेजा था, जिसमें महुआ मोइत्रा पर अपने हितों की रक्षा के लिए संसद में प्रश्न पूछने के बदले में दर्शन हीरानंदानी के व्यापारिक घराने से उपहार और नकदी लेने का आरोप लगाया गया था. उन पर यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने लोकसभा की वेबसाइट पर उनकी ओर से प्रश्न अपलोड करने के लिए अपना पासवर्ड साझा किया था. एथिक्स कमेटी ने शिकायतकर्ता और फिर गवाही देने से इनकार करने वाले आरोपियों के साक्ष्य लिए, मामले पर विचार-विमर्श किया और 9 नवंबर 2023 को स्पीकर को अपनी रिपोर्ट सौंपी.
यदि एक पल के लिए हम उपहारों और नकदी के मुद्दे को अलग रख दें, तो संसद के किसी सदस्य को अपने उन मतदाताओं के संबंध में प्रश्न पूछने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जिनका वह प्रतिनिधित्व करता है. हालांकि, इसके कुछ नियम हैं. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, संसद के एक सदस्य को निर्वाचित होने के तुरंत बाद अपने पेशेवर और व्यावसायिक हितों का विवरण देना होता है, जिसे सदस्यों के हितों के रजिस्टर में दर्ज किया जाता है. ये रजिस्टर अनुरोध पर निरीक्षण के लिए अन्य सदस्यों के लिए उपलब्ध होता है. सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत यह आम नागरिकों के लिए भी सुलभ है.
इसके अलावा जब भी कोई सदस्य संसद में कोई ऐसा मुद्दा उठाता है जिसका उसके पेशेवर या व्यावसायिक हितों से कोई संबंध हो तो उसे इस आशय की पूर्व घोषणा करनी होती है. उदाहरण के लिए यदि कोई सदस्य, जो एक प्रैक्टिसिंग वकील है, किसी बहस में भाग लेना चाहता है जिसमें उसके क्लाइंट का कोई हित शामिल हो सकता है, तो उसे हस्तक्षेप करने से पहले इस आशय की घोषणा करनी होगी. इसी तरह, यदि किसी सदस्य का उस कंपनी में व्यावसायिक हित है, जिससे प्रश्न संबंधित है, तो उसे इसे उठाने से पहले एक पूर्व घोषणा करनी होगी.
इसके अलावा, संसद सदस्यों के लिए एक आचार संहिता निर्धारित करने की भी प्रथा है. हालांकि लोकसभा के सदस्यों के लिए कोई निश्चित आचार संहिता नहीं है, लेकिन सदस्यों की मर्यादा और गरिमापूर्ण आचरण सुनिश्चित करने के लिए लोकसभा में प्रक्रिया और व्यवसाय के संचालन के नियमों में विभिन्न प्रावधान हैं.
दूसरी ओर राज्यसभा की आचार समिति की चौथी रिपोर्ट में सदन के सदस्यों के लिए 14-सूत्रीय आचार संहिता की सिफारिश की गई थी. 20 अप्रैल, 2005 को सदन द्वारा अपनाई गई इस आचार संहिता में प्रमुख बिंदु ये हैं-
1-यदि सदस्यों को लगता है कि उनके व्यक्तिगत हितों और उनके द्वारा रखे गए सार्वजनिक विश्वास के बीच कोई टकराव है, तो उन्हें इस तरह के टकराव को इस तरह से हल करना चाहिए कि उनके निजी हित उनके सार्वजनिक कार्यालय के कर्तव्य के अधीन हो जाएं.
2- सदस्यों को ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिससे संसद की बदनामी हो और उसकी विश्वसनीयता प्रभावित हो.
3- सार्वजनिक पदों पर आसीन सदस्यों को सार्वजनिक संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना चाहिए जिससे जनता की भलाई हो सके.
4- सदस्यों को हमेशा यह देखना चाहिए कि उनके निजी वित्तीय हित और उनके निकटतम परिवार के सदस्यों के निजी वित्तीय हित सार्वजनिक हित के साथ टकराव में न आएं और यदि कभी भी ऐसा कोई टकराव उत्पन्न होता है, तो उन्हें इस तरह के संघर्ष को इस तरह से हल करने का प्रयास करना चाहिए कि सार्वजनिक हित खतरे में न पड़े.