नई दिल्ली: देश के वाहन बाजार में इलेक्ट्रिक गाड़ियों (ईवी) की पैठ लगातार बढ़ रही है. ऐसे में क्लाइमेट थिंकटैंक क्लाइमेट ट्रेंड्स ने क्लाइमेट डॉट के साथ मिलकर गुरुवार को ईवी डैशबोर्ड जारी किया. क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने इसको जारी करते हुए कहा कि यह अनोखा डैशबोर्ड सरकार के वाहन पोर्टल की मदद से इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री से सम्बन्धित रियल टाइम डेटा लेकर उसे बेहद आसान और उपयोगकर्ता के लिये सुविधाजनक तरीके से पेश करता है, जिससे बाजार में इलेक्ट्रिक वाहनों की पैठ समेत विभिन्न स्तरों के बारे में त्वरित विश्लेषण और शोध किया जा सकता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में राष्ट्रीय और राज्यों के स्तर पर बनी ईवी नीतियों को उपभोक्ताओं के प्रति और मित्रवत बनाने तथा इस सिलसिले में एक नियामक कार्ययोजना लागू करने की पूरी गुंजाइश है. देश में लागू इलेक्ट्रिक वाहन नीतियों और उनकी प्रभावशीलता को समझने के लिये ईवी बिक्री विश्लेषण की आवश्यकता तथा अन्य पहलुओं पर विचार के लिये एक वेबिनार आयोजित किया गया.
क्लाइमेट डॉट के निदेशक अखिलेश मागल ने ईवी डैशबोर्ड का जिक्र करते हुए कहा कि इस टूल के जरिये हमने इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के क्षेत्र में मौजूद खामियों को ढूंढने पर ध्यान दिया है. इस डैशबोर्ड के जरिए उपयोगकर्ताओं को एक ऐसा मंच देने की कोशिश की गई है, जहां वे अपनी बात को बहुत प्रभावशाली तरीके से रख सकें. हालांकि अभी यह डैशबोर्ड का पहला संस्करण ही है. भविष्य में इसे और बेहतर बनाने की कोशिश की जाएगी.
उन्होंने कहा कि यह डैशबोर्ड सिर्फ शोधकर्ताओं और अध्ययनकर्ताओं के लिए ही नहीं, बल्कि उन पत्रकारों के लिए भी है, जो इस पर कोई लेख लिखना चाहते हैं. इसलिए हमने यह सुनिश्चित किया है कि जो भी डाटा डैशबोर्ड पर डाले जाए वह बिल्कुल सटीक हों. हमारा यह भी उद्देश्य है कि पब्लिक नैरेटिव भी बना रहे, क्योंकि किसी भी तरह का रूपांतरण करने में जनमत की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है.
क्लाइमेट डॉट के अंकित भट्ट ने इलेक्ट्रिक व्हीकल डैशबोर्ड के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि इस डैश बोर्ड में सबसे पहले भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार के बारे में बताया गया है. इन वाहनों को चार श्रेणियां में बांटा गया है. इनमें मुख्यत: दो पहिया वाहन, तिपहिया वाहन, चार पहिया वाहन और बसें शामिल हैं. इसमें इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री का राज्यवार ब्यौरा भी दिया गया है. देश का हर राज्य इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में आगे निकलने के लिये चुनौती पेश कर रहा है.
उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को लेकर राज्यों की एक से बढ़कर एक नीतियों से उनकी यह मंशा जाहिर होती है. इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे नजर आता है, लेकिन इस राज्य में बिकने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों में एक बड़ा हिस्सा तिपहिया वाहनों का है. उन्होंने कहा कि यह दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश की इलेक्ट्रिक वाहन नीति वर्ष 2022 में आई, लेकिन इस राज्य में तिपहिया इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री उससे पहले ही बढ़ना शुरू हो गई थी.
अंकित भट्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश में तिपहिया वाहनों की बिक्री सबसे ज्यादा है. महाराष्ट्र और कर्नाटक इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री के मामले में दो अन्य अग्रणी राज्य हैं. यह दिलचस्प है कि जहां उत्तर प्रदेश में शेयर्ड मोबिलिटी में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की तादाद ज्यादा है. वहीं, महाराष्ट्र और कर्नाटक में निजी इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने वालों की संख्या अधिक है. दिल्ली की इलेक्ट्रिक वाहन नीति इस राज्य को इलेक्ट्रिक मोबिलिटी कैपिटल बनाने के विजन पर आधारित है.
उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिक बसों की खरीद के मामले में यह राज्य अन्य के मुकाबले बहुत आगे हैं. नीति आयोग ने वाहनों के सभी सेगमेंट्स में वर्ष 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी को 30 प्रतिशत तक करने की योजना बनाई है. उपभोक्ताओं का इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर जिस तरह से रुझान बढ़ रहा है और राज्यों के स्तर पर जिस तरीके की प्रभावशाली इलेक्ट्रिक वाहन नीतियां बनायी जा रही हैं, उनके मद्देनजर इस बात की प्रबल संभावना है कि वर्ष 2030 तक के लिए निर्धारित लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा.
इलेक्ट्रिक मोबिलिटी विशेषज्ञ नारायण कुमार ने ईवी नीतियों को और व्यापक तथा उपयोगकर्ताओं के हितों के प्रति और बेहतर बनाने की जरूरत पर जोर देते हुए वेबिनार में कहा कि इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि राज्यों के स्तर पर भी मजबूत नियामक कार्य योजनाएं बनाने की जरूरत है. राज्यों को उनकी स्थिति के अनुरूप नीति बनाने की जरूरत है, क्योंकि हर राज्य अपने आप में अलग है, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम मजबूत नियामक कार्ययोजनाओं पर ध्यान दें ताकि चीजों को सतत तरीके से किया जा सके.
उन्होंने कहा कि जब चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की बात आती है या इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने का विषय हो, तब यह बहुत जरूरी है कि हमारे पास एक मजबूत रेगुलेटरी फ्रेमवर्क हो. यह फ्रेमवर्क ऐसा होना चाहिए, जो निवेशकों को भी निवेश की सुरक्षा के प्रति विश्वास दिलाए. उसके लिए हमें अपने फाइनेंशियल मेकैनिज्म पर बहुत ध्यान देना होगा. वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहनों को किस्तों पर खरीदने पर वसूले जाने वाले ब्याज की दर कई बार बहुत ज्यादा होती है. इसमें ज्यादा से ज्यादा एकरूपता लाये जाने की जरूरत है.
उत्तर प्रदेश में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री लगातार दोहरे अंकों में रिकॉर्ड की जा रही है और क्लाइमेट ट्रेंड्स एवं क्लाइमेट डॉट के डैश बोर्ड के मुताबिक भारत में सिर्फ छह राज्य उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात और राजस्थान ही देश की कुल इलेक्ट्रिक वाहन बिक्री में 60% का योगदान कर रहे हैं. बाकी 40% हिस्सा देश के अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का है. कर्नाटक को छोड़कर बाकी सभी राज्यों ने इलेक्ट्रिक वाहनों पर डिमांड साइड इंसेंटिव की पेशकश की है.
इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्टेशन की शोधकर्ता शिखा रुकाडिया ने नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री को कैसे बढ़ाया जाए, इस पर रोशनी डालते हुए कहा कि यह सही है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की पैठ देश के कुछ मुट्ठी भर राज्यों तक ही सीमित है. हम यह देख रहे हैं कि जो भी बढ़ोत्तरी हुई है, उनमें से 80 प्रतिशत हिस्सा दोपहिया वाहनों का है.
सरकार ने समय-समय पर इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति रुझान बढ़ाने के लिए नीतियां लागू की है, लेकिन उनमें समय पर उतार-चढ़ाव भी देखा गया है. कई बार सब्सिडी की धनराशि घटाई गई है. इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद से जुड़े कुछ व्यावहारिक पहलुओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से इलेक्ट्रिक वाहन टेक्नोलॉजी को आम लोगों तक पहुंचने में राज्य सरकारों की काफी महत्वपूर्ण भूमिका है.
उन्होंने कहा कि दोपहिया वाहनों के मामले में देखें तो खासतौर पर पेट्रोल और इलेक्ट्रिसिटी वाहनों के बीच हाई कास्ट डिफरेंशियल के मद्देनजर टीसीओ केस पहले से ही लुभावना है, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि उपभोक्ता टीसीओ को देखकर गाड़ी खरीदने का फैसला नहीं करते. अपफ्रंट प्राइसिंग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, इसलिए गाड़ी की कीमत की काफी अहम भूमिका होती है. ऐसे में राज्यों को भूमिका निभानी होगी.
इलेक्ट्रिक मोबिलिटी विशेषज्ञ सौरभ कुमार ने सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये चलायी जा रही योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि आने वाले कुछ समय के दौरान हम यह देखेंगे कि पब्लिक ट्रांसिट सेक्टर रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर बन जाएगा, जहां आप यह उम्मीद कर सकते हैं कि 2 लाख डीजल बसें इलेक्ट्रिक बसों में बदल जाएगी. इस साल अगस्त में भारत में उतनी ही इलेक्ट्रिक गाड़ियों की खरीद-फरोख्त हुई, जितनी कि पिछले साल बेची गई थीं.
उन्होंने कहा कि सार्वजनिक परिवहन के माध्यमों से लगभग पांच करोड़ लोग रोजाना सफर करते हैं. सरकार इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा देने के लिए काफी काम कर रही है. अगर आप देखे तो वर्ष 2017 के पहले इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के बारे में बहुत कम लोग जानते थे, लेकिन उसके बाद सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई अच्छी नीतियों के कारण इन वाहनों की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. यह सही है कि सरकार काफी काम कर रही है, लेकिन निश्चित रूप से अभी इसमें और भी काम करना बाकी है. देश में जिस तरह का इकोसिस्टम बन रहा है, उसके मद्देनजर इस क्षेत्र में अनंत संभावनाएं हैं.
भारत में अब इलेक्ट्रिक मोबिलिटी का इकोसिस्टम बढ़ रहा है. वर्ष 2021 में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) पंजीकरण में 2020 की तुलना में 168% की भारी वृद्धि दर्ज की गई. भारत सरकार जीवाश्म ईंधन पर देश की निर्भरता को कम करने और ईवी को आंतरिक दहन इंजन (आइस) के प्राथमिक विकल्प के रूप में रखने के लिए विभिन्न कदम उठा रही है. मगर देश में ई-मोबिलिटी को बड़े पैमाने पर अपनाने के लिए अब भी बहुत कुछ करने की जरूरत है.
केंद्र और कई राज्य सरकारों द्वारा दिया जा रहा प्रोत्साहन ईवी को बढ़ावा देने वाले प्रेरक कारकों में से एक है, जो ईवी स्टार्टअप के लिए बूस्टर के रूप में कार्य कर रहा है. कंपनियां अनुसंधान एवं विकास, प्रौद्योगिकी एकीकरण, परीक्षण और विस्तार को बढ़ाने के लिए भी धन जुटा रही हैं. निवेश को बढ़ावा देने वाले अन्य कारक भी हैं. जैसे- एफडीआई के माध्यम से 100% स्वामित्व की संभावना, सतत गतिशीलता के बारे में बढ़ती जागरूकता आदि.
एक सहायक नीति आधारित माहौल अधिक निवेश आकर्षित करने और ईवी बाजार के विकास में सहायता कर रहा है. भारत में फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड एंड ईवी (फेम-2) योजना के दूसरे चरण से ईवी क्षेत्र में निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.