नई दिल्ली :अमेरिका में तीन नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहा है. पिछले सप्ताह हुए वर्चुअल डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन में आधिकारिक तौर पर विपक्षी डेमोक्रेट्स द्वारा जो बाइडेन और कमला हैरिस को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया. कमला हैरिस के रूप में पहली अश्वेत महिला, पहली भारतीय-अमेरिकी और एशियाई-अमेरिकी आप्रवासी को उपराष्ट्रपति पद के लिए एक प्रमुख पार्टी द्वारा नामित किया गया.
देखिए विशेषज्ञों के साथ चर्चा अमेरिकी उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में कमला हैरिस को चुना अमेरिका और भारत के लिए क्या मायने रखता है? अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े तमाम पहलुओं पर वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने अमेरिका में भारत की राजदूत रहीं मीरा शंकर और वॉशिंगटन में अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' के संवाददाता श्रीराम लक्ष्मण से विस्तार से चर्चा की.
श्रीराम लक्ष्मण ने बताया कि हैरिस को क्यों राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बाइडेन के अच्छे चयन के रूप में देखा जा रहा है, जिन्होंने (बाइडेन) खुद बराक ओबामा के कार्यकाल में उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य किया था.
लक्ष्मण ने कहा, 'वह (कमला हैरिस) बहुत मजबूत सार्वजनिक सेवा पृष्ठभूमि से आती हैं. उन्होंने सरकारी वकील के रूप में कैलिफोर्निया में दशकों तक कार्य किया है. वह खुद राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार थीं. साथ ही वह बहु-नस्लीय पृष्ठभूमि से आती हैं. वह अश्वेत और दक्षिण एशियाई मतदाताओं की पसंद हैं. साथ ही वह एक महिला हैं. हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि इस कारण से लोग निश्चित रूप से उनके लिए मतदान करेंगे. लेकिन वह बाइडेन के लिए बहुत अच्छी साथी हैं, वास्तव में वह (बाइडेन) अपनी पहुंच बढ़ा सकेंगे. वह बाइडेन की तुलना में बहुत कम उम्र की हैं. दोनों की जोड़ी कम से कम अगले चार साल या आठ साल और उससे आगे के भविष्य का प्रतिनिधित्व करती है.'
अमेरिकी उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस वहीं मीरा शंकर ने कहा, 'ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के कारण नस्ल एक कारक है और तथ्य यह है कि अमेरिका इस समय नस्लीय उथल-पुथल में उलझा हुआ है. इसलिए यह एक बहुत ही मौजूदा मुद्दा है. लेकिन इससे आगे बढ़कर यह मूल्यों और नीतियों का भी सवाल है.'
यह पूछने पर कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय को रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों द्वारा सक्रिय रूप से क्यों लुभाया जा रहा है, जबकि वास्तव में इनकी संख्या बड़ी नहीं है, पूर्व राजनयिक मीरा ने बताया कि आज राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में इस समुदाय के काफी व्यक्ति सक्रिय हैं.
मीरा शंकर ने कहा कि यह इतना बड़ा वोट बैंक नहीं है. कुल मतदाताओं का लगभग 4.7 प्रतिशत एशियाई मूल के, 13 प्रतिशत हिस्पैनिक्स और अश्वेत 12 प्रतिशत से थोड़ा अधिक होंगे. इसलिए संख्या के संदर्भ में यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है. लेकिन इन चुनावों में उन राज्यों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी जहां हर एक वोट की अहमियत है, क्योंकि इन राज्यों में हार-जीत का फैसला बहुत करीबी अंतर से होता है. उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में भारतीय-अमेरिकी समुदाय की पर्याप्त एकजुटता हार-जीत में निर्णायक साबित हो सकती है.
पूर्व राजनियक ने कहा कि यह धनी समुदाय है और वह राजनीति में अधिक सक्रिय रहना चाहते हैं. इसलिए वह हाल के वर्षों में राजनीतिक चंदा देने में अधिक रुचि ले रहे हैं. डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन दोनों ही पैसे जुटाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वह अच्छी तरह चुनाव लड़ सकें. इन सभी कारणों से भारतीय-अमेरिकी समुदाय को हर तरफ से लुभाया जा रहा है. अमेरिका के आर्थिक क्षेत्र में भी, भारतीय-अमेरिकी अब सबसे प्रतिष्ठित कंपनियों में से कुछ का नेतृत्व करते हैं. इसमें गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम और मास्टरकार्ड शामिल हैं. पहले पेप्सिको भी थी. यह सिर्फ छोटी या मध्यम आकार की कंपनियां नहीं हैं, बल्कि अमेरिका के असली दिग्गज हैं.
श्रीराम लक्ष्मण ने रेखांकित किया कि दोनों पार्टियां सात निर्णायक राज्यों में कम से कम 1.3 मिलियन सामुदायिक वोट प्राप्त करने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने कहा कि हमारे पास मौजूद आंकड़ों के आधार पर, भारतीय-अमेरिकी परंपरागत रूप से डेमोक्रेट को वोट देते हैं. लगभग 77 प्रतिशत ने हिलेरी क्लिंटन को वोट दिया था. साल 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप और हिलेरी क्लिंटन के बीच वोट का अंतर भारतीय-अमेरिकियों की संख्या से कम था, जो इन कुछ स्विंग राज्यों (निर्णायक राज्यों) में रहते हैं. इसलिए दोनों पार्टियां इन पर जोर दे रही हैं.
श्रीराम ने यह भी बताया कि भारत-अमेरिकी समुदाय अलग-अलग उम्र के प्रोफाइल के आधार पर वोट करते हैं और पुरानी पीढ़ी अभी भी कमला हैरिस की भारतीय विरासत के बावजूद ट्रंप के साथ जा सकती है.
उन्होंने कहा कि जिस तरह से बुजुर्ग भारतीय-अमेरिकी वोट करते हैं जो शायद भारत में पैदा हुए थे, वह युवा और 45 साल के मतदाताओं के समान नहीं है. वह अन्य अमेरिकियों की तरह ही मतदान करते हैं.
उन्होंने कहा कि मोदी-ट्रंप समीकरण के कारण कुछ लोग ट्रंप को वोट करेंगे. लेकिन जब आप युवा भारतीय-अमेरिकियों की बात करेंगे, तो वह नौकरियों के लिए, महामारी से निबटने और नस्लीय मुद्दे पर वोट करेंगे.
विशेषज्ञों से बातचीत के दौरान स्मिता शर्मा ने कश्मीर, सीएए और एनआरसी जैसे विवादास्पद मुद्दों पर कमला हैरिस की राय और भारत के साथ असहज संबंधों पर भी चर्चा की.
मीरा शंकर ने कहा कि हर विषय में कुछ खामियां और खूबियां होती हैं. कुल मिलाकर भारत के साथ संबंध बनाने पर द्विपक्षीय सहमति है. यह चीन की चुनौती का प्रबंधन करने के तरीके के बारे में बढ़ते रणनीतिक अभिसरण से प्रेरित है. यह एक अद्वितीय मुद्दा है, जो दोनों देशों को एक साथ लाता है. यह डेमोक्रेट या रिपब्लिकन के लिए विशिष्ट नहीं है. उन्होंने कहा कि डेमोक्रेट्स ने हमेशा मानवाधिकारों को अधिक प्रमुखता दी है, लेकिन यह अन्य देशों के साथ मूल हितों के बहिष्कार के लिए कभी नहीं है और यह ऐसे मुद्दे हैं, जिससे भारत ने भी गुजरना सीख लिया है.
हालांकि, उन्होंने कहा कि भारत को अपने रोजी-रोटी के मुद्दों और ट्रंप प्रशासन के कुछ फैसलों को प्राथमिकता देनी चाहिए. जैसे- जीएसपी और भारत के कम विकासशील देश के दर्जे को हटाना, स्टील और एल्युमीनियम आयात पर शुल्क में वृद्धि और इस साल के अंत तक H1B वीजा का निलंबन. यह ऐसे मुद्दे हैं जो भारत की प्रतिस्पर्धा और व्यापार को प्रभावित करते हैं.