हैदराबाद :लोगों के पते, फोन नंबर, आधार नंबर, पैन कार्ड, बैंक खाते का विवरण, वेतन और आयकर भुगतान सभी आज वस्तुएं बन गए हैं. हाल के वर्षों में साइबर अपराधियों द्वारा लोगों की संवेदनशील जानकारी चुराने और उससे मुनाफा कमाने की कई घटनाएं सामने आई हैं. इनके द्वारा लगातार व्यक्तिगत गोपनीयता का अतिक्रमण किया जाता है जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकों के मौलिक अधिकार के रूप में बरकरार रखा है.
देश में वर्तमान में व्यक्तियों के व्यक्तिगत डिजिटल डेटा को संरक्षित करके उनकी गरिमा बनाए रखने के लिए सक्षम कानून का अभाव है. हालांकि व्यक्तिगत सूचना संरक्षण अधिनियम के मसौदे पर बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे पांच साल से चर्चा चल रही है. केंद्र ने नवीनतम 'डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन (डीडीपी) विधेयक' का मसौदा तैयार किया था और पिछले साल इस पर सुझाव और टिप्पणियां आमंत्रित की थीं. हाल ही में कैबिनेट द्वारा बिल को मंजूरी दिए जाने के साथ, इसे आगामी मानसून सत्र में संसद द्वारा पारित किया जा सकता है. मसौदा कानून के मुताबिक, डेटा चोरी रोकने में विफल रहने वाली कंपनियों पर 250 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
हालांकि, राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकारी संगठनों को छूट देने वाले नियमों को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है. वहीं चिंताएं व्यक्त की गई हैं कि 'डीडीपी' विधेयक सूचना का अधिकार अधिनियम को कमजोर कर सकता है. विवादों को सुलझाने के लिए जिम्मेदार 'डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड' की स्वतंत्रता को लेकर भी संदेह है. रिपोर्टों से पता चलता है कि केंद्र डीडीपी विधेयक को लेकर उठाई चिंताओं को दूर किए बिना पारित कर कानून का रूप देने की तैयारी कर रहा है. हालांकि इन चिंताओं को कई लोगों द्वारा साझा किया जाता है. हाल ही में हुए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के मुताबिक डेटा चोरी से प्रभावित देशों में भारत दूसरे स्थान पर है.