नई दिल्ली :18वां जी-20 शिखर सम्मेलन 10 सितंबर को दिल्ली में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्राजील के राष्ट्रपति लुईस इग्नासियो लूला दा सिल्वा को इसकी अध्यक्षता सौंपी.
पिछले साल नवंबर में भारत ने इंडोनेशिया से अध्यक्षता ग्रहण की थी. उसके बाद संगठन पर विफलता की तलवार लटकने लगी. रूस-यूक्रेन संघर्ष दिन प्रतिदिन सुर्खियां बटोरने लगा. दोनों युद्धरत पक्ष अभी भी उसी तरह से युद्ध में रत हैं. भू-रणनीतिक पंडितों ने अनुमान लगाया था कि शिखर सम्मेलन में इस पर प्रस्ताव रखा जाएगा तो बिना किसी अंतिम घोषणा के समाप्त हो जाएगा. इस तरह से भारत की अध्यक्षता पर धब्बा लगेगा.
इसके संकेत तभी मिल गए थे, जब नाटो देशों और रूस-चीन धुरी के बीच संघर्ष पर गंभीर असहमति के कारण जी-20 विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में कोई संयुक्त घोषणा जारी करने में सफलता हासिल नहीं मिली. इस साल की शुरुआत में श्रीनगर में आयोजित जी-20 पर्यटन बैठक में चीन, सऊदी अरब, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात की अनुपस्थिति से इसी सोच को और अधिक बल दिया.
इसके अलावा, इस तथ्य के बावजूद कि इसके संस्थापक दस्तावेजों में उल्लिखित समूह का जनादेश और उद्देश्य पूरी तरह से आर्थिक था, इस संघर्ष को तीन क्षेत्रों के तहत आयोजित प्रत्येक कार्य समूह की बैठक के परिणाम दस्तावेज़ में स्पष्ट उल्लेख मिला - चाहे वह महिला सशक्तिकरण पर हो, स्टार्ट-अप या यहां तक कि भ्रष्टाचार विरोधी भी.
जी-20 के किसी भी अध्यक्ष के लिए इतने अधिक अविश्वास से ग्रस्त अनिश्चित राजनीतिक हालात से निपटना वास्तव में एक कठिन कार्य था. शीत युद्ध की वापसी, अफ्रीकी देशों के प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के परिणामस्वरूप उनकी आर्थिक असमानता और उत्तर-दक्षिण विभाजन गहरा हुआ. लेकिन भारत ने 'वॉयस ऑफ द साउथ' शीर्षक के तहत 125 विकासशील और अल्प विकसित देशों की एक वर्चुअल बैठक बुलाकर अपने अध्यक्षी कार्यकाल की शुरुआत बुद्धिमानी से की.
यह इस तरह की पहली बैठक थी जहां इन देशों की चिंताओं को एक मंच मिल सका. इन चिंताओं को व्यक्त करते हुए, भारत ने 60 से अधिक शहरों में तीन क्षेत्रों- शेरपा, वित्त और गैर सरकारी संगठनों के तहत 230 से अधिक बैठकें आयोजित कीं, जिसमें भारतीय प्रतिभागियों के अलावा एक लाख से अधिक विदेशी प्रतिनिधि शामिल थे, जिनमें शिक्षाविद, टेक्नोक्रेट, बिजनेस टाइकून, अर्थशास्त्री, थिंक-टैंक, विभिन्न क्षेत्रों के अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, एनजीओ आदि शामिल थे.
शिखर सम्मेलन से एक सप्ताह पहले तक दोनों युद्धरत गुट अपने-अपने रुख पर अड़े हुए थे, जिससे पूरे शिखर सम्मेलन के पटरी से उतरने की संभावना थी. पश्चिमी ब्लॉक संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रावधानों के घोर उल्लंघन को लेकर यूक्रेन पर 'आक्रामकता' के लिए रूस की निंदा करने वाले पैरा को शामिल करने पर तुला हुआ था और रूस द्वारा परमाणु खतरे का उल्लेख चाहता था. रूस-चीन समर्थक कभी नहीं चाहते थे कि रूस को विलेन के रूप में प्रस्तुत किया जाए. उनके अनुसार अगर ऐसा करने की कोशिश की गई तो वे 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिकी परमाणु कार्रवाई को शामिल करने की मांग करेंगे.
इसके बावजूद भारत ने वो कर दिखाया, जिसके बारे में किसी ने सोचा तक नहीं था. नौ सितंबर की सुबह 4.30 बजे तक सभी पक्षों के साथ भारतीय वार्ताकारों की गहन और लंबी बैठक सफल रही और अंततः 9 सितंबर की सुबह सर्वसम्मति से दिल्ली घोषणापत्र सामने आया.
इस उल्लेखनीय उपलब्धि को हासिल करने का श्रेय पूरी तरह से भारतीय शेरपा अमिताभ कांत और डॉ. एस जयशंकर के कुशल मार्गदर्शन और भारतीय विदेश सेवा के चार शानदार अधिकारियों और उनकी पूरी टीम के अथक परिश्रम को जाता है. चीजें आसान होने जा रही थीं, इसके संकेत इस तथ्य से मिले कि जो बाइडेन, सभी प्रोटोकॉल को दरकिनार करते हुए हवाई अड्डे से सीधे पीएम के आवास तक चले गए.
शिखर सम्मेलन द्वारा सर्वसम्मति से अपनाए गए अंतिम दस्तावेज़ में न तो 'रूस' शब्द और न ही 'आक्रामकता' शब्द का उल्लेख किया गया था. इसे नाटो की पराजय के रूप में देखा जा सकता है. दस्तावेज़ ने इसे युद्ध कहकर संबोधित करने की बजाय 'संघर्ष' का इस्तेमाल किया. साथ ही अन्य देशों की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान करने का आह्वान करके पश्चिम को भी कुछ सांत्वना दी. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार राष्ट्र इस प्रकार रूस का परोक्ष संदर्भ देते हैं.
अपेक्षाओं के विपरीत, यह दस्तावेज़ इंडो-पैसिफिक समस्या के किसी भी उल्लेख की अनुपस्थिति से स्पष्ट था, जो शायद पश्चिम के साथ अपने द्विपक्षीय मुद्दों पर जोर देने के स्थान पर चीन के लिए सौदेबाजी की रियायत थी. दस्तावेज़ दोनों पक्षों की संतुष्टि के लिए था जिसे उन्होंने अपने-अपने दृष्टिकोण से देखा.
इस आयोजन को 'सफलतापूर्ण शिखर सम्मेलन' करार देते हुए रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने 'वैश्विक संस्थानों के लोकतंत्रीकरण के लिए नींव तैयार करने' के लिए भारत को धन्यवाद दिया और अंतिम दस्तावेज़ को रूस की जीत के रूप में सराहा.