वाशिंगटन:अमेरिका के एक संघीय आयोग ने भारत में सरकारी एजेंसियों और अधिकारियों को धार्मिक स्वतंत्रता के 'गंभीर उल्लंघन' के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए बाइडन प्रशासन से उनकी सम्पत्तियों से जुड़े लेनदेन पर रोक लगाकर उन पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया है. अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने साथ ही अमेरिकी संसद से अमेरिका-भारत द्विपक्षीय बैठकों के दौरान धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे उठाने और इस पर सुनवाई करने की सिफारिश की.
यूएससीआईआरएफ ने धार्मिक स्वतंत्रता पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में अमेरिकी विदेश विभाग से कई अन्य देशों के साथ-साथ भारत को धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति पर 'विशेष चिंता वाले देश' के रूप में निर्दिष्ट करने के लिए कहा. यूएससीआईआरएफ 2020 से विदेश विभाग से ऐसी ही सिफारिश कर रहा है, जिन्हें अब तक स्वीकार नहीं किया गया है. यूएससीआईआरएफ की सिफारिशें मानना विदेश विभाग के लिए अनिवार्य नहीं है.
भारत ने पूर्व में तथ्यों को गलत ढंग से प्रस्तुत करने के लिए यूएससीआईआरएफ की आलोचना की है. भारत ने इसे 'विशेष चिंता का संगठन' भी बताया है. भारत के विदेश मंत्रालय ने जुलाई में एक कड़ी प्रतिक्रिया में कहा था कि 'ये टिप्पणियां भारत और इसके संवैधानिक ढांचे, इसकी बहुलता और इसके लोकतांत्रिक लोकाचार की समझ की भारी कमी को दर्शाती हैं.'
इसने कहा, 'हमने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर यूएससीआईआरएफ द्वारा भारत पर की गई पक्षपातपूर्ण और गलत टिप्पणी देखी है.' मंत्रालय ने कहा था, 'अफसोस की बात है, यूएससीआईआरएफ अपने प्रेरित एजेंडे के तहत अपने बयानों और रिपोर्ट में बार-बार तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना जारी रखता है. इस तरह के कदम केवल संगठन की विश्वसनीयता और निष्पक्षता के बारे में चिंताओं को मजबूत करते हैं.'
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यूएससीआईआरएफ ने अपनी रिपोर्ट के भारत खंड में आरोप लगाया कि 2022 में, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति लगातार खराब होती गई. रिपोर्ट में यूएससीआईआरएफ ने आरोप लगाया कि पूरे वर्ष भारत सरकार ने राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर धार्मिक रूप से भेदभावपूर्ण नीतियों को बढ़ावा दिया और लागू किया, जिसमें धर्मांतरण, अंतर्धार्मिक संबंध, हिजाब पहनने और गोहत्या को लक्षित करने वाले कानून शामिल हैं, जो मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, दलितों और आदिवासियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं.
यूएससीआईआरएफ ने रिपोर्ट में आरोप लगाया, 'राष्ट्रीय सरकार ने आलोचना वाली आवाजों, विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनकी ओर से वकालत करने वालों को निगरानी, उत्पीड़न, संपत्ति के ध्वस्तीकरण और गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत नजरबंदी के जरिये दबाना जारी रखा और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत निशाना बनाया.'