इस्लामाबाद:पाकिस्तान की पूर्व मंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की करीबी सहयोगी शिरीन मजारी ने मंगलवार को पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी छोड़ दी और समूचे पाकिस्तान में नौ मई को संवेदनशील रक्षा प्रतिष्ठानों पर हमला करने वाले खान के समर्थकों की कार्रवाई की निंदा की. मजारी को 12 मई के बाद से चार बार गिरफ्तार किया जा चुका है और रिहा होने के बाद उन्होंने अपने इस्तीफे तथा सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्ति की घोषणा की. पुलिस ने नौ मई को हुई हिंसा के संबंध में उन्हें उनके आवास से पकड़कर जेल भेजा था.
खान के शासन में वह 2018 से 2022 तक मानवाधिकार मंत्री रही थीं. यहां संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने नौ मई को खान की गिरफ्तारी के बाद हुई हिंसा की निंदा की और कहा कि उन्होंने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में ऐसा ही हलफनामा दिया है. खान पीटीआई के प्रमुख भी हैं. उन्होंने कहा, 'न सिर्फ नौ और 10 मई की हिंसा बल्कि मैंने हमेशा हर तरह की हिंसा खासकर सरकारी प्रतिष्ठानों और जनरल मुख्यालय, उच्चतम न्यायालय एवं संसद जैसे प्रतीकों के खिलाफ हिंसा की निंदा की है.'
इसके बाद उन्होंने खान की पार्टी पीटीआई को छोड़ने के साथ साथ सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के अपने फैसले की घोषणा की. उन्होंने कहा कि गिरफ्तारी का उनके स्वास्थ्य और परिवार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. उन्होंने कहा, 'आज से मैं पीटीआई का हिस्सा नहीं हूं, न ही सक्रिय राजनीति में शामिल हूं क्योंकि मेरे लिए प्राथमिकता मेरा परिवार, मेरी माता और बच्चे हैं.' इस अप्रत्याशित प्रदर्शन के बाद मजारी समेत कम से कम 13 नेताओं को सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने के अध्यादेश के तहत गिरफ्तार किया गया था. कई बार उन्हें अदालत से जमानत मिली लेकिन हर बार रिहा होने के तुरंत बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.
कानूनी प्रक्रियाओं का सामना कर रहे कई पीटीआई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. खान से अलग होने के मजारी के फैसले को पार्टी के लिए बड़ा राजनीतिक नुकसान माना जा रहा है. 'द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' अखबार ने बताया कि नौ मई की आगजनी की घटना के बाद पार्टी से अलग होने वाले पीटीआई नेताओं की संख्या बढ़कर अब 24 तक पहुंच गई है. मजारी की तरह पीटीआई से अलग होने वाले खानेवल से प्रांतीय विधानसभा के पूर्व पीटीआई सदस्य अब्दुल रजाक खान नियाजी ने एक संवाददाता सम्मेलन में सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमलों की निंदा की और सुझाव दिया कि पार्टी नेतृत्व के समर्थन के बिना ऐसी कार्रवाई नहीं हो सकती थी.