इस्लामाबाद (पाकिस्तान) : पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश (सीजेपी) उमर अता बंडियाल 10 अप्रैल को पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ द्वारा दायर 'उपचारात्मक समीक्षा याचिका' को वापस लेने के संघीय सरकार के फैसले के खिलाफ सुनवाई करेंगे. डॉन ने खबर दी है कि सरकार जस्टिस काजी फैज ईसा के खिलाफ है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने संबंधित अधिकारियों को न्यायमूर्ति काजी फैज ईसा के खिलाफ समीक्षा याचिका को आगे नहीं बढ़ाने का आदेश दिया है. उन्होंने अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस लेने का निर्देश दिया.
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30 मार्च को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर शहबाज शरीफ ने जोर देकर कहा कि न्यायमूर्ति काजी फैज ईसा के खिलाफ उपचारात्मक समीक्षा याचिका 'दुर्भावना' पर आधारित थी. जो न्यायाधीश को परेशान करने के लिए दायर की गई थी. उन्होंने ट्वीट किया कि मेरे निर्देश पर, सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश, न्यायमूर्ति काजी फैज ईसा के खिलाफ उपचारात्मक समीक्षा याचिका को वापस लेने का फैसला किया है. उन्होंने कहा कि उपचारात्मक समीक्षा द्वेष पर आधारित थी. उन्होंने कहा कि यह याचिका इमरान नियाजी के कहने पर माननीय न्यायाधीश को परेशान करने और डराने के लिए दायर की गई थी.
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डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा जारी एक बयान में, शहबाज शरीफ ने कहा कि न्यायमूर्ति ईसा और उनके परिवार को 'परेशान और बदनाम' किया गया. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बांटने की नापाक साजिश है. उन्होंने याद दिलाया कि उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) और गठबंधन दलों ने विपक्ष में रहते हुए भी इस कदम की निंदा की थी. पूर्व पीटीआई सरकार ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी थी कि 26 अप्रैल, 2021 को न्यायमूर्ति काजी फैज ईसा समीक्षा मामले में ज्यूडिशियल एकाउंटेबिलिटी नहीं निभाई थी.
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26 अप्रैल, 2021 को, सुप्रीम कोर्ट ने छह से चार के बहुमत से 19 जून, 2022 के अपने बहुमत के फैसले को पलट दिया. 19 जून, 2022 को अदालत ने कर अधिकारियों को न्यायमूर्ति काजी फैज ईसा की पत्नी और बच्चों के नाम पर तीन विदेशी संपत्तियों की जांच का आदेश दिया था. उपचारात्मक समीक्षा में कहा गया है कि 26 अप्रैल के फैसला ज्यूडिशियल एकाउंटेबिलिटी नहीं निभाई गई. अपील के अनुसार, बहुमत के फैसले ने न्यायिक जवाबदेही के मानकों को कमजोर कर दिया था और केवल न्यायिक जवाबदेही से बचने के लिए न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांत के पीछे छिपा गया और न्यायाधीशों को आरोपों से बचने के लिए एक सुरक्षा कवच प्रदान किया गया.
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(एएनआई)