पोर्ट्समाउथ (ब्रिटेन) : अमेरिका की 'सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी' (सीआईए) द्वारा अलकायदा के नेता अयमान अल-जवाहिरी को हाल में मारे जाने के कारण अमेरिकी नेताओं और अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के बीच अविश्वास और गहरा गया है. इस घटना ने अमेरिका और तालिबान के बीच 2020 में हुए दोहा शांति समझौते को लेकर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.
इसके साथ ही व्यापक प्रभावों वाली एक नई कहानी सामने आ रही है और वह है विकसित किए जा रहे अंतरराष्ट्रीय हथियारों की गति एवं प्रकृति. अल-जवाहिरी को मारने के लिए कथित रूप से इस्तेमाल किए गए हथियार- 'द हेलफायर आर9एक्स 'निंजा' मिसाइल को ही ले लीजिए. इस मिसाइल का इस्तेमाल 1970 और 1980 के दशकों में सोवियत टैंक को नष्ट करने के लिए मूल रूप से किया गया था. इसके बाद 1990 के दशक में विभिन्न क्षमताओं वाले इसके कई संस्करण विकसित किए गए. इन्हें 'रीपर' ड्रोन या हेलीकॉप्टर से दागा जा सकता है.
पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय में अप्लाइड एथिक्स के प्रोफेसर और सुरक्षा एवं जोखिम अनुसंधान के निदेशक पीटर ली के मुताबिक हेलफायर आर9एक्स 'निंजा' नया हथियार नहीं है. इसका 2017 में सीरिया में अलकायदा के आतंकवादी अबु खैर अल मसरी को मारने के लिए कथित रूप से इस्तेमाल किया गया था. 'हेलफायर' मिसाइलें विशेष रूप से तैयार की गई मिसाइल होती हैं. इन गुप्त मिसाइलों का इस्तेमाल आतंकवादियों को मारने के मकसद से सटीक हमले करने के लिए किया जाता है.
'विध्वंसक (सुपर) हथियार' :'निंजा' मिसाइल दागे जाने पर विस्फोट नहीं होता और नुकसान भी बहुत कम होता है. साथ ही आम लोगों के हताहत होने की गुंजाइश भी कम होती है. ये व्यक्तियों और संपत्ति को नुकसान पहुंचाए बिना अपने लक्ष्य को भेदने में सक्षम होती हैं, लेकिन अन्य 'सुपर' हथियार लोगों के जीवन जीने के तरीके और युद्ध लड़ने के तरीकों को बदल सकते हैं. रूस ने पुरानी प्रौद्योगिकियों पर आधारित तथाकथित 'सुपर' हथियारों में काफी निवेश किया है. रूस की अवानगार्ड मिसाइल का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है. इसी तरह चीन की डीएफ-17 हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल भी अमेरिकी मिसाइल रक्षा प्रणाली से बचने के इरादे से विकसित की गई है.