ब्रसेल्स : अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (US President Joe Biden) और उनके नाटो (NATO) समकक्ष शिखर सम्मेलन में अफगानिस्तान को सांकेतिक अलविदा (symbolic adieu to Afghanistan) कहेंगे. अमेरिका वहां चले अपने सबसे लंबे युद्ध को समाप्त कर रहा है और अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान से वापस बुला रहा है.
मारे जा चुके हैं 1144 सुरक्षाकर्मी
सोमवार को यह बैठक नए सिरे से उन सवालों को खड़ा करेगी कि क्या नाटो के सबसे महत्वकांक्षी अभियान की कभी जरूरत भी थी. ब्राउन विश्वविद्यालय (Brown University) के आंकड़ों के मुताबिक 18 साल तक चले इस अभियान के लिए अकेले अमेरिका को 2,260 अरब डॉलर खर्च करने पड़े हैं. जनहानि के मामले में 2,442 अमेरिकी सैनिकों की तथा अमेरिका के सहयोगी देशों के 1,144 सुरक्षाकर्मियों की जान जा चुकी है. अभियान में मारे जाने वालों का नाटो कोई रिकॉर्ड नहीं रखता है.
अफगानिस्तान के हजारों नागरिकों की मौत
अभियान में हालांकि, अफगानिस्तान को इससे कहीं अधिक नुकसान हुआ है जहां 47,000 से ज्यादा आम नागरिक, राष्ट्रीय सशस्त्र बलों और पुलिस के करीब 69,000 सदस्य तथा करीब 51,000 विद्रोही लड़ाके मारे गए हैं.
कैसे शुरू हुआ नाटो
अमेरिका नीत सैन्य गठबंधन- नाटो (NATO) द्वारा 2001 में यह सैन्य अभियान आतंकी संगठन अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन को शरण देने के कारण तालिबान को सत्ता से दूर करने के लिए शुरू किया गया था. कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि इस अभियान से दीर्घकालिक स्थिरता, अर्थपूर्ण लोकतंत्र या सुरक्षा प्राप्त हुई.
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कार्नेज एंडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस (Carnegie Endowment for International Peace) में यूरोप कार्यक्रम के निदेशक एरिक ब्रैटबर्ग (Erik Brattberg) ने कहा, इस समय, आपको आभास होगा कि नाटो नेता लगभग कम महत्व बताना चाहते हैं और इसे बड़ी बात बताने के बजाय चुपचाप निकल जाना चाहते हैं तथा अन्य कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने वाले हैं.