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पश्चिम अंटार्कटिक में तेजी से पिघल रही है बर्फ, बढ़ सकता है असंतुलन

पश्चिम अंटार्कटिक की बर्फ 122 मीटर तक गल गई है. इसके चलते पश्चिम अंटार्कटिक की एक चौथाई बर्फ अब अस्थिर है. जानें इससे क्या प्रभाव पड़ सकता है.

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Published : May 20, 2019, 12:04 AM IST

लंदन: वैज्ञानिकों का कहना है कि अंटार्कटिक की बर्फ की चादर पश्चिम के अंटार्कटिक में सबसे तेजी से होने वाले बदलावों के कारण 122 मीटर तक पतली हो गई है. यहां समुद्र के पिघलने से ग्लेशियर का असंतुलन बढ़ गया है.

यूके सेंटर फॉर पोलर ऑब्जर्वेशन एंड मॉडलिंग (सीपीओएम) ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी उपग्रह अल्टीमीटर माप और क्षेत्रीय जलवायु के एक मॉडल के संयोजन के द्वारा पूरे महाद्वीप में बर्फ और बर्फ के आवरण में परिवर्तन पर नजर रखी.

शोधकर्ताओं ने कहा कि इसका मतलब यह है कि प्रभावित ग्लेशियर अस्थिर हैं क्योंकि वे बर्फबारी से पिघलने और बर्फबारी से अधिक द्रव्यमान खो रहे हैं.

उन्होंने पाया कि ग्लेशियर के पतले होने का पैटर्न स्थिर नहीं रहा है.1992 से पश्चिम अंटार्कटिका के 24 प्रतिशत के आसपास थिनिंग फैल गया है और इसके सबसे बड़े बर्फ धाराओं - पाइन द्वीप और थवाइट्स ग्लेशियर, जो अब सर्वेक्षण की शुरुआत में पांच गुना तेजी से बर्फ खो रहे हैं.

जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, एक रैकमो मॉडल का कहना है कि1992 और 2017 के बीच ईआरएस -1, ईआरएस -2, एनविसैट, और क्रायोसेट -2 उपग्रह ऊंचाई मिशनों द्वारा दर्ज अंटार्कटिक बर्फ शीट ऊंचाई के 800 मिलियन से अधिक मापों में किया गया. रैकमो क्षेत्रीय जलवायु मॉडल है.

इसके साथ ही बर्फ की पर्ते गलने लगी हैं है और मापी गई ऊंचाई के हिसाब से अब इसमें काफी बदलाव आया है. ये जलवायु परिवर्तन की वजह से हुआ है. कम बर्फ बारी और लंबे समय तक मौसम में बदलाव और समुद्र के तापमान में बदलाव आना यही संकेत करता है कि जलवायु परिवर्त ही मुख्य कारण है.

अंटार्कटिका के कुछ हिस्सों में बर्फ की चादर असाधारण मात्रा से पतली हो गई है. इसलिए कहा जा रहा है कि जलवायु में बदलाव के कारण यह हुआ है. ये कहना है प्रमुख लेखक और सीपीओएम के निदेशक प्रोफेसर एंडी शेफर्ड का.

टीम ने माप सतह की ऊंचाई के परिवर्तन की तुलना बर्फबारी में नकली बदलावों से की. साथ ही कहा कि जहां विसंगति अधिक थी वहां इसके मूल को ग्लेशियर के असंतुलन के लिए जिम्मेदार ठहराया है.

शोधकर्ताओं ने पाया कि बर्फबारी में उतार-चढ़ाव एक समय में कुछ वर्षों के लिए बड़े क्षेत्रों में ऊंचाई पर छोटे बदलावों के लिए जिम्मेदार होता है. बर्फ की मोटाई में सबसे स्पष्ट बदलाव ग्लेशियर के असंतुलन के संकेत हैं, जो दशकों से कायम हैं.

शेफर्ड कहते हैं 'यह जानते हुए कि बर्फ कितनी गिर गई है, इससे हमें उपग्रह रिकॉर्ड में ग्लेशियर बर्फ में अंतर्निहित परिवर्तन का पता लगाने में मदद मिली है. हम अब स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि अंटार्कटिका के सबसे कमजोर ग्लेशियरों में से कुछ में बर्फ गलने की लहर तेजी से फैल रही है और इसका नुकसान देखने को मिलेगा.'

शेफर्ड ने कहा, 'कुल मिलाकर पूर्वी और पश्चिमी अंटार्कटिका में 1992 के बाद से वैश्विक स्तर पर 4.6 मिलीमीटर (मिमी) तक बर्फ पिघली है. ये एक बड़ा नुकसान है.'

अध्ययन के सह-लेखक, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के मार्कस एंग्डहल ने कहा, 'यह एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन है कि कैसे उपग्रह मिशन हमें यह समझने में मदद कर सकते हैं कि हमारा ग्रह कैसे बदल रहा है. ध्रुवीय क्षेत्र शत्रुतापूर्ण वातावरण हैं और जमीन से पहुंच के लिए बेहद मुश्किल हैं. इस वजह से अंतरिक्ष से देखने के लिए, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ट्रैक करने के लिए यह एक आवश्यक उपकरण है.'

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