पैस्ले (स्कॉटलैंड) : संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, ब्रिटेन के लगभग 84 लाख लोगों को अपने लिए पर्याप्त खाना जुटाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, जो ब्रिटेन को लातविया और हंगरी जैसे देशों के बराबर खड़ा कर देता है.
इस स्थिति को खाद्य असुरक्षा कहा जाता है और यह 2008 के वित्तीय संकट और उसके बाद के दशक की मितव्ययिता के बाद से बढ़ रहा है. लेकिन पिछले एक साल में, कोविड-19 ने हालात और खराब कर दिए हैं. महामारी के कारण, पहले से कहीं अधिक लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त नहीं है.
शुरुआती आंकड़े 2018 की तुलना में 2020 में खाद्य असुरक्षा के चौगुने होने की तरफ इशारा करते हैं. यह खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं होने से लेकर, भोजन तक पहुंच होने में कठिनाइयों, वास्तव में भूखा होने की चिंता से जुड़ा है.
'सामान्य' हालात में, इस तरह की खाद्य असुरक्षा का जोखिम समाज के सबसे कमजोर तबके को झेलना पड़ता था. इसमें कम आय वाले या गरीबी में रहने वाले और किसी तरह के सहायता नेटवर्क से वंचित लोग शामिल हैं. महिलाओं को विशेष रूप से खाद्य असुरक्षा का खतरा होता है क्योंकि वे एकल अभिभावक वाले अधिकांश घरों (86%) की प्रमुख होती हैं, जो ब्रिटेन में ट्रस्सेल ट्रस्ट भोजन बैंक की सबसे बड़ी उपयोगकर्ताओं हैं.
बेघर, युवा, शरण चाहने वाले और दिव्यांगों पर अध्ययन
यूनीवर्सिटी ऑफ द वेस्ट ऑफ स्कॉटलैंड और डेमियन डेम्पसी, यूनीवर्सिटी ऑफ द वेस्ट ऑफ स्कॉटलैंड के हार्टविग पौट्ज़ के मुताबिक यूडब्ल्यूएस-ऑक्सफैम भागीदारी के लिए किए गए हमारे हालिया शोध में, हमने पता लगाया कि कैसे महामारी ने ब्रिटेन में खाद्य असुरक्षा के पैमाने को बढ़ा दिया है। हमने इस दौरान स्कॉटलैंड के चार समूहों पर ध्यान केंद्रित किया. यह समूह हैं- बेघर, युवा देखभालकर्ता, शरण चाहने वाले और दिव्यांग लोग. इन समूहों को सामान्य समय में भी पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं रहने का खतरा अधिक होता है. हमने कोविड-19 पर उभरते आंकड़ों और शोध के साथ साथ महामारी के कारण पूरे ब्रिटेन में खाद्य असुरक्षा पर पड़े प्रभाव को भी देखा.
खाद्य असुरक्षा
उनका कहना है कि हमारे अपने और मौजूदा शोध के माध्यम से, हमने यह पता लगाया कि संकट के दौरान मुख्यत: तीन कारणों से खाने की कमी बढ़ जाती है:
1. बढ़ती जरूरत,जो मुख्य रूप से आमदनी न होने या इससे कमी से जुड़ी है.
2. भोजन तक पहुंच हासिल करने में नई और बढ़ती चुनौतियां
3. खाद्य बैंकों के संचालन पर लॉकडाउन का असर
उन्होंने बताया कि हमने दिव्यांग, बेघर, युवा देखभालकर्ताओं और शरण चाहने वालों की मदद करने वाले संगठनों से जुड़े लोगों से इस बारे में बात की कि कैसे महामारी ने घरेलू वित्तीय प्रणाली को प्रभावित किया. कई युवा देखभालकर्ताओं को लॉकडाउन के कारण रोजगार का तत्काल नुकसान हुआ. क्योंकि वे अक्सर कम वेतन और आकस्मिक रोजगार से जुड़े होते हैं, उन्हें छुट्टियों में वेतन मिलने जैसी योजना का लाभ नहीं मिलता. इसी के साथ, जीने की कीमत भी बढ़ गई. बाहर निकलने पर लगी बंदिशों ने उन दुकानों तक जाना दूभर कर दिया जहां सस्ता भोजन मिलता था. इसलिए स्थानीय स्तर पर खरीदारी करने में पैसा कम पड़ गया.
दिव्यांग लोग - विशेष रूप से जिन्हें बसेरो भीतर रहने के लिए कहा गया था - ऑनलाइन खरीदारी पर अधिक निर्भर हो गए. सामान पहुंचने में लंबा वक्त लगा और विकलांग लोगों के पास इंटरनेट तक पहुंच होने की संभावना कम होती है, घरों तक सामान पहुंचाने की सेवाएं भी अतिरिक्त लागत के साथ आती हैं.
ग्लासगो में शरण चाहने वालों की संख्या ब्रिटेन में सबसे ज्यादा है और अधिकांश को महामारी की शुरुआत में होटलों में या रहने की पूर्ण सुविधा देने वाले आवासों में स्थानांतरित कर दिया गया. इसका मतलब है कि उन्होंने अपनी सीमित नकदी पात्रता खो दी, वे होटल के भोजन पर निर्भर थे और स्वास्थ्य या सांस्कृतिक कारणों से उन्हें जो भोजन चाहिए था वह उसे खरीद पाने में असमर्थ थे.