वेलिंगटन : अगर आप खुद को बुझे-बुझे, सुस्त और उदास महसूस कर रहे हैं तो यकीन मानिए आप अकेले नहीं हैं. 2021 में यह प्रमुख भावनाओं में से एक है क्योंकि हमारा जीवन वैश्विक महामारी के साये में गुजर रहा है और दुनियाभर में कई भयावह घटनाक्रम हो रहे हैं.
बहुत से लोग संघर्ष कर रहे हैं और इन संघर्षों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद महामारी ने फलने-फूलने का मौका भी दिया है - अच्छी तरह से काम करने और अच्छा महसूस करने का, इस भावना के साथ कि जीवन सार्थक है.
वेलिंगटन यूनिवर्सिटी के डगल सुदरलैंड के मुताबिक हाल में हुए एक अध्ययन में सामने आया कि 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के जितने दुष्प्रभाव हुए हैं, उतने ही सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं.
कुछ रणनीति हैं जिनका इस्तेमाल हम सुस्ती और उदासीनता को पहचानने लेकिन इसके साथ ही उत्कर्ष की ओर बढ़ने के लिए कर सकते हैं. इनमें से एक है 'और' की धारणा जो एक मनोवैज्ञानिक अभ्यास है जिसका उपयोग आमतौर पर कई उपचारों में किया जाता है, जिसमें डायलेक्टिकल बिहेवियर थेरेपी (डीबीटी) शामिल है. डीबीटी में विरोधाभास के बीच संतुलन बनाना होता है.
वेलिंगटन यूनिवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक जब भी हम कठिन परिस्थितियों से गुजरते हैं तो एक आदत की तरह 'सबकुछ या कुछ भी नहीं' या 'श्वेत-श्याम' की तरह सोचने लगते हैं और इस बीच हम यह भूल जाते हैं कि सफेद और स्याह के बीच 'ग्रे' भी आता है.
परिस्थितियों का सामना करने से कम होती है निराशा