ब्रिटेन में बीते 12, दिसंबर 2019 को आम चुनाव संपन्न हुए हैं, जो जून 2017 में हुए आम चुनावों के 30 महीने के अंदर देश में हुए दूसरे आम चुनाव हैं. कंजर्वेटिव, लेबर, लिब्रल डेमोक्रेट, स्कॉटिश नेशनल और कई अन्य दलों ने इन चुनावों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और इन चुनावों का विजेता बना 'ब्रेग्जिट'. बोरिस जॉनसन के नेतृत्व में कंजर्वेटिव पार्टी ने 650 में से 365 सीटों पर जीत दर्ज की. यह संख्या पिछले चुनावों से 47 ज्यादा थी.
ब्रेग्जिट पर किसी साफ रुख का न होना जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ और पार्टो ने 1935 के बाद से अब तक का अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया. 59 सीटों के नुकसान के साथ लेबर पार्टी की सीटें 203 पर ही सिमट गईं.
इस बार ओपिनियन पोल लोगों की नब्ज पकड़ने में भी कामयाब रहे. प्रधानमंत्री जॉनसन के नेतृत्व में उनकी पार्टी को मिला बहुमत इस बात की तरफ इशारा करता है कि देश के लोग जून 2016 से लटके और दो प्रधानमंत्रियों को गद्दी से हटाने वाले ब्रेग्जिट पर अब फैसला चाहते हैं. ऐसा लगता है कि ब्रेग्जिट के लिए दी गई 31 जनवरी, 2020 की समय सीमा इस बार तय कर ली जाएगी. ये ईयू के लिए क्या मायने रखता है, यह तो समय ही बता सकेगा.
हालांकि यह कहना सही नहीं होगा कि ब्रेग्जिट इस क्षेत्र के सबसे ताकतवर संघों में से एक, ईयू के लिए नुसानदायक होगा. पिछले दस सालों में ईयू, मुख्यत: ईसाई देशों के एक ताकतवर संगठन के तौर पर उभरा है. हालांकि इस संघ में तुर्की को शामिल करने की बातें तो हुई थीं, मगर समय के साथ बातें ही रह गईं.
जानकारों की मानें तो ब्रेग्जिट से ब्रिटेन के पास फिलहाल खुश होने को बहुत ज्यादा नही है. बल्कि इसके चलते, देश के एक मध्य शक्ति बनकर रह जाने का खतरा भी है. वहीं, ईयू के पक्षधारी स्कॉटलैंड में भी ब्रिटेन ले अलग होने के लिए एक दूसरा जनमत संग्रह कराने की मांग जोर पकड़ती जा रही है. स्कॉटिश नेशनल पार्टी ने इन चुनावों मे अच्छा प्रदर्शन करते हुए, 48 सीटें हासिल की हैं, वहीं कंजर्वेटिव पार्टी को सात और लेबर पार्टी को छह सीटों का नुकसान हुआ.
2014 में हुए पहले जनमत संग्रह में 45% लोगों ने ब्रिटेन से अलग होने के लिए वोट किया था. तब से अब तक ब्रिटेन से अलग होने की भावना ने तेजी पकड़ी है. इसी तरह, ब्रेग्जिट के चलते अगर जॉनसन बॉर्डर कंट्रोल लागू करते हैं तो पूर्वी आयरलैंड से भी संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है. आयरलैंड दोनों देशों के बीच मौजूद काल्पनिक बॉर्डर को जारी रखने के पक्ष में है.
दूसरी तरफ, चाहे कितनी भी अच्छी तस्वीर दिखाने की कोशिश हो, लेकिन आर्थिक जानकारों की राय में, ब्रेग्जिट से देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ने का खतरा मंडरा रहा है. देश की जीडीपी सिकुड़ कर 3% तक जा सकती है.
वहीं, भारत, चीन, ईयू और अमेरिका से बेहतर ताल्लुक बनाने के लिए ब्रिटेन को नई रणनीतियों पर काम करना पड़ेगा. ये राह नई सरकार के लिए आसान नही होने वाली है. जिस तरह की जल्दबाजी ब्रेग्जिट को लेकर देश में मची है, उससे यह नहीं लगता कि एफटीए बहुत जल्दी या ब्रिटेन की पसंद के हिसाब से हो सकेंगे.
लंदन के पास ईयू से समझौते की शर्तों को अंतिम रूप देने के लिए 31 दिसंबर 2020 तक का ही समय है. 17 अक्टूबर, 2019 को इस मसले पर आंशिक समझौते पर पहुंचा जा चुका था. जॉनसन और ईयू के बीच हुए इस समझौते को लेबर पार्टी के बहुमत वाले हाउस ऑफ कॉमन्स ने खारिज कर दिया था. लेकिन अब जबकि जॉनसन के पास पूर्ण बहुमत है तो यह दोबारा बातचीत का बेस बन सकता है.