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शी का पैसों का खेल, जानें चीन कैसे अन्य देशों पर कर रहा कब्जा

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के विनाशकारी सपनों ने कई देशों के साथ बड़े पैमाने पर विवादों का नेतृत्व किया है. बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की वैश्विक श्रृंखला ने बीजिंग को कई सहयोगी दिए हैं, लेकिन औपनिवेशिक कूटनीति अधिक समय तक बरकरार नहीं रह सकती है. जाहिर है विश्व विजेता और सुपरपावर बनने के ख्वाब में शी इतने आगे निकल गए हैं कि शायद उन्हें यह भी अंदाजा नहीं कि वह विनाश के रास्ते पर हैं और पूरी दुनिया के साथ-साथ अपने देश में भी बदनाम हो गए हैं.

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Published : Sep 6, 2020, 6:38 AM IST

xi jinping
शी जिनपिंग

हैदराबाद : चीन और भारत में तनाव चरम पर है. दोनों देश की सेना आमने-सामने हैं. युद्ध की आशंका से भी कोई इनकार नहीं कर रहा. चीन की महत्वकांक्षा के पीछे अगर कोई चेहरा दिमाग में आता है तो उसका नाम है शी जिनपिंग. शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति हैं. इनके आने के बाद से ही चीन उग्र होता जा रहा है. साथ ही बदनाम भी. अब शी जिनपिंग को पूरी दुनिया शक की नजरों से देख रही है और इनके विरोध में खड़ी है. हालत यह है कि जिनपिंग का विरोध अब उनके ही देश में भी हो रहा है. आइए जानते और समझते हैं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बारे में.

हंगामा खड़ा करना रहा मकसद
शी जिनपिंग सरकार ने भारत के खिलाफ कई सैन्य और राजनयिक गतिरोधों को जन्म दिया है. भाजपा सरकार बनने के बाद बीजिंग ने केवल एक बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का पक्ष लिया है. 2019 में मसूद अजहर को एक वैश्विक आतंकवादी के रूप में नामित किया. हालांकि, यह भी मजबूरी ज्यादा थी. शी जिनपिंग शासन का प्रमुख दृष्टिकोण भारत के प्रतिद्वंद्वी को मजबूत करना और हंगामा खड़ा करना रहा है. चाहे वह हिंद महासागर पर कड़ी नजर रखने के बारे में हो या पाकिस्तान को सैन्य रसद प्रदान करने के लिए या फिर श्रीलंका के रणनीतिक हंबनटोटा बंदरगाह के अधिग्रहण का मामला. कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के समर्थन के लिए बयानबाजी, एनएसजी में भारत के प्रवेश का विरोध तक के पीछे चीन का शीर्ष नेतृत्व था. शी जिनपिंग का नेतृत्व. जिनपिंग ने लंबे समय में अपनी भारत विरोधी धातु नीति को आकार दिया. इसके लिए बीजिंग ने रणनीतिक देशों में बहुत धन का निवेश किया है, जो कभी भी अपना ऋण वापस नहीं कर सकते हैं और अंततः उस देश पर कम्युनिस्ट शासन का अप्रत्यक्ष नियंत्रण हो जाएगा.

विदेश नीति उपनिवेश काल की
शी शासन ने प्रमुख अवसंरचनात्मक परियोजनाओं ओबीओआर और सीपैक की स्थापना की और इसने कई दक्षिण एशियाई, अफ्रीकी, पूर्वी यूरोपीय, लैटिन अमेरिकी और मध्य पूर्वी देशों में अपनी सहायता और विकास परियोजनाओं का विस्तार किया. शी ने अपने मंगल मिशन के लिए बीजिंग को एग्री प्लानिंग से मजबूत किया. उन्होंने आक्रामक कदम उठाए और व्यापक आलोचना के बावजूद विवादास्पद कदम वापस नहीं लिए. हांगकांग का नया सुरक्षा कानून उनके अड़ियल रवैये को साबित करता है. उनके कदम हमेशा एक गैर-समझौतावादी रुख दिखाते हैं. 2016 में आईसीजे ने फैसले में साउथ चाइना सी के दावों पर फिलीपींस का पक्ष लिया था, लेकिन शी के नेतृत्व ने आईसीजे के आदेश को साहसपूर्वक खारिज कर दिया. लगभग एक दशक से, बीजिंग ने अपनी विदेश नीति को उपनिवेश काल में आकार दिया है. चीन दूसरे देशों में अवसंरचनात्मक परियोजनाओं में भारी मात्रा में निवेश करता है, जिससे वह निवेश को लौटाने में कमजोर हो जाते हैं. अब तक, इस नीति से चीन को फायदा हुआ है. शी जिनपिंग ने अपने अल्पसंख्यकों पर दमनकारी कार्यों को बहुत अधिक वैश्विक रुकावट और विरोध के बावजूद रोका नहीं. उइगर और झिंजियांग निरोध केंद्रों को लेकर अमेरिका ने कुछ चीनी अधिकारियों पर व्यक्तिगत प्रतिबंध लगाए हैं, जबकि यूरोप इसका केवल नरम मुखर आलोचक है.

शी के नेता बनने की शुरुआत
शी जिनपिंग का जन्म वर्ष 1953 में कोरियाई युद्ध के दौरान हुआ था. उनके पिता का नाम झोंगक्सुन था. झोंगक्सुन चीन के संस्थापक माओ त्से-तुंग के साथी थे. शी जिनपिंग को माओ ने 1966 में सांस्कृतिक क्रांति की शुरुआत करने के लिए एक दूरदराज के गांव में भेजा था. इस क्रांति का उद्देश्य कम्युनिस्ट विचारधारा को संरक्षित करना था. माओ की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान 1966 में सभी तरह की शिक्षा को रोक दिया गया था. इसका उद्देश्य कम्युनिस्ट विचारधारा को संरक्षित करना था. हाई स्कूल के छात्र शी जिनपिंग को सात साल के लिए एक दूरदराज के गांव में भेजा गया था. शी जिनपिंग को 1974 में कई असफल प्रयासों के बाद कम्युनिस्ट पार्टी में स्वीकार किया गया था. एक साल बाद उन्होंने बीजिंग के सिंघुआ विश्वविद्यालय में केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की.

शी जिनपिंग का सफर

शंघाई का पेंशन फंड घोटाला बना मददगार
शीत युद्ध के दौरान इंजीनियरिंग की शिक्षा ने उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी में पैठ बनाने में मदद की. 1979 और 1982 के बीच जब उन्हें मध्य सैन्य कमान के उप-प्रमुख के रूप में सेवा मिली तो उन्होंने सैन्य अनुभव हासिल किया. उन्होंने सत्तारूढ़ पार्टी में शक्तिशाली पदों पर कब्जा कर लिया. शी ने ब्रिटेन में चीन के तत्कालीन राजदूत की बेटी से शादी की, लेकिन कुछ ही वर्षों में उनका तलाक हो गया. फिर भी, उन्होंने 1983 से 2007 तक चार प्रांतों में प्रमुख नेतृत्व के पदों पर काम किया. उनके प्रांतों का कार्यकाल हेबेई प्रांत से शुरू हुआ. अपने कार्यकाल के दौरान शी ने अमेरिका जाकर कृषि और पर्यटन की बारीकियों को सीखा. उन्होंने एक अमेरिकी परिवार के साथ समय बिताते हुए यह सीखा. 1987 में जब वह लौटे, तो शी फुजियान में जियामी के उप महापौर बन गए. उसी वर्ष, उन्होंने पेंग लियुआन से शादी की, जो पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में सेना के जनरल के रूप में कार्यरत थीं. शी ने सत्तारूढ़ नेतृत्व में सुचारू रूप से काम किया और कई वर्षों के लिए फुजियान और झेजियांग प्रांतों के गवर्नर के रूप में कार्य किया. यह 2007 में शंघाई का पेंशन फंड घोटाला था, जिसने शी की राजनीतिक प्रोफाइल को बढ़ावा दिया और उन्होंने पार्टी सचिव की कुर्सी हथिया ली. उन्हें प्रमुख पोलित ब्यूरो स्थाई समिति के सदस्य के रूप में नामित किया गया था. 2008 में शी राष्ट्र के उपाध्यक्ष बने. उन्होंने बीजिंग ओलंपिक की तैयारियों का नेतृत्व किया.

शी जिनपिंग का राजनीतिक सफर

नेता बनते ही शक्तिशाली हस्तियों को गिरफ्तार किया
शी के निरंतर सफल प्रयासों और संकट को सुलझाने की प्रकृति ने उन्हें एक उच्च स्तर पर पहुंचा दिया. 2012 में अपने उप राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान, उन्होंने वॉशिंगटन और बीजिंग के बीच मतभेदों को हल किया. शी ने अमेरिका की यात्रा की. बराक ओबामा से मुलाकात की और प्रशांत-एशियाई क्षेत्र में एक-दूसरे के हितों का सम्मान करने की कसम खाई. उनकी जमीनी और भ्रष्टाचार हटाने वाली छवि ने उन्हें सत्तारूढ़ पार्टी में मजबूती से स्थापित किया और शी को उसी वर्ष कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और केंद्रीय सैन्य आयोग के अध्यक्ष के रूप में चुना गया. 14 मार्च 2013 को, वह पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रपति बने. शी जिनपिंग ने सत्ता पाने के बाद तुरंत शीर्ष अधिकारियों से भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए आक्रामक कदम उठाने को कहा. इसके बाद देश की कई शक्तिशाली हस्तियों को भ्रष्टाचार में शामिल होने पर गिरफ्तार किया गया. सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने 2014 के अंत तक लाखों अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया. शी जिनपिंग ने धीमी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया और 2014 में व्यापार को मजबूत करने के लिए वन बेल्ट वन रोड पहल शुरू की. उसी वर्ष, वह एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक के साथ आए. एक साहसिक कदम के साथ, उन्होंने 2015 में एक-बाल नीति को समाप्त कर दिया. उन्होंने चीन की पुरानी नीति को हटा दिया. शी के यह काम अनुकूल रूप से देखे गए. उन्होंने भ्रष्टाचार पर सरकार के अधिकारियों को निशाना बनाया, लेकिन आलोचकों का मानना ​​है कि शी ने भ्रष्टाचार विरोधी नेता के रूप में अपनी छवि का निर्माण करते हुए स्पष्ट रूप से अपने विरोधियों पर निशाना साधा था. मानवाधिकार समूहों ने पत्रकारों, वकीलों और अन्य नागरिकों की गिरफ्तारी के लिए उनकी आलोचना की थी. चीन को किला बना दिया गया. इसे पश्चिमी दुनिया से काट दिया गया. स्कूल के पाठ्यक्रम से लेकर इंटरनेट तक पर शी ने कम्युनिस्ट शासन की सोच को नागरिकों पर थोप दिया. शी ने अपने देश को आगे बढ़ाने वाले आर्थिक नियमों को उन्नत किया, लेकिन उन पर देश के निर्यात को बढ़ाने के लिए मुद्रा में हेरफेर करने का आरोप लगा.

नेता के रूप में शी जिनपिंग

विश्व विजेता और सुपरपावर बनने के ख्वाब
चीन को वैश्विक महाशक्ति के रूप में बनाने के लिए शी ने प्रमुख सैन्य सुधारों को लागू किया. अब चीन के पास दुनिया की तीसरी सबसे मजबूत सेना है. चीनी नौसैनिक क्षमता अब दक्षिण एशिया पर हावी है और इसने विवादित दक्षिण चीन सागर पर रणनीतिक द्वीप बना लिए हैं. चीन का 18 देशों के साथ सीमा विवाद है और उनके खिलाफ आक्रामक कदम उठाए. शी जिनपिंग शासन अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ आक्रामक कदम उठाते हुए लगातार अपने शासन का सुंदर चित्रण करता रहा है. यह चीनी लोगों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाता है और उल्लंघन करते समय उन्हें बुरी तरह से सजा देता है. जिनपिंग के विनाशकारी सपनों ने कई देशों के साथ बड़े पैमाने पर विवादों का नेतृत्व किया है. बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की वैश्विक श्रृंखला ने बीजिंग को कई सहयोगी दिए हैं, लेकिन औपनिवेशिक कूटनीति अधिक समय तक बरकरार नहीं रह सकती है. जाहिर है विश्व विजेता और सुपरपावर बनने के ख्वाब में शी इतने आगे निकल गए हैं कि शायद उन्हें यह भी अंदाजा नहीं कि वह विनाश के रास्ते पर हैं और पूरी दुनिया के साथ-साथ अपने देश में भी बदनाम हो गए हैं.

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