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चीन की हाइपरसोनिक हथियारों के परीक्षण से US चिंतित, ड्रैगन को कहा 'बड़ी चुनौती' - china hypersonic weapons test

अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा कि अमेरिका चीन की सैन्य क्षमता को लेकर चिंतित है और चीन को बड़ी चुनौती मानता है.

Lloyd Austin (file photo)
लॉयड ऑस्टिन (फाइल फोटो)

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Published : Dec 2, 2021, 2:14 PM IST

सियोल : अमेरिका के रक्षा प्रमुख ने कहा है कि चीन के हाइपरसोनिक हथियारों के परीक्षण से क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है. अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने अपने दक्षिण कोरियाई समकक्ष के साथ सियोल में वार्षिक सुरक्षा वार्ता के बाद गुरुवार को यह टिप्पणी की.

ऑस्टिन ने कहा कि अमेरिका चीन की सैन्य क्षमता को लेकर चिंतित है और चीन को बड़ी चुनौती मानता है. उन्होंने कहा कि अमेरिका अपने और अपने सहयोगियों का (चीन से) संभावित कई खतरों के खिलाफ बचाव में सहयोग जारी रखेगा.

बता दें कि चीन ने दो साल पहले एक अक्टूबर 2019 को तियानमेन चौराहे पर DF-17 मिसाइल का प्रदर्शन किया. यह चीन की नई अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है, जो पारंपरिक और परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है. लेकिन इन सबसे अलग जो बात गौर करने लायक है, वो ये कि इसमें हाइरपसोनिक ग्लाइड सिस्टम (Hypersonic Glide System) लगा है. यानी यह मिसाइल समुद्र के ऊपर कम ऊंचाई पर भी तेजी से उड़ सकता है.

क्या होता है हाइपरसोनिक हथियार?

हाइपरसोनिक हथियार का मतलब होता है- ध्वनि की गति से पांच गुना ज्यादा स्पीड में चलने वाला हथियार. यानी जो हथियार हवा में 6115 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से उड़ सके, उसे हम हाइपरसोनिक हथियार कहेंगे. अगर यह हथियार समुद्र से कुछ ऊपर 1220 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से उड़ता है, तो इस पर हमला करना मुश्किल हो जाएगा. हाइपरसोनिक हथियार की खासियत होती है कि यह कम ऊंचाई पर भी उड़ सकता है. आसानी से टारगेट का पीछा कर सकता है, भले ही टारगेट भाग रहा हो. यानी यह पीछा करके अपने निशाने को ध्वस्त कर देता है.

चीन के DF-17 में कम ऊंचाई में उड़ने की क्षमता है. वैसे तो वह बैलिस्टिक मिसाइल है लेकिन वह हाइपरसोनिक हथियार की तरह भी काम कर सकता है, क्योंकि उसका अगला हिस्सा ग्लाइडर की तरह बनाया गया है. उसके अगले हिस्से में विंग्स है, जो उसे कम ऊंचाई पर ग्लाइड करने की ताकत प्रदान करते हैं. यह 1800-2000 किलोमीटर की रेंज में आने वाले टारगेट को बर्बाद कर सकता है.

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