कोलंबो : श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान में कुछ ही घंटों की देरी है, ऐसे में मुख्यधारा और सोशल मीडिया दोनों पर सबका ध्यान केंद्रित है क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान फर्जी खबरों का बोलबाला रहा.
चुनावों की पूर्व संध्या पर, ईटीवी भारत ने प्रमुख मीडिया विश्लेषक नालका गुनावर्दने से बात की, जिन्होंने फर्जी समाचारों के खतरे और चुनावों के दौरान मतदाताओं पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में विस्तार से बताया.
फर्जी खबरों पर चिंता
नकली समाचारों पर चिंता के बारे में बात करते हुए, गुनावर्दने ने बताया कि यह अभियान अतिरंजित करने के लिए, अपने उम्मीदवारों के बारे में झूठे दावे करने के लिए विशिष्ट था, लेकिन इस बार स्थिति बहुत खराब थी.
उन्होंने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान इस बार हमने देखा कि प्रत्येक अभियान में प्रतिद्वंद्वी को बदनाम करने की कोशिश हो रही थी. हर विरोधी उम्मीदवार, उसकी विचारधारा और उसके मूल्यों के बारे में नकारात्मक रूप से पेश कर रहे थे. समुदायों के बीच विभाजन को व्यापक बनाने के लिए विशेष रूप से जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना किया गया था. गुनावर्दने ने आगे चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह हो सकता है कि फर्जी सूचनाएं ईस्टर के हमलों के बाद आग में घी डालने का काम करें.
टीवी या सामाजिक मीडिया - कौन अधिक खतरनाक है?
श्रीलंका के समग्र मीडिया परिदृश्य के बारे में बताते हुए गुनावर्दने ने बताया कि प्रसारण टेलीविजन सूचना का सबसे बड़ा स्रोत था, जिसमें इंटरनेट भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था.
उन्होंने कहा कि सर्वश्रेष्ठ रेटिंग वाले शीर्ष पांच चैनल निजी चैनल हैं. उन्होंने दो मुख्य उम्मीदवारों में से एक का समर्थन करने के लिए चुना है.
उन्होंने आगे कहा कि चुनाव अभियान की अवधि के दौरान प्रमुख प्रसारकों द्वारा केवल उम्मीदवार ही नहीं, बल्कि पूरे समूहों को लुभाने, निखारने और नकारात्मक रूप से चित्रित करने का प्रयास किया गया.