वाशिंगटन : कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये दक्षिण एशियाई देशों के लिए भारतीय पेशकश चीन द्वारा इस जानलेवा बीमारी पर विमर्श को बदलने के प्रयासों का प्रभावी जवाब है. अमेरिका के एक थिंक-टैंक से जुड़े विशेषज्ञ की तरफ से यह राय व्यक्त की गई है.
हडसन इंस्टीट्यूट में इंडिया इनिशिएटिव की निदेशक अपर्णा पांडे ने यह टिप्पणी शुक्रवार को एक ऑनलाइन चर्चा के दौरान की. इस चर्चा का विषय चीन द्वारा कोविड-19 पर विमर्श को बदलने के प्रयास और दुनिया भर के देशों की इस महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संकट पर प्रतिक्रिया थी.
पांडे ने कहा, 'चीन ने दक्षिण एशिया में समर्थन हासिल करने के लिए चिकित्सा दलों, जांच किट भेजने और उपकरण देने तथा अस्पतालों के निर्माण की पेशकश जैसे लुभावने प्रस्ताव दे रहा है. हालांकि इसका नतीजा मिलाजुला रहा है.'
भारत द्वारा की गई क्षेत्रीय दक्षिण एशियाई प्रतिक्रिया की पेशकश बीजिंग द्वारा विमर्श को बदलने के प्रयासों का एक प्रभावी जवाब है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 मार्च को दक्षेस देशों द्वारा कोरोना वायरस से निपटने के लिये संयुक्त रणनीति तैयार करने का प्रस्ताव दिया था. पाकिस्तान को छोड़कर अन्य सभी सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव का फौरन समर्थन किया था.
दक्षेस देशों से दुनिया के सामने उदाहरण पेश करने का आह्वान करते हुए मोदी ने आठ सदस्यों वाले इस क्षेत्रीय समूह के नेताओं के सामने वीडियो कॉन्फ्रेंसिग से हुई चर्चा में अपनी बात रखी. इस दौरान उन्होंने कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये मजबूत रणनीति बनाने को कहा था.
पांडे के मुताबिक पाकिस्तान और श्रीलंका काफी हद तक चीन द्वारा दिखाई जाने वाली उदारता पर निर्भर हैं खास तौर पर बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) के तहत और बीजिंग द्वारा की जाने वाली पेशकशों को सहर्ष स्वीकर करते हैं और उन पर प्रतिक्रिया देते हैं.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के लिए चीन के साथ रणनीतिक संबंधों की प्राथमिकता उसके अपने लोगों के स्वास्थ्य समेत किसी भी दूसरी चीज के मुकाबले ज्यादा है.