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न्यूजीलैंड नरसंहार : एक साल बाद भी खौफ के साए में जी रहे मुसलमान

न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में मस्जिदों पर हुए हमलों को एक साल हो चुका है. हमले के एक वर्ष बाद भी वहां रहने वाला मुस्लिम समुदाय उस घटना से उबर नहीं पाया है और खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है. पढ़ें पूरी खबर...

नूर मस्जिद
नूर मस्जिद

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Published : Mar 14, 2020, 9:17 PM IST

क्राइस्टचर्च : न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में मस्जिदों पर हुए हमलों के एक साल बाद भी मुस्लिम समुदाय के लोग सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहे हैं.

स्थानीय निवासी आलिया डेन्जीसेन का कहना है कि वह हर रोज सूरज निकलने से पहले उठकर खबरें सुनती हैं, ताकि वह अपनी स्कूल जाने वाली बेटियों को उस उत्पीड़न के प्रति सतर्क कर सकें, जिसका उन्हें मुसलमानों होने के कारण सामना करना पड़ सकता है.

मुस्लिम समुदाय की नेता आलिया 12 महीने पहले क्राइस्टचर्च में मस्जिदों पर हुए हमलों को याद करते हुए कहती हैं, 'हम अब सुरक्षित महसूस नहीं करते.'

गौरतलब है कि श्वेतों को सर्वश्रेष्ठ मानने वाले एक व्यक्ति ने पिछले साल 15 मार्च को जुमे की नमाज के दौरान अल नूर मस्जिद और लिनवुड इस्लामिक सेंटर में 51 मुसलमानों की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

आलिया कहती हैं कि डर तो हमलों से पहले ही महसूस होने लगा था, लेकिन हमलों के बाद इसने जड़ें जमा लीं.

उन्होंने कहा, 'ऐसा लगा कि न्यूजीलैंड की पूरी आबादी हमारे पीछे पड़ी है.'

आलिया ने कहा कि मुसलमानों को अपशब्द कहे जाने और उन्हें मिल रही धमकियों के कारण अब वेसै ही हालात दोबारा पैदा होने लगे हैं.

नरसंहार के बाद हालात को संभालने के लिए प्रशंसा पाने वाली प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने शुक्रवार को स्वीकार किया कि उनके देश को श्वेत वर्चस्ववादियों से निपटने के लिए अभी काफी कुछ करना चाहिए.

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इस्लामिक वीमेन काउंसिल ऑफ न्यूजीलैंड की सह-संस्थापक अंजुम रहमान का कहना है कि अब भी लोगों के दिलों में नफरत छिपी हुई है... यह न सिर्फ हमारे समुदाय के लोगों के प्रति है, बल्कि सोशल मीडिया पर समलैंगिक समुदाय के लोगों के प्रति भी यह नफरत देखी जा सकती है.

उन्होंने कहा, 'मैं यह नहीं कहूंगी कि सिर्फ हमारे साथ ही ऐसा है, लेकिन हम इसे महसूस कर रहे हैं. हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वह सोचते हैं कि हम आसान शिकार हैं और पलट कर वार नहीं कर सकते.'

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