काबुल :तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा लिया है.देश में अराजकता और बिगड़ते हालात के बीच अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने रविवार को सत्ता छोड़ने के साथ ही देश भी छोड़ दिया है. सूत्रों के अनुसार अफगानिस्तान सरकार द्वारा इस्लामी आतंकवादियों के सामने आत्मसमर्पण करने के बाद अली अहमद जलाली को नई अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में नियुक्त किए जाने की संभावना है.
जलाली जनवरी 2003 से सितंबर 2005 तक अफगानिस्तान के पूर्व आंतरिक मंत्री रहे थे. बता दें कि अफगान सुरक्षा बलों के खिलाफ एक महीने के लंबे हमले के बाद, इस्लामी संगठन तालिबान से जुड़े आतंकवादी आखिरकार रविवार (15 अगस्त) को काबुल के द्वार पर पहुंच गए.
तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद का कहना है कि लूट और अराजकता को रोकने के लिए उनकी सेना काबुल, अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में प्रवेश करेगी और उन चौकियों पर कब्जा कर लेगी, जिन्हें सुरक्षा बलों ने खाली करा लिया है. उन्होंने लोगों से कहा है कि वे शहर में उनके प्रवेश करने से घबराएं नहीं.
हालांकि तालिबान का कब्जा होने के साथ ही लोगों ने देश छोड़ना शुरू कर दिया है.
वहीं, आंतरिक और विदेश मामलों के कार्यवाहक मंत्रियों अब्दुल सत्तार मिर्जाकवाल ने कहा कि काबुल के लोगों को सुरक्षित किया जाएगा, क्योंकि वे अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ शहर की रक्षा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि काबुल पर हमला नहीं किया जाएगा. मिर्जाकवाल ने काबुल निवासियों को आश्वासन दिया कि सुरक्षा बल शहर की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे.
इससे पहले अफगानिस्तान के एक अधिकारी ने बताया कि तालिबान के वार्ताकार सत्ता के 'हस्तांतरण' की तैयारी के लिए राष्ट्रपति के आवास जा रहे हैं.
अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर रविवार को बताया कि इस मुलाकात का उद्देश्य तालिबान को शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता सौंपना है. तालिबान ने कहा कि उनकी ताकत के बल पर सत्ता लेने की योजना नहीं है.
तालिबान के हमले के बीच राय-मश्विरा जारी : गनी
इससे पहले अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने शनिवार को कहा है कि वह 20 वर्षों की 'उपलब्धियों' को बेकार नहीं जाने देंगे और कहा कि तालिबान के हमले के बीच 'राय-मश्विरा' जारी है. उन्होंने शनिवार को टेलीविजन के माध्यम से राष्ट्र को संबोधित किया. हाल के दिनों में तालिबान द्वारा प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा जमाए जाने के बाद से यह उनकी पहली सार्वजनिक टिप्पणी है.
उन्होंने कहा कि हमने सरकार के अनुभवी नेताओं, समुदाय के विभिन्न स्तरों के प्रतिनिधियों और हमारे अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ विचार-विमर्श शुरू कर दिया है. उन्होंने विस्तार से जानकारी नहीं दी, लेकिन कहा कि जल्द ही आपको इसके परिणाम के बारे में बताया जाएगा.
चरमपंथियों ने अफगानिस्तान के ज्यादातर उत्तरी, पश्चिमी और दक्षिणी हिस्से पर कब्जा कर लिया है, और अब वे राजधानी काबुल से सिर्फ 11 किलोमीटर दक्षिण में सरकारी बलों से जंग कर रहे हैं.
अमेरिका 31 अगस्त तक देश से अपनी अंतिम सैन्य टुकड़ी को वापस बुलाने वाला है, जिससे पश्चिमी देशों द्वारा समर्थित गनी की सरकार के अस्तित्व पर सवाल उठ रहे हैं. अमेरिका ने करीब 20 साल पहले 9/11 हमलों के बाद अफगानिस्तान में प्रवेश किया था.
अफगान अधिकारियों ने कहा कि तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी के दक्षिण में एक प्रांत पर कब्जा कर लिया और शक्तिशाली पूर्व छत्रपों द्वारा सुरक्षा किए जा रहे उत्तर के एक प्रमुख शहर पर शनिवार तड़के चारों तरफ से हमला किया.
अमेरिका द्वारा अपने अंतिम सैनिकों को वापस बुलाने के लिए तैयार होने से तीन सप्ताह से भी कम समय पहले चरमपंथियों ने एक ख़तरनाक हमले में उत्तर, पश्चिम और दक्षिण अफगानिस्तान के अधिकतर हिस्से पर कब्जा कर लिया है जिससे चरमपंथियों के पूर्ण कब्जे या एक अन्य अफगान गृहयुद्ध की आशंका बढ़ गई है.
कौन है तालिबान
तालिबान का अफगानिस्तान में उदय 90 के दशक में हुआ. सोवियत सैनिकों के लौटने के बाद वहां अराजकता का माहौल पैदा हुआ, जिसका फायदा तालिबान ने उठाया. उसने दक्षिण-पश्चिम अफगानिस्तान से तालिबान ने जल्द ही अपना प्रभाव बढ़ाया. सितंबर 1995 में तालिबान ने ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया. 1996 में अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को सत्ता से हटाकर काबुल पर कब्जा कर लिया था.
इसके बाद तालिबान ने इस्लामिक कानून को सख्ती लागू किया. मसलन मर्दों का दाढ़ी बढाना और महिलाओं का बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया. सिनेमा, संगीत और लड़कियों की पढ़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया. बामियान में तालिबान ने यूनेस्को संरक्षित बुद्ध की प्रतिमा तोड़ दी.
2001 में जब 9/11 के हमले हुए तो तालिबान अमेरिका के निशाने पर आया. अलकायदा के ओसामा बिन लादेन को पनाह देने के आरोप में अमेरिका ने तालिबान पर हमले किए. करीब 20 साल तक अमेरिका तालिबान के साथ लड़ता रहा. 1 मई से वहां से अमेरिकी सैनिकों ने वापसी शुरू कर दी है. 11 सितंबर 2021 तक अमेरिकी सेना पूरी तरह अफगानिस्तान से हट जाएगी. अंदेशा है कि इसके बाद आईएसआई और तालिबान भारत के प्रोजेक्ट को और निशाना बनाएगी.