नई दिल्ली : भारत और जापान ने 5 जी प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और कई अन्य अहम क्षेत्रों में सहयोग के लिये एक महत्वाकांक्षी समझौते को अंतिम रूप दिया है. साथ ही, दोनों रणनीतिक साझेदारों (भारत और जापान) ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में अपने संबंधों को और व्यापक बनाने का संकल्प लिया.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जापान के विदेश मंत्री तोशिमित्सु मोतेगी के साथ द्विपक्षीय बैठक की. इसके बाद यह घोषणा की गई कि जापान हिंद प्रशांत महासागर की पहल (आईपीओआई) के संपर्क स्तंभ में प्रमुख साझेदार बनने के लिये सहमत हुआ.
आईपीओआई, भारत समर्थित एक ढांचा है, जिसका लक्ष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक सुरक्षित समुद्री अधिकार क्षेत्र बनाने की सार्थक कोशिश करना है, जहां चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता से विश्व की चिंताएं बढ़ रही हैं.
जयशंकर ने एक ट्वीट में कहा कि विकास परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत-जापान सहयोग को तीसरे देशों में और अधिक विस्तारित करने का विषय भी 13वें भारत-जापान विदेश मंत्रियों की रणनीतिक वार्ता में उठा.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि डिजिटल प्रौद्योगिकी की बढ़ती भूमिका को मान्यता देते हुए दोनों मंत्रियों ने मजबूत साइबर प्रणाली की जरूरत का जिक्र किया तथा इस संदर्भ में साइबर सुरक्षा समझौते के मसौदा को अंतिम रूप देने का स्वागत किया.
मंत्रालय ने कहा कि यह समझौता महत्वपूर्ण सूचना ढांचा में क्षमता निर्माण, अनुसंधान और विकास, सुरक्षा, 5 जी, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, एआई सहित अन्य में सहयोग को बढ़ावा देता है.
उल्लेखनीय है कि, कई देशों ने अपने यहां चीनी टेलीकम्युनिकेशंस कंपनी हुवावेई द्वारा 5 जी सेवाएं शुरू करने के प्रति अनिच्छा प्रकट की है. ऐसे में भारत और जापान के बीच 5 जी प्रौद्योगिकी पर यह सहयोग काफी मायने रखता है.
अमेरिका सुरक्षा कारणों को लेकर पहले ही इस चीनी कंपनी को प्रतिबंधित कर चुका है. वह अन्य देशों पर भी इस चीनी कंपनी को प्रतिबंधित करने का दबाव बना रहा है.
गौरतलब है कि, 5 जी अगली पीढ़ी की सेल्युलर प्रोद्योगिकी है, जिसमें डेटा डाउनलोड की गति मौजूदा 4 जी एलटीई नेटवर्क से 10 से लेकर 100 गुना तक तेज होगी.
मंत्रालय ने बताया कि जयशंकर और उनके जापानी समकक्ष ने अपनी वार्ता में समुद्री सुरक्षा, व्यापार एवं निवेश, विनिर्माण, संपर्क एवं बुनियादी ढांचा तथा संयुक्त राष्ट्र में सुधारों सहित कई मुद्दों पर चर्चा की.
मंत्रालय ने बताया कि उन्होंने स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद प्रशांत क्षेत्र की हिमायत की.