नई दिल्ली :लद्दाख में भारत-चीन टकराव की स्थिति बनी हुई है. इसी बीच चीन ने मैकमोहन लाइन को खारिज करते हुए अरुणाचल प्रदेश पर एक बार फिर दावा जता दिया है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या लद्दाख के बहाने चीन का असली निशाना अरुणाचल प्रदेश है. अरुणाचल प्रदेश से मात्र 16 किलोमीटर दूर चीन का निंगची (लिंझी भी कहा जाता है) शहर है. यहां चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का सैन्य स्टेशन भी है. अरुणाचल में टुटिंग अंतिम भारतीय सीमा चौकी है. इससे मात्र 16 किलोमीटर दूर निंगची और ब्याई में चीन की 52वीं माउंटेन मोटराइज्ड इन्फैंट्री ब्रिगेड और 53वीं माउंटेन मोटराइज्ड इन्फैंट्री ब्रिगेड तैनात हैं. भारत-चीन के बीच अप्रैल-मई से पूर्वी लद्दाख में बढ़ते सीमा विवाद के बाद रिपोर्ट है कि अरुणाचल के करीब चीन बहुत बड़ी लामबंदी में लगा हुआ है. पीएलए की तैनाती में 77 समूह सेना और सीमा रक्षा रेजीमेंटों की संयुक्त सेना ब्रिगेड शामिल हैं.
मैकमोहन लाइन को नहीं मानता चीन
अभी चीन भले ही पूर्वी लद्दाख के क्षेत्र पर केंद्रित है, लेकिन वह भारत की पूरी सीमा पर गतिविधि बढ़ा सकता है. सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में भारत का सैन्य बुनियादी ढांचा चीन के मुकाबले कमजोर है. एलएसी (पूर्वी लद्दाख वाला क्षेत्र) के विपरीत मैकमोहन लाइन (अरुणाचल प्रदेश वाला क्षेत्र) खुला और बिना सुरक्षा वाला इलाका है. भारत की सीमा तक पहुंच भी अच्छी नहीं है. हाल ही में चीनी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने वर्ष 1959 के आधार पर सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत के सैन्य ढांचे के निर्माण पर आपत्ति जताई थी और अरुणाचल प्रदेश पर दावा जताया था.
कूटनीतिक और सैन्य वार्ता को एक झटके के साथ नकार दिया
वर्ष 1959 में तत्कालीन चीनी पीएम चाउ एन-लाई ने अपने भारतीय समकक्ष जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखकर सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश पर दावा किया था, इसे नेहरू ने खारिज कर दिया था. एक बार फिर चीन के इस दावे ने 1959 के बाद की सभी बातचीत और संधियों में चल रही कूटनीतिक और सैन्य वार्ता को एक झटके के साथ नकार दिया है.