लाहौर : पाकिस्तान की एक शीर्ष अदालत ने सात साल पहले एक ईसाई दंपती को निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा रद्द कर दी और उन्हें 'सबूत की कमी' का हवाला देते हुए ईशनिंदा (blasphemy) के आरोपों से बरी कर दिया.
शफकत इमैनुएल मसीह (Shafqat Emmanuel Masiha) और उसकी पत्नी शगुफ्ता कौसर (Shagufta Kausar) को अब रिहा किये जाने की उम्मीद है जो फांसी की सजा के इंतजार में सात साल से जेल में थे.
टोबा टेक सिंह जिले में गोजरा के सेंट कैथेड्रल स्कूल (St. Cathedral School) के चौकीदार मसीह और कौसर को जुलाई 2013 में शिकायतकर्ताओं - दुकानदार मलिक मोहम्मद हुसैन (Mohd. Hussain) और गोजरा तहसील बार के पूर्व अध्यक्ष अनवर मंसूर गोरया (Anwar Mansoor Goraya) को ईशनिंदा संदेश भेजने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि दंपती ने संदेश में ईशनिंदा की थी.
हालांकि, शगुफ्ता अनपढ़ होने के कारण पढ़-लिख भी नहीं पाती. प्राथमिकी में उसका नाम शुरू में नहीं था.