हैदराबादः हिरोशिमा - शांति के बारे में सोचने का स्थान, हिरोशिमा - शांति के लिए प्रतिबद्ध जगह, हिरोशिमा - भविष्य के बारे में सोचने के लिए एक जगह. इस जगह के बारे में यदि आंखें मूंदकर सोचा जाए तो एक क्षण में हम युद्द की विभीषका को महसूस कर सकते हैं. जैसा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने महसूस किया. उन्होंने कहा....
- हम इस शहर के बीचो-बीच खड़े हैं और उस समय बम गिरने से हुई त्रासदी की कल्पना करते हैं. हमें महसूस होता मासूम और भ्रमित हुए बच्चों को डर. हमें सुनाई देती हैं सिसकियां. हमें याद आते हैं वो मासूम जो इस तबाही में मारे गए. हमें इस तबाही से पहले और बाद में हुए युद्धों की भयावहता के बारे में विचार करना चाहिए. – बराक ओबामा
परमाणु युद्द की विभीषिका को समझने के बाद हम सभी एक ऐसे विश्व की कल्पना करना चाहेंगे जो परमाणु हथियारों से मुक्त हो और आने वाली पीढ़ियां डर के साए से दूर हंसता-खेलता स्वस्थ जीवन बिता सकें. क्या ऐसा संभव है. आइये विचार करते हैं.
कोविड महामारी के दौरान - हिरोशिमा और नागासाकी से सबक
जापानी रेड क्रॉस अस्पतालों ने आज भी हिरोशिमा और नागासाकी के 1945 बम विस्फोटों से विकिरण के कारण होने वाले कैंसर और पुरानी बीमारी के कई हजारों पीड़ितों का इलाज जारी रखा है.
परमाणु विस्फोट से पैदा हुई स्वास्थ्य समस्याएं फैल गई हैं. यह महामारी पर नियंत्रण पाने जैसा नहीं है. विकिरण कोई सीमा नहीं जानता है. परमाणु परीक्षणों से उत्पन्न रेडियोधर्मी समस्थानिक पूरे विश्व में वायुमंडल, महासागर और हमारे सभी निकायों में फैल गए हैं.
जलवायु अध्ययनों ने प्रदर्शित किया है कि जहां परमाणु युद्ध हुए उसके सीमित क्षेत्र में करीब सौ परमाणु हथियार (वैश्विक परमाणु शस्त्रों के एक प्रतिशत से भी कम) गिराए जाने जैसा प्रभाव वहां की जलवायु और खाद्य आपूर्ति पर होगा.
एक उदाहरण के तौर पर यदि भारत और पाकिस्तान के इलाकों में 100 हिरोशिमा के आकार के परमाणु हथियारों का उपयोग होता है तो सूरज की रोशनी और बारिश में कमी हो सकती है, जिससे दुनिया के मुख्य अनाज का उत्पादन बाधित किया जा सकता है, जो दुनिया भर में खाद्य श्रृंखला और वैश्विक अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर सकता है. एक ट्रिगर वैश्विक अकाल पड़ सकता है जिसके कारण लाखों लोगों का जीवन समाप्त हो जाने की संभावना है.
महामारी और परमाणु युद्ध के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है. हमारे पास पहले से ही परमाणु हथियार पर रोक लगाने का उपकरण है. इसे परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि कहा जाता है और इसे 2017 में संयुक्त राष्ट्र में 122 देशों द्वारा अपनाया गया था.
आज 81 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं और 36 ने इसकी पुष्टि की है. वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन ने 2018 में TPNW का स्वागत किया और सभी राज्यों से, "चिकित्सकों के मिशन के रूप में" इसे तुरंत शामिल होने और इसे लागू करने के लिए कहा. वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ पब्लिक हेल्थ एसोसिएशंस, इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स और इंटरनेशनल रेड क्रॉस एंड रेड क्रीसेंट मूवमेंट ने भी यही किया.
स्वास्थ्य पेशेवरों का स्पष्ट कहना है कि परमाणु युद्ध के बाद प्राप्त हुई स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज हमारे पास कोई रास्ता नहीं है. हमारा एकमात्र समाधान युद्ध को रोकने के लिए एक वैश्विक समुदाय के रूप में एक साथ काम करना है. किसी भी देश के पास कोई भी परमाणु हथियार होने पर दूसरे देश भी अपने पास परमाणु हथियार रखने के लिए प्रेरित करते हैं. परमाणु हथियार रखने की होड़ समस्त मानव जाति को खतरे में डालती है.
डॉक्टर और नर्स वैश्विक स्वास्थ्य संकट का जवाब दे रहे हैं लेकिन जिम्मेदार देशों को सामूहिक वैश्विक कार्रवाई करते हुए परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि में शामिल होना चाहिए.
क्या हिरोशिमा और नागासाकी वाकई परमाणु हमले के बाद उबर सके
बम विस्फोट होने के लगभग सत्तर साल बाद हमले के दौरान जीवित रहने वाली अधिकांश पीढ़ी का निधन हो गया है.
अब बचे हुए बच्चों की ओर अधिक ध्यान दिया गया है. उन व्यक्तियों के बारे में जो जन्म से पहले (गर्भाशय में) विकिरण के संपर्क में थे, जैसे कि 1994 में ई नकाशिमा के नेतृत्व में एक अध्ययन में पता चला है कि परमाणु हमलों की वजह से बच्चों के सिर का आकार छोटा हो गया और मानसिक विकलांगता के साथ-साथ शारीरिक विकास में भी कमजोरी आई.
हमले के समय बचे हुए बच्चों की तुलना में गर्भाशय में रहे व्यक्तियों में भी कैंसर के लक्षण मिले.
हिरोशिमा और नागासाकी पर हमलों के बाद तात्कालिक चिंताओं में से एक यह था कि बम विस्फोट के बाद जीवित बचे लोगों के बच्चों पर विकिरण का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा.