नई दिल्ली : आज जब पूरा विश्व पिछले साल चीन के वुहान शहर से उपजी कोविड-19 महामारी से जूझ रहा है, ऐसे में बीजिंग विवादित दक्षिण चीन सागर में अपने आधिपत्य को स्थापित करने के दृष्टिकोण के कारण अंतरराष्ट्रीय धैर्य का परीक्षण कर रहा है. चीन दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में मौजूद कई देशों के साथ क्षेत्रीय विवादों में शामिल है.
यह सब उस समय हो रहा है जब भारत और चीन, पूर्वी लद्दाख में तनावपूर्ण सीमा संघर्ष में उलझे हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप 45 वर्षों में पहली बार वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर घातक हमले हुए जिसकी वजह से वैश्विक चिंताएं ज्यादा बढ़ गई हैं.
पिछले हफ्ते, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की नौसेना ने दक्षिण चीन सागर में उभयचर हमले से जुड़ी गतिविधियों को लेकर नौसैनिक अभ्यास शुरू किया था.
पारासेल द्वीप समूह के पास चीन की नवीनतम गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए, अमेरिका ने दक्षिण-चीन सागर में परमाणु ऊर्जा संचालित तीन विमान वाहक तैनात कर दिए हैं.
भारत से दक्षिण-चीन सागर तक और उससे आगे के क्षेत्र में चीन के नवीनतम विस्तारवादी इरादों पर प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने आठ जुलाई को कहा, 'हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं से लेकर वियतनाम के विशिष्ट क्षेत्र के पानी तक, सेनकाकू द्वीपों (पूर्वी चीन सागर में जापान की सीमा तक) और उससे आगे, बीजिंग द्वारा क्षेत्रीय विवादों को उकसाने का एक सा तरीका नजर आ रहा है. दुनिया को न तो इस जबरदस्ती को करने की इजाजत देनी चाहिए और न ही इसे जारी रखने की अनुमति देनी चाहिए.'
इसके बाद बुधवार को चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने बीजिंग में स्थित विश्लेषकों का हवाला देते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा, 'पांच अमेरिकी सैन्य टोही विमान लगातार तीन दिनों से दक्षिण चीन के गुआंगडोंग प्रांत के करीब उड़ान भर रहे हैं.'
ग्लोबल टाइम्स ने चेतावनी देते हुए लिखा, 'अमेरिकी सेना के उकसावों के जवाब में, पीएलए विभिन्न तरीकों को आजमाते हुए जवाबी कार्रवाई कर सकता है - अमेरिकी विमानों से संपर्क करने के लिए लड़ाकू जेट भेजना और उन्हें चीन के हवाई क्षेत्र से बाहर निकालना कई विकल्पों में से एक है. पीएलए अपने स्वयं के युद्धाभ्यास द्वरा भी अमेरिकी सेना की तरह जवाब दे सकता है.'
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन थिंक टैंक में मैरीटाइम पुलिस इनिशिएटिव के प्रमुख अभिजीत सिंह के अनुसार, दक्षिण चीन सागर में अपने युद्धपोतों को भेज अमेरिका ने बीजिंग के लिए एक संदेश दिया है कि वह इस क्षेत्र में आक्रामकता का सहारा नहीं ले सकता है.
सिंह ने ईटीवी भारत को बताया, 'हाल के दिनों में, इस क्षेत्र में चीन के समुद्री मिलिशिया (गैर-नौसैन्य कर्मियों) की गतिविधियां बढ़ी हैं. वे सभी अधिक स्पष्ट रूप से सामने आईं हैं.'
उन्होंने कहा, यही कारण है कि आसियान देशों ने अमेरिका और जापान जैसे देशों से मदद की गुहार लगायी है.
चीनी और दक्षिण पूर्व एशियाई अध्ययन केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चीनी और चीन अध्ययन के प्रोफेसर बीआर दीपक के अनुसार, चीन का हालिया विस्तारवादी व्यवहार अचानक सामने नहीं आया है, बल्कि इस तीर्वता के व्यवहार की कई दिनों से अपेक्षा थी.
उन्होंने कहा, '1979 के बाद से, चीन का ध्यान सुधारों और आर्थिक विकास पर था. 2012 के बाद से जब शी जिनपिंग राष्ट्रपति बने, तो यह पर्याप्त रूप से आश्वस्त हो गया और अपनी अधिपत्य स्थापित करने की नीतियों को आगे बढ़ाने में लग गया.'
उन्होंने भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के क्षेत्रीय दावों और दक्षिण चीन सागर द्वीपों पर उसके बढ़ते वर्चस्व के बीच तुलना कर एक सा समान्तर पाया.
प्रोफेसर ने कहा, 'वे पहले क्षेत्र का दावा करते हैं, फिर उसे पुनः प्राप्त करते हैं, फिर उसका सैन्यीकरण करते हैं और इसके बाद यथास्थिति में बदल देते हैं. उसके बाद, अपने अंतरराष्ट्रीय प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए, वे अपने दावों के बारे में वैश्विक मंचों पर सबको आश्वस्त करने की कोशिश करते हैं.
लेकिन बीजिंग में पारा इस बात से बढ़ जायेगा कि भारत, लद्दाख में सीमा पर हुए टकराव की तनावपूर्ण स्थिति के बावजूद दक्षिण चीन सागर में नौसेना की गतिविधियों में बढ़चढ़ कर हिसा ले रहा है.
पिछले हफ्ते एक ऑनलाइन मंच पर इसकी घोषणा करते हुए, फिलीपींस के रक्षा मंत्री डेल्फिन लोरेंजाना ने कहा, 'हम अन्य देशों को दक्षिण चीन सागर से गुजरने या वहां काम करने से नहीं रोकते हैं. अंग्रेज दक्षिण-चीन सागर से होकर गुजरते हैं. फ्रांसीसी, अन्य सभी देश भी. हम उन्हें आने के लिए आमंत्रित नहीं करते हैं.'
यह कहते हुए कि भारत का भी दक्षिण-चीन सागर में उपस्थित होने का स्वागत है, लोरेंजाना ने पीएलए द्वारा की गई नौसेना के नवीनतम नौसैनिक अभ्यासों पर भी चिंता व्यक्त की.
यह बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटर्टे के बीच पिछले महीने टेलीफोन पर हुई चर्चा के बाद आया है, जिस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया गया था कि भारत फिलीपींस को भारत-प्रशांत क्षेत्र में, जो जापान के पूर्वी तट से अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैला है, एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में देखता है.
भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ, एक ऐसे चतुष्कोण का हिस्सा है, जो इस क्षेत्र में चीन की युद्धकारी नीतियों के मुकाबले भारत-प्रशांत में शांति और स्थिरता के लिए काम करना चाहता है.
सिंह के अनुसार, हालांकि भारत के दक्षिण चीन सागर में प्रत्यक्ष तौर पर दांव नहीं हैं, नई दिल्ली इस क्षेत्र में चीन के 'आक्रामक' व्यवहार को लेकर चिंतित है.
उन्होंने कहा, 'अगर चीन हिमालयी क्षेत्र में आक्रामक रुख जारी रखता है, तो भारत को (दक्षिण चीन सागर में) और अधिक मजबूत रुख अपनाने पर मजबूर होना पड़ेगा.'