काबुल : अपने देश के लिए जान भी कुर्बान कर देने की भावना रखने वाले अफगान सेना के जवान अब्दुल्लाह मोहम्मदी ने तालिबान के खिलाफ भीषण लड़ाई में अपने दोनों पैर और एक हाथ गंवा दिए, लेकिन उनके इस बलिदान का सम्मान नहीं किए जाने के कारण वह अब अफगान सरकार से खफा हैं.
अफगानिस्तान की 'नेशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी फोर्सेस' के कंधों पर तालिबान से निपटने की जिम्मेदारी है, लेकिन यह बल अपने क्षेत्र को बरकरार रखने के लिए संघर्ष कर रहा है. सेना में भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी के कारण मोहम्मदी जैसे कई जवानों का मनोबल गिर गया है.
दोनों पैर और एक हाथ गंवा चुके मोहम्मदी को 11 माह से नहीं मिल पेंशन
तालिबान के खिलाफ संघर्ष में छह साल पहले अपने दोनों पैर और एक हाथ गंवा चुके मोहम्मदी ने कहा, 'मैंने अपने देश के लिए जो कुर्बानी दी, मुझे उस पर गर्व है.' लेकिन वह सरकार से खफा हैं, क्योंकि पिछले 11 महीने से उन्हें पेंशन नहीं मिली है और वह अपने परिवार एवं मित्रों से उधार मांगने पर मजबूर हैं. उन्होंने कहा, 'मैं नाराज हूं. मुझे लगता है कि मेरी गरिमा का अपमान किया गया है. मेरा जीवन संघर्ष बन गया है.' सैन्य विशेषज्ञों ने सचेत किया है कि बल के जवान पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं है और उनके पास पर्याप्त हथियार नहीं है.
अमेरिकी सैन्य वापसी से तालिबान को मजबूत होना आसान होगा
अफगानिस्तान में पिछले करीब 20 साल से तैनात अमेरिका के शेष 2,300 से 3,500 जवान और नाटो बलों के करीब सात हजार जवान 11 सितंबर तक देश से चले जाएंगे. 'अमेरिकी फाउंडेशन फॉर द डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज' में वरिष्ठ फेलो और सैन्य गतिविधियों पर नजर रखने वाली पत्रिका 'लॉन्ग वार' के संपादक बिल रोजियो ने कहा कि अमेरिकी सैन्य समर्थन की गैर मौजूदगी में तालिबान के लिए फिर से मजबूत होना आसान हो जाएगा.अफगानिस्तान में सरकार की मुख्य कस्बों एवं शहरों में ही पकड़ है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में तालिबान का प्रभुत्व है. पिछले दो सप्ताह में तालिबान ने काबुल के दक्षिण पश्चिम में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण एक अहम कस्बे समेत उन चार जिला केंद्रों पर कब्जा कर लिया है, जो अफगानिस्तान के उत्तर और दक्षिण को जोड़ने वाले मुख्य राजमार्ग पर स्थित हैं.