बेरूत : बेरूत के 160 साल पुराने महल ने दो-दो विश्वयुद्ध झेले, उस्मानिया साम्राज्य का सूरज अस्त होते देखा, फ्रांस का कब्जा और फिर लेबनान की स्वतंत्रता का गवाह बना. आजादी के बाद 1975-1990 के खूनी गृहयुद्ध खत्म होने पर 20 साल की मशक्कत से इसकी पुरानी शान बहाल की गई, लेकिन बेरूत में हुए भयानक धमाके में यह तबाह हो गया.
बेरूत में सबसे ज्यादा मंजिलों वाली इमारतों में शामिल इस ऐतिहासिक सुर्सोक महल के मालिक रोडरिक सुर्सोक का कहना है, ' एक पल में सब कुछ फिर से तबाह हो गया.'
सुर्सोक महल की ढह चुकी छतों, धूल से भरे कमरों, टूटी फर्श और दरारों से पटी पड़ी दीवारों पर लटक रहे पूर्वजों के पेंटिंग के बीच सावधानी पूर्वक चलते हैं. वह बताते हैं कि भवन की ऊपरी मंजिल की छत पूरी तरह से टूट चुकी है, कुछ दीवारें भी गिरी हैं.
उन्होंने कहा कि इस महल को 15 साल के गृह युद्ध में जितना नुकसान पहुंचा था, उससे 10 गुणा ज्यादा नुकसान बेरूत में पिछले सप्ताह हुए भयानक विस्फोट से हुआ.
इस महल का निर्माण 1860 में हुआ था और यह उस्मानिया काल के फर्नीचर, संग मरमर और इटली के बेहतरीन पेंटिंग से सजा था. दरअसल इस भवन से जुड़ा परिवार ग्रीक ऑर्थोडॉक्स परिवार से ताल्लुक रखता है. यह परिवार मूल रूप से बैजंतिया साम्राज्य की राजधानी कुस्तुनतुनिया यानी इस्तंबुल का है जो 1714 में बेरूत में बस गया था.
सुर्सोक ने कहा कि यह महल इतना ज्यादा क्षतिग्रस्त हो चुका है कि इसके पुनर्निर्माण के कार्य में बहुत खर्च आएगा और निर्माण में बहुत समय लगेगा.
सुर्सोक ने कहा कि फिलहाल इस घर की मरम्मत का कोई औचित्य नहीं है और तब तक तो बिल्कुल नहीं है, जब तक देश अपनी राजनीतिक समस्याओं का समाधान नहीं करता है.