मेलबर्न: अमेरिका और चीन के बीच शिखर वार्ता की कूटनीति चलती रहती है लेकिन जो बाइडन और शी चिनफिंग की ताजा वार्ता के मुकाबले दोनों नेताओं के बीच और अधिक परिणामी बैठक नहीं होगी. अगर कोई यह देखना चाहता है कि अमेरिका और चीन के बीच संबंधों में कितना बदलाव आया है तो उसे 1972 में रिचर्ड निक्सन और उस वक्त बीमार रहे माओ त्से तुंग के बीच चीनी क्रांति के बाद हुए पहले शिखर सम्मेलन को देखना होगा.
किसी ने यह अनुमान नहीं लगाया होगा कि एक पीढ़ी में ही दोनों देशों के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा होगी. न ही उन्होंने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए आर्थिक रूप से चीन के इतना आगे बढ़ने का अंदाजा लगाया होगा. अमेरिका-चीन शिखर वार्ताओं की रूपरेखा 1972 में निक्सन और चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ एनलाई के बीच शंघाई घोषणा पर हस्ताक्षर के साथ तय की गयी थी. इसमें ‘एक-चीन’ नीति स्वीकार की गई और ताइवान के मुद्दे को किनारे कर दिया गया.
शी चिनफिंग के साथ ऑनलाइन बैठक में बाइडन ने अमेरिका की तरफ से 'एक चीन' नीति स्वीकार करने की बात दोहराई लेकिन साथ ही वाशिंगटन के इस रुख को भी दोहराया कि ताइवान जलडमरूमध्य में यथास्थिति बलपूर्वक नहीं बदली जाए. अभी अमेरिका-चीन संबंधों को नए सिरे से तय करने के बारे में बात करना बहुत जल्दबाजी होगी लेकिन एक तर्कसंगत निष्कर्ष यह है कि ट्रंप के अस्तव्यस्त प्रशासन के बाद बाइडन और शी कम से कम संबंधों को पटरी पर ला पाए हैं.
साढ़े तीन घंटे से अधिक समय तक चली बैठक पर दोनों पक्षों की टिप्पणियों से यह संकेत मिलता है कि काफी मुद्दों पर चर्चा की गयी. दोनों देशों ने संवाद जारी रखने की जरूरत पर जोर दिया. व्हाइट हाउस की एक विज्ञप्ति के अनुसार,'राष्ट्रपति बाइडन ने इस पर जोर दिया कि अमेरिका अपने हितों और मूल्यों के लिए खड़ा रहेगा. साथ ही अपने सहयोगियों एवं साझेदारों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेगा कि 21वीं सदी के लिए आगे बढ़ने के नियम एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर आधारित हों जो स्वतंत्र, मुक्त और निष्पक्ष हो.'
ऑस्ट्रेलिया की नजर से कैनबरा और बीजिंग के बीच खराब संबंधों को देखते हुए 'सहयोगियों और साझेदारों' के लिए समर्थन की यह अभिव्यक्ति स्वागत योग्य होगी. बाइडन ने संभावित टकरावों से बचने के लिए वृहद सहयोग का भी आह्वान किया.'राष्ट्रपति बाइडन ने रणनीतिक जोखिमों के प्रबंधन के महत्व पर भी जोर दिया. उन्होंने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया कि प्रतिस्पर्धा संघर्ष में न बदले.' चीन ने विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग के जरिए बयान दिया, जिसमें कहा गया है कि बैठक 'व्यापक, गहन, स्पष्ट, सार्थक, ठोस और रचनात्मक' रही.