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संयुक्त राष्ट्र ने म्यामां के रोहिंग्या समुदायों के मानवाधिकार उल्लंघन की निंदा की - un slams myanmar

संयुक्त राष्ट्र महासभा में रोहिंग्या मुसलमानों के मानवाधिकार उल्लंघनों की कड़ी निंदा की गई है. राष्ट्र का कहना है कि इनमें से लगभग सभी को 1982 से नागरिकता नहीं दी गई है. रोहिंग्याओं के पास कहने के लिए अपना कोई देश नहीं है, साथ ही उन्हें आवाजाही की स्वतंत्रता और अन्य मूलभूत अधिकार भी प्राप्त नहीं हैं. पढे़ं पूरा विवरण...

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रोहिंग्या समुदाय

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Published : Dec 28, 2019, 10:37 AM IST

वॉशिंगटन : संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव पारित कर म्यामां के रोहिंग्या मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों की मनमानी गिरफ्तारी, प्रताड़ना, बलात्कार और हिरासत में होने वाले मौत समेत अन्य मानवाधिकार उल्लंघनों की कड़ी निंदा की.

इस 193 सदस्यों वाले वैश्विक निकाय में 134 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग की जबकि नौ ने इसे स्वीकृति नहीं दी.

वहीं 28 सदस्य सभा में मौजूद नहीं थे. इस प्रस्ताव में म्यामां सरकार से रखाइन, कचीन और शान राज्यों में रोहिंग्या एवं अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा को बढ़ावा देने वाली समस्या से निपटने के कदम उठाने की अपील भी की गई है.

महासभा के प्रस्ताव कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते, लेकिन वे विश्व के विचारों को व्यक्त करते हैं.

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बौद्ध बहुलता वाले म्यामां में रोहिंग्या समुदाय के लोगों को लंबे समय से बांग्लादेश का 'बंगाली' माना जाता रहा है, जबकि उनके परिवार पीढ़ियों से इस देश में रह रहे हैं.

इनमें से लगभग सभी को 1982 से नागरिकता नहीं दी गई है. उनके पास कहने के लिए अपना कोई देश तो नहीं है, साथ ही उन्हें आवाजाही की स्वतंत्रता और अन्य मूलभूत अधिकार भी प्राप्त नहीं हैं.

लंबे समय से चले आ रहे रोहिंग्या संकट ने 25 अगस्त 2017 को भयंकर रूप ले लिया था, जब म्यामां की सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर सैन्य कार्रवाई की थी.

इसे उसने रखाइन प्रांत में सफाया अभियान का नाम दिया था और कहा था कि रोहिंग्या चरमपंथी समूह के एक हमले के जवाब में उसने यह कार्रवाई की.

इस कार्रवाई के चलते बड़ी संख्या में रोहिंग्या बांग्लादेश भाग गए. आरोप लगाए गए कि सुरक्षा बलों ने बड़े पैमाने पर बलात्कार एवं हत्या की घटनाओं को अंजाम दिया और हजारों घर जला दिए.

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