ग्लासगो (स्कॉटलैंड) : विश्वभर के नेता और वार्ताकार 'ग्लोबल वार्मिंग' को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को बरकरार रखने के लिए ग्लासगो जलवायु समझौते की एक अच्छे करार के तौर पर प्रशंसा कर रहे हैं. वहीं, कई वैज्ञानिकों को इस बात पर संदेह है कि यह लक्ष्य कायम रह पाएगा या नहीं. संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख पेट्रीसिया एस्पिनोसा ने पूर्व-औद्योगिक काल से ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य का जिक्र करते हुए कहा कि यदि बड़ी तस्वीर को देखा जाए, तो मुझे लगता है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को संभव बनाने के लिए हमारे पास एक अच्छी योजना है.
दुनिया के लगभग 200 देशों के बीच शनिवार देर रात यह समझौता हुआ, जिसके तहत जीवाश्म ईंधनों का उपयोग चरणबद्ध तरीके से बंद करने के बजाय, इसके उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने के भारत के सुझाव को मान्यता दी गई है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने यहां हुए COP-26 जलवायु सम्मेलन के अंत में हुए इस करार की सराहना करते हुए इसे 'आगे की दिशा में बड़ा कदम' तथा कोयले के इस्तेमाल को 'कम करने' के लिए पहला अंतराष्ट्रीय समझौता बताया.
जॉनसन ने कहा कि आने वाले वर्षों में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. लेकिन आज का समझौता एक बड़ा कदम है. यह कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय समझौता है. साथ ही यह ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए एक रोडमैप है. लेकिन कई वैज्ञानिकों को इस लक्ष्य के बने रहने पर संदेह है. उनका कहना है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य तो भूल ही जाइए. पृथ्वी तापमान दो डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ने की दिशा में आगे बढ़ रही है.
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