हैदराबाद :मार्टिन लूथर किंग को भला कौन नहीं जानता. आज भी कई लोग उनसे प्रभावित हैं, लेकिन वो खुद भारत के अंहिसा के पुजारी महात्मा गांधी से प्रभावित थे. उनसे ही प्रेरणा लेकर मार्टिन ने अमेरिका में नस्लभेद के खिलाफ अपना आंदोलन चलाया था. उनका यह अहिंसात्मक विरोध प्रदर्शन मॉन्टगोमेरी बस बायकॉट के नाम से भी जाना जाता है. इसकी बदौलत वो पूरी दुनिया में मशहूर हो गए थे. इसकी एक बड़ी वजह ये भी थी कि ये अमेरिका का पहला बड़ा जनआंदोलन था.
इसी आंदोलन की वजह से उन्हें 1965 में अमेरिकी समाज में रंगभेद के विरुद्ध अहिंसात्मक आंदोलन चलाने के लिए पुरस्कृत किया गया था. वो दुनिया के सबसे कम उम्र में ही नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले व्यक्ति हैं. उन्होंने इस पुरस्कार के तहत मिली राशि को नागरिक अधिकार आंदोलनों को दे दिया था. उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता है.
मार्टिन लूथर किंग जूनियर कौन थे?
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मार्टिन लूथर किंग जूनियर (Martin Luther King Jr.) को अमेरिका में सामाजिक अधिकारों को लेकर किए गए संघर्ष के लिए पहचाना जाता है. अमेरिका में सामाजिक अधिकारों के संघर्ष के कारण 1950 और 60 के दशक में मार्टिन बेहद पसंद किए जाते थे. अहिंसक विरोध में उनके दृढ़ विश्वास ने आंदोलन के स्वर को स्थापित करने में मदद की. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अमेरिका में रंगभेद और वर्गभेद के खिलाफ लंबा संघर्ष किया था. आज भी उनकी गिनती दुनिया के बड़े नेताओं में होती है.
मार्टिन लूथर का किंग जूनियर का प्रारंभिक जीवन
अमेरिका के गांधी डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर का जन्म सन् 1929 में अटलांटा (जॉर्जिया) अमेरिका में हुआ था. डॉ. किंग ने संयुक्त राज्य अमेरिका में नीग्रो समुदाय के प्रति होने वाले भेदभाव के विरुद्ध सफल अहिंसात्मक आंदोलन का संचालन किया. सन् 1955 का वर्ष उनके जीवन का निर्णायक मोड़ था. इसी वर्ष कोरेटा से उनका विवाह हुआ, उनको अमेरिका के दक्षिणी प्रांत अल्बामा के मांटगोमरी शहर में डेक्सटर एवेन्यू बॅपटिस्ट चर्च में प्रवचन देने बुलाया गया और इसी वर्ष मॉटगोमरी की सार्वजनिक बसों में काले-गोरे के भेद के विरुद्ध एक महिला रोज पार्क्स ने गिरफ्तारी दी. इसके बाद ही डॉ. किंग ने प्रसिद्ध बस आंदोलन चलाया.
1968 में गोली मारकर हत्या
संयुक्त राज्य अमेरिका में 1968 के मध्य उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. अमेरिका में सिविल राइट्स के लिए एक बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ. इसके सबसे बड़े हीरो थे मार्टिन लूथर किंग जूनियर. 1963 में अफ्रीकी अमेरिकी समुदाय के लिए हकों की मांग के साथ वॉशिंगटन सिविल राइट्स मार्च बुलाया गया. मार्च के दौरान 1963 को उन्होंने अब्राहम लिंकन मेमोरियल की सीढ़ियों पर खड़े होकर एक भाषण दिया था, (मेरा एक सपना है) नाम से. इस भाषण को अमेरीकी सिविल राइट्स आंदोलन के सबसे खास लम्हों में गिना जाता है. उन्हें 1964 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
मार्टिन लूथर किंग ने नागरिक अधिकार आंदोलन के लिए क्या किया?
मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने दौड़ की परवाह किए बिना अमेरिका में अधिक से अधिक समानता लाने और सभी लोगों के लिए नागरिक अधिकार सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत की. विशेष रूप से, उन्होंने अहिंसक विरोध के महत्व पर जोर देते हुए प्रमुख नागरिक अधिकार गतिविधियों के लिए प्रचार किया.
किंग जूनियर योगदान और समझौते
नागरिक अधिकारों के आंदोलन की प्रगति के लिए मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने क्या नहीं किया. वह आशा के एक स्तंभ और अनुग्रह के एक मॉडल के रूप में खड़े रहे और उन्होंने अफ्रीकी अमेरिकी नागरिक अधिकारों के आंदोलन के लिए नेतृत्व भी किया.
नोबेल शांति पुरस्कार से भी नवाजे गये लूथर
1964 में डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग जूनियर को केवल 35 साल की उम्र में अमेरिकी समाज में रंगभेद के विरुद्ध अहिंसात्मक आंदोलन चलाने के लिए पुरस्कृत किया गया. अमेरिका के जॉर्जिया प्रांत में जन्मे किंग नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति बने. मार्टिन लूथर किंग जूनियर का जन्म 1929 में जॉर्जिया की राजधानी अटलांटा में हुआ था. किंग ने धर्मशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री ली.
नागरिक अधिकार आंदोलन का पहला बड़ा विरोध प्रदर्शन
1955 में उन्होंने नागरिक अधिकार आंदोलन का पहला बड़ा विरोध प्रदर्शन किया. महात्मा गांधी से प्रभावित उनका यह अहिंसात्मक विरोध प्रदर्शन मॉन्टगोमेरी बस बायकॉट के नाम से भी जाना जाता है. किंग ने रंगभेद के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन की वकालत की. उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को भी कुछ जगहों पर हिंसा का सामना करना पड़ा. इसके बावजूद किंग और उनके समर्थक डटे रहे और उनका आंदोलन और शक्तिशाली होता रहा.
मार्टिन लूथर किंग जूनियर उपलब्धियां
- सन् 1959 में उन्होंने भारत की यात्रा की. डॉ. किंग ने अखबारों में कई आलेख लिखे. 'स्ट्राइड टुवर्ड फ्रीडम' (1958) और 'व्हाय वी कैन नॉट वेट' (1964) उनकी लिखी दो पुस्तकें हैं. सन् 1957 में उन्होंने साउथ क्रिश्चियन लीडरशिप कॉन्फ्रेंस की स्थापना की. डॉ. किंग की प्रिय उक्ति थी- हम वह नहीं हैं, जो हमें होना चाहिए और हम वह नहीं हैं, जो होने वाले हैं, लेकिन खुदा का शुक्र है कि हम वह भी नहीं हैं, जो हम थे. चार अप्रैल 1968 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई.
- सन् 1955 का वर्ष उनके जीवन का निर्णायक मोड़ था. इसी वर्ष कोरेटा से उनका विवाह हुआ, उनको अमेरिका के दक्षिणी प्रांत अल्बामा के मांटगोमरी शहर में डेक्सटर एवेन्यू बॅपटिस्ट चर्च में प्रवचन देने बुलाया गया और इसी वर्ष मॉटगोमरी की सार्वजनिक बसों में काले-गोरे के भेद के विरुद्ध एक महिला रोज पार्क्स ने गिरफ्तारी दी. इसके बाद ही डॉ. किंग ने प्रसिद्ध बस आंदोलन चलाया.
- अगस्त 1963 को उन्होंने अब्राहम लिंकन मेमोरियल की सीढ़ियों पर खड़े होकर एक भाषण दिया था. 1964 में वो सबसे छोटी उम्र में नोबेल प्राइज जीतने वाले इंसान भी बने. किंग का ये यादगार भाषण पहली बार 1983 में द वॉशिंगटन पोस्ट में छपा था.
मॉन्टगोमरी बसों का बहिष्कार
1955 में अलाबामा के मॉन्टगोमरी में किंग ने सिटी बसों के खिलाफ एक बहिष्कार का नेतृत्व किया. अमेरिका के अलाबामा राज्य के मॉन्टगोमरी शहर की बसों में श्वेत और अश्वेत लोगों के लिए अलग-अलग सीटें होती थीं. एक अश्वेत महिला रोजा पार्क्स ने एक दिन एक श्वेत व्यक्ति को उनके लिए आरक्षित सीट छोड़ने से इनकार कर दिया. रोजा पार्क्स को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद अश्वेतों ने अमेरिका के बस परिवहन का बहिष्कार कर दिया.