वाशिंगटन: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन की एक पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच पहली द्विपक्षीय बैठक से पहले कहा कि अमेरिका को आतंकवाद से निपटने के लिए अफगानिस्तान के संदर्भ में भारत के साथ अधिक समन्वय स्थापित करने और इस मामले में पाकिस्तान पर निर्भरता का पुन: आकलन करने की आवश्यकता है.
'सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी' थिंक टैंक में हिंद प्रशांत सुरक्षा कार्यक्रम की निदेशक लीज़ा कुर्टिस ने कहा कि हालांकि पाकिस्तान को दंडित करने में अब बहुत देर हो गई है, लेकिन अमेरिका को उसके 20 साल पुराने हठी रवैये से सीखना चाहिए और आतंकवाद से निपटने के मामले में सहयोग को लेकर इस्लामाबाद से कम अपेक्षाएं रखनी चाहिए. कुर्टिस ने पत्रिका 'फोरेन अफेयर्स' में लिखा कि 2001 के बाद से अमेरिका का कोई प्रशासन पाकिस्तान को अपने क्षेत्र में तालिबान की गतिविधियों को रोकने के लिए समझाने में सफल नहीं हुआ है.
उन्होंने लिखा कि इस्लामिक स्टेट की अफगानिस्तान शाखा आईएसआईएस-के जैसे अन्य आतंकवादी समूहों को निशाना बनाते समय वाशिंगटन के लिए इस्लामाबाद के साथ काम करना संभव हो सकता है, लेकिन पाकिस्तान की खुफिया सेवा अलकायदा से जुड़े हक्कानी नेटवर्क को कभी निशाना नहीं बनाएगी. कुर्टिस ने कहा कि पाकिस्तानी सेना और खुफिया अधिकारी भारत को अफगानिस्तान में पैर जमाने से रोकने के लिए हक्कानी नेटवर्क पर निर्भर हैं.
उन्होंने कहा कि बाइडन प्रशासन को अपने प्रयासों को अन्य क्षेत्रीय लोकतंत्रों, विशेष रूप से भारत के साथ समन्वय पर फिर से ध्यान देना चाहिए. कर्टिस ने कहा कि अमेरिका ने आतंकवाद से निपटने के प्रयासों में भारत के साथ सहयोग के विचार को पाकिस्तान के कारण से दूर रखा. कुर्टिस ने कहा कि अमेरिका को यह महसूस करना चाहिए कि आतंकवाद से लड़ने वाले लोकतांत्रिक देशों के साथ समन्वय करके उसे कहीं अधिक सफलता हासिल होगी. उसे उन शासनों के साथ काम करने की कोशिश करके कुछ हासिल नहीं होगा, जो क्षेत्रीय उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए पर्दे के पीछे से आतंकवाद पर निर्भर करते हैं.