वाशिंगटन : भारतीय-अमेरिकियों ने कश्मीर घाटी से चरमपंथियों द्वारा पंडितों को भगाए जाने की निन्दा करते हुए इस समुदाय के विस्थापन की 30वीं वर्षगांठ पर अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया.
व्हाइट हाउस के सामने भी एक कार्यक्रम किया गया. इन लोगों ने पारंपरिक कश्मीरी परिधान फिरन पहन रखे थे और सिर पर तिरंगी टोपियां लगा रखी थीं.
कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार को रेखांकित करने के लिए अमेरिका के तीन दर्जन से अधिक शहरों और कस्बों में भारतीय-अमेरिकी लोगों ने शांतिपूर्ण रैलियां निकालीं, हाथों में मोमबत्तियां लेकर जुलूस निकाले और जनसभाएं कीं.
न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, बोस्टन, मियामी, फिलाडेल्फिया, लॉस एंजिलिस, डेट्रोइट, ह्यूस्टन, सैक्रामेंटो, सैन जोस, कोंकोर्ड, मिल्पिटास, नैपरविले और एडिसन जैसे शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया.
कश्मीरी पंडितों ने पारंपरिक कश्मीरी परिधान 'फिरन' पहन रखे थे. महिलाओं के सिर पर भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रंग वाली तिरंगी टोपियां थीं.
वाशिंगटन डीसी और इसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले कश्मीरी पंडित बड़ी संख्या में व्हाइट हाउस के सामने एकत्र हुए और कश्मीर से अपने विस्थापन से जुड़ी व्यथा को रेखांकित किया.
कार्यक्रम का आयोजन 'कश्मीर ओवरसीज एसोसिएशन' (केओए) ने किया.
कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले जाने-माने भारतीय-अमेरिकी विजय सजवाल ने कहा, '19 जनवरी 1990 की रात को कोई भी कश्मीरी पंडित भयावह यादों की वजह से याद नहीं करना चाहता. और यह एक ऐसा दिन है जिसे कोई भी कश्मीरी विस्थापित भुला नहीं पाएगा.'
कार्यक्रम में शामिल हुए शकुन मलिक ने कहा, 'हमने अपने बुजुर्गों, बच्चों, अपनी महिलाओं के सम्मान और शायद खुद को बचाने के लिए कश्मीर छोड़ दिया. कश्मीरी पंडित, मूल कश्मीरी तीन दशक बाद भी अपने पूर्वजों की भूमि पर नहीं लौट पाए हैं.'