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ट्रंप ने दो हजार अरब डॉलर के बुनियादी ढांचा कोष का रखा प्रस्ताव

दुनियाभर में कोरोना वायरस से संक्रमण फैलता जा रहा है. इस वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में अमेरिका भी शामिल है. कोरोना वायरस की वजह से जन जीवन के साथ-साथ अर्थव्यवस्था पर भी कफी बुरा असर पड़ रहा है. अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे प्रभाव को कम करने के लिए अमेरिका ने 2,000 अरब डॉलर का प्रस्ताव रखा है. विशेषज्ञों के मन में डर है कि सरकार आर्थिक संकट का हल खोजते हुए पर्यावरण संकट को और न बढ़ा दे.

corona virus in america
डाजाइन फोटो

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Published : Apr 3, 2020, 8:33 PM IST

हैदराबाद : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस महामारी के चलते अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे विपरीत प्रभाव से निपटने के लिए दो हजार अरब डॉलर के भारी-भरकम बुनियादी ढांचा कोष का प्रस्ताव रखा है. इसके साथ ही रेस्टोरेंट और मनोरंजन उद्योग के लिए राहत उपायों की बात भी कही गई है.ट्रंप का यह प्रस्ताव 2,200 अरब डॉलर के प्रोत्साहन पैकेज पारित किए जाने के कुछ दिनों बाद आया है, जिसके तहत चार लोगों के अमेरिकी परिवार को औसतन 3,200 अमेरिकी डॉलर मिलेंगे और छोटे तथा मझोले उद्योगों, बड़े निगमों और यात्रा तथा पर्यटन उद्योग के लिए बड़े पैमाने पर वित्तीय सहायता दी जाएगी.

राहत पैकेज 27 मार्च को लागू किया गया था. राहत पैकेज लागू होने के समय अमेरिका में 103,942 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित थे और 3.3 मीलियन लोग आधिकारिक तौर पर बेरोजगार के रूप में पंजीकृत थे. दो खरब अमेरिकी डॉलर में से सिर्फ 25 बिलियन डॉलर यात्री एयरलाइनों को आवंटित किए गए थे, लेकिन वाशिंगटन डीसी के पर्यावरणविदों और उनके सहयोगियों के लिए यह बड़ा झटका था.

कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए यात्रा प्रतिबंधों को लागू किया गया था, जिसके कारण एयरलाइन उद्योग को नुकसान हो रहा है. एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका के अनुसार, जून के अंत तक की लगभग 1.1 मिलियन उड़ानें विश्वस्तर पर रद कर दी गई हैं. एयरलाइन उद्योग इस वर्ष 250 बिलियन डॉलर से अधिक के राजस्व घाटे का अनुमान लगा रहा है.

महामारी ने समाज के लगभग सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया है, जिसमें जलवायु भी शामिल है. महामारी को रोकने के लिए कई देशों में लॉकडाउन कर दिया गया है, जिसके कारण हर तरह की गतिविधियां कम हो गई है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके कारण चीन, इटली और न्यूयॉर्क शहर में वायु प्रदूषण में कमी आई है. शोधकर्ताओं का कहना है कि 2020 में दुनियाभर में ग्रीनहाउस गैसों में भारी कमी आएगी. ग्रीनहाउस गैसों में इतनी कमी 2008 में आई मंदी के दौरान आई थी.

नॉर्वे की राजधानी ओस्लो स्थित अंतरराष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान केंद्र के अनुसंधान निदेशक ग्लेन पीटर्स ने कहा कि आगामी आर्थिक संकट कुछ वर्ष तक बना रह सकता है. इससे ऊर्जा की मांग में कमी आएगी और नवीकरणीय उर्जा के स्रोतों को बढ़ावा मिलेगा.

उन्होंने कहा कि यदि सरकार सही फैसले लेती है तो 2019 वह वर्ष हो सकता है, जिस वर्ष में सबसे ज्यादा उत्सर्जन हुआ था. सवाल यह है कि क्या सरकारें आर्थिक-प्रोत्साहन योजनाएं लाने के साथ-साथ जलवायु के लेकर उनके लक्ष्यों को हांसिल कर पाएंगी? अगर हां, तो कहां तक? पीटर्स ने कहा कि ऐसा तो है नहीं कि सोरल पैनल बनाने से पर्यटन या रेस्तरां उद्योग फिर से मुनाफा कमाने लगेंगे.

उल्लेखनीय है कि 2008 में वित्तीय संकट के बाद राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में लागू किए गए वित्तीय प्रोत्साहन कार्यक्रम में हरित बुनियादी ढांचे के साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा को लक्षित करने वाले अनुसंधान और विकास कार्यक्रमों के लिए 16.8 बिलियन डॉलर का निवेश शामिल था.

वाशिंगटन डीसी स्थित थिंक टैंक विश्व संसाधन संस्थान की हेलेन माउंटफोर्ड ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने वाली ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को लक्षित करने वाले धन ने पारंपरिक परियोजनाओं जैसे सड़कों के निर्माण जैसी परियोजनाओं की तुलना में रोजगार के ज्यादा अवसर प्रदान किए. माउंटफोर्ड का मानना है कि भारत और चीन के पास उर्जा के क्षेत्र में कई ऐसी पारंपरिक परियोजनाएं हैं, जिन्हें नवीकरणीय उर्जा के लिए दरकिनार कर दिया गया था. यह देश अगर आर्थिक विकास और नौकरियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो इन्हें फिर से शुरू किया जा सकता है.

माउंटफोर्ड का कहना है कि यह आसान तरीका है. उन्होंने कहा कि वह सरकार से अपील करेंगी कि वह आर्थिक संकट का हल निकालने के लिए दूसरे संकट (जलवायु परिवर्तन) को और न बढ़ा दें.

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