दिल्ली

delhi

ETV Bharat / city

नूंह के सरकारी स्कूल में बिना शिक्षक पढ़ रहे हैं 83 'एकलव्य'!

करहेड़ा गांव के मिडिल स्कूल में 83 बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन उन्हें पढ़ाने के लिए एक भी शिक्षक नहीं है. बच्चे आते हैं किताबें खोल कर बैठ जाते हैं, लेकिन पढ़ें क्या? उन्हें पढ़ाने के लिए गुरु जी तो आते ही नहीं. लोगों का कहना है कि सरकार कहती है बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, उनका कहना है कि अब सरकार ही बताए कि बेटियों को पढ़ाएं भी कैसे...?

नूंह के सरकारी स्कूल में नहीं एक भी शिक्षक

By

Published : Nov 22, 2019, 1:38 AM IST

Updated : Nov 22, 2019, 7:12 AM IST

नई दिल्ली/गुरुग्राम: हरियाणा में देश के भविष्य के साथ मजाक हो रहा है. वो देश जो दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बनने के सपने देख रहा है, उसकी नींव इतनी खोखली रखी जा रही है कि विकसित देशों से मुकाबला करने का वो सपना देखना भी गुनाह है.

नूंह के सरकारी स्कूल में नहीं एक भी शिक्षक

किसी भी देश के लिए उसकी सबसे बड़ी संपत्ति उस देश के बच्चे होते हैं. उस देश के बुद्धिजीवी होते हैं, लेकिन यहां तो हरियाणा सरकार देश की भावी पीढ़ी को खोखला कर रही है. उन्हें सही शिक्षा नहीं दे पा रही है, उन्हें शिक्षक तक नहीं मुहैया करवा पा रही है.

बिन गुरु ज्ञान प्राप्त करते हैं 83 'एकलव्य'
ईटीवी भारत की विशेष मुहीम 'सुनिए शिक्षा मंत्री' के तहत हम पहुंचे नूंह के करहेड़ा गांव में. इस गांव के मिडिल स्कूल में 83 बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन उन्हें पढ़ाने के लिए एक भी शिक्षक नहीं है. बच्चे आते हैं किताबें खोल कर बैठ जाते हैं, लेकिन पढ़ें क्या? उन्हें पढ़ाने के लिए गुरु जी तो आते ही नहीं. बच्चे जब दिल करता है पढ़ते हैं. बस्ता उठा कर चल पड़ते हैं. परीक्षा नजदीक आने को है, पाठ्यक्रम पूरा हुआ ही नहीं है.

प्राइमरी शिक्षकों पर बड़ी नाइंसाफी!
इसी गांव में प्राइमरी स्कूल भी है. जहां 5 अध्यापक 200 बच्चों पढ़ाते हैं. स्ट्रेंथ के हिसाब से यहां भी 4 शिक्षकों की कमी है. हैरानी की बात है कि इन्हीं प्राइमरी अध्यापकों को मिडिल स्कूल के बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा मिला है. पहले ही प्राइमरी स्कूल में अध्यापकों का टोटा है, ऊपर से दूसरे स्कूल का बोझ है. बेचारे प्राइमरी अध्यापक कैसे झेलते होंगे वो तो उन्हें ही मालूम होगा.

कैसे पढ़ाएं बेटियां...?
इस लचर व्यवस्था को लेकर समाजसेवी राजू दीन कई बार शिक्षा विभाग के अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं, लेकिन अभी तक समाधान नहीं मिला. उनका कहना है कि सरकार कहती है, बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ, उनका कहना है कि अब सरकार ही बताए कि बेटियों को पढ़ाएं भी कैसे...?

शिक्षा अधिकारियों के आंखों पर बंधी पट्टी!
वहीं शिक्षा विभाग के अधिकारियों को तो जैसे हर तरफ हरा ही हरा नजर आ रहा है. सब बढियां, सब शानदार है. उनके हिसाब से तो विभाग ने शिक्षा व्यवस्था के नाम पर झंड़े गाड़ दिए हैं. खंड शिक्षा अधिकारी हयात खान ने जम कर अपनी पीठ थपथपाई और अपने विभाग की भी, लेकिन फिलहाल उनके अधिकार क्षेत्र में क्या चल रहा है सब जानते हुए, बिना शर्म के अच्छा ही अच्छा बता रहे हैं.

अब बड़ा सवाल है कि इन मासूमों का क्या कसूर है...? इनका भविष्य क्यों अंधकार मे डाला जा रहा है. सरकार, प्रशासन, तमाम जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही की सजा ये मासूम क्यों भुगते. जरा सोचिए ये.. वहीं जिला है जिसे देश का सबसे पिछड़ा घोषित किया गया था. अब शायद समझ में आ गया होगा कि इस पिछड़ेपन की वजह क्या है. शिक्षा मंत्री जी जरा इन बच्चों की पुकार सुन लीजिए. इन्हें कम से कम सही शिक्षा और शिक्षक मुहैया करवा दीजिए.

Last Updated : Nov 22, 2019, 7:12 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details