नई दिल्ली/गुरुग्राम:सोहना में कोरोना काल के दौरान अधिकारियों द्वारा गरीब लोगों को सामान वितरित करने के नाम पर लाखों रुपये के फर्जी बिल बनाकर सरकारी धन को हड़पने का मामला सामने आया है. उक्त मामले का खुलासा एक आरटीआई द्वारा मांगी गई रिपोर्ट के दौरान हुआ है.
सोहाना में आरटीआई से हुआ घोटाले का खुलासा आरटीआई के जरिए हुआ खुलासा
दरअसल मामला सोहना के एसडीएम ऑफिस का है जहां पर सोहना के एक युवक ने आरटीआई लगाकर ये मांग की थी कि सोहना एसडीएम ऑफिस को सरकार द्वारा कितनी राशि भेजी गई, कितनी राशि कहां-कहां पर खर्च की गई. जिसके जबाब में एसडीएम ऑफिस द्वारा करीब 10 लाख रुपये खर्च किये जाने व कुछ बिल अभी बाकी है का हवाला देते हुए आरटीआई का जबाब देते हुए जानकारी मुहैया कराई गई है.
ज्यादातर बिलों पर जीएसटी व टिन नंबर ही नहीं
सोहना एसडीएम ऑफिस द्वारा गुरुग्राम डीसी ऑफिस, फरुखनगर व सोहना बीडीपीओ ऑफिस के बिल भी पास किये गए हैं. सबसे अचंभित बात ये है कि बिलों पर जनता कर्फ्यू लगाने से पहले की भी तारीखें हैं. वहीं कुछ बिलों पर किसी का नाम ही नहीं है. इतना ही नहीं ज्यादातर बिलों पर जीएसटी व टिन नंबर ही नहीं है. परचून की दुकान से कपड़े, कंबल, चप्पल आदि के अलावा ऐसे सामान खरीदने के बिल बनवाये गए हैं जो सामान परचून की दुकान पर उपलब्ध ही नहीं होता.
नकली दवाई बेचने वाले से भी खरीदा सामान
इसके अलावा मेवात जिले के एक सप्लायर से मास्क, ग्लव्स आदि सामान खरीदने के भी ऐसे बिल सामने आए हैं जिसका इन सामान से कुछ लेना देना ही नहीं है. वहीं कस्बे के एक ऐसे मेडिकल स्टोर मालिक से सैनिटाइजर, मास्क आदि खरीदने के भी बिल मिले हैं जो नकली दवाईयां बेचने के आरोप में जेल जाकर सजा काट चुका है. वहीं टैंट हाउस के बिलों के किराये को देखें तो नया सामान खरीदना भी इससे सस्ता ही पड़ता. ये हम नहीं बल्कि आरटीआई से जानकारी मांगने वाला आरटीआई एक्टिविस्ट कह रहा है.
परचून की दुकान वाला नहीं दे पाया जवाब
आरटीआई के बाद उजागर हुए फर्जी बिलों की पड़ताल करने के लिए जब हमारी टीम सोहना में उस परचून की दुकान पर पहुंची जहां से कंबल, कपड़े, चप्पल आदि के बिल बनवाये गए थे तो दुकान पर मौजूद दुकान मालिक ने बताया कि हमने समान की किट बनाकर दी थी, लेकिन दुकान मालिक ये नहीं बता सका कि सामान कितने रुपये का था और बिलों पर टिन नंबर व जीएसटी था या नहीं. जिससे बिलों में घोलमाल करने का अंदेशा प्रतीत होता है.
सामाजिक संस्थाओं ने भी उठाए सवाल
वहीं एसडीएम ऑफिस द्वारा पास किये गए बिलों को लेकर समाज सेवी संस्थाए भी बिलों पर सवाल उठाते हुए जांच कराने के लिए मोर्चा खोलती हुई नजर आने लगी हैं. कस्बे की एक समाज सेवी संस्था उन्नत्ति चेरीटेबल ट्रस्ट की चेयरपर्सन बबिता यादव ने बताया कि संस्था द्वारा कोरोना काल से पहले ही गरीब लोगों के लिए एक मुफ्त रसोई चलाई जा रही थी, लेकिन जब लॉकडाउन हुआ तो संस्था ने लोगों के बीच जाकर सूखा राशन, कपड़े, चप्पल, सैनिटाइजर आदि सामान दिया था.
सरकार के अधिकारियों द्वारा कुछ नहीं दिया गया बल्कि कस्बे की ओर समाजसेवी संस्थाओं व राजनीतिक पार्टी के लोगों द्वारा भी सरकारी अधिकारियों को गरीब लोगों के बीच वितरित करने के लिए सामान दिया गया था, लेकिन सरकारी अधिकारी कोरोना काल के दौरान सरकार की तरफ से भेजे गए गरीबों के लिए सरकारी धन को भी डकार गए जिसकी जांच होनी चाहिए.